जिला आयुर्वेदिक कार्यालय से तीन साल के योग दिवसों का रिकॉर्ड गायब
-आरटीआइ कार्यकर्ता का आरोप बिलों में लाखों रुपयों की हेराफेरी की चलते जानबूझकर किया
जागरण संवाददाता, कैथल : लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए 21 जून 2015 को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत हुई थी। इस लिए हर साल 21 जून को देशभर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। जिला स्तर पर इसका आयोजन होता है। इस आयोजन पर लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। यह राशि वास्तव में खर्च हुई है या नहीं इसे लेकर आयोजनों के खर्चे के बिलों को लेकर रिकार्ड मांगा गया तो गुम होने की सूचना दी गई। जिला कार्यालय से पिछले तीन सालों का रिकार्ड गायब है। इस विभाग पर यह पहला आरोप नहीं है बल्कि इसी माह में पूर्व जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ. पूनम वालिया को भी बिलों में अनियमितताओं के कारण चार्जशीट किया गया है।
आरटीआइ में ये मांगी थी सूचना
आरटीआइ एक्टिविस्ट जयपाल रसुलपुर ने बताया की उसने नौ महीने पहले जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कैथल से आरटीआइ के तहत 2015 से 2019 तक कैथल जिले में आयोजित किए गए अंतरराष्ट्रीय योग दिवसों के खर्च के बिलों से संबधित जिला आयुर्वेदिक अधिकारी से सूचना मांगी थी, जोकि उसे उपलब्ध नहीं करवाई गई थी। इसके बाद उसने सूचना लेने के लिए आयुष विभाग के निदेशक को प्रथम अपील लगाई पर वहां पर चार महीनों तक उसकी अपील की कोई सुनवाई नहीं की फिर उसने जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कैथल और आयुष निदेशक के विरुद्ध सूचना आयोग चण्डीगढ़ में द्वितीय अपील लगाई है और सूचना आयोग से नोटिस आने के बाद उसे अब सूचना उपलब्ध करवाई है। इसमें उसने साफ-साफ लिखा है की जिला आयुर्वेदिक कार्यालय में 21 जून 2015 व 21 जून 2016 तथा 21 जून 2018 में अंतरराष्ट्रीय योग दिवसों का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
एफआइआर तक दर्ज नहीं कराई गई
आरटीआइ कार्यकर्ता जयपाल ने जिला आयुष विभाग कार्यालय से अंतरराष्ट्रीय योग दिवसों के खर्च के बिलों का रिकॉर्ड गुम करने वाले जिम्मेवार अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट-1993 के तहत पुलिस को शिकायत की है।
आरोप लगाया है कि आयुष विभाग कार्यालय के संबधित जिम्मेवार अधिकारी व कर्मचारियों ने जानबूझकर योग दिवस का रिकॉर्ड गुम किया है, क्योंकि उन आयोजनों में लाखों रुपयों का गोलमाल है। इसलिए आज तक भी इस विभाग द्वारा रिकॉर्ड गुम होने की कोई भी एफआईआर या डीडीआर दर्ज नहीं करवाई गई। अब जब उसने आरटीआइ से इसकी जानकारी मांगी तो अधिकारियों अपने आप को बचाने के लिए रिकॉर्ड ही गुम कर दिया, जबकि 2018 का रिकॉर्ड तो सिर्फ दो साल पुराना ही है।