महिला व मजदूरों के हक के लिए 24 साल से लोहा ले रही शर्मिला
पिछले 24 सालों से शर्मिला पिलखन महिला गरीब मजदूर एवं जरूरतमंदों के जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। चाहे महिलाओं संबंधित हो खेतीहर बंधवा मजदूरों को मुक्त करवाने का कार्य हो या फिर भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों को उनके हक दिलवाना हो।
जागरण संवाददाता, कैथल:
पिछले 24 सालों से शर्मिला पिलखन महिला, गरीब, मजदूर एवं जरूरतमंदों के जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। चाहे महिलाओं संबंधित हो, खेतीहर बंधवा मजदूरों को मुक्त करवाने का कार्य हो या फिर भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों को उनके हक दिलवाना हो।
इस संघर्ष के रास्ते पर चलने के लिए उन्हें कई बार पुलिस की लाठियां खाने को मजबूर होना पड़ा है। वे बताती है कि वे 1994 में रसोई तक ही सीमित थी। अपने घर का ही पालन पोषण कर रही थी। अचानक मन में भावना आई की महिलाओं व मजदूरों के लिए कुछ किया जाए। उस समय से उसने ठान ली थी कि घर के साथ-साथ सामाजिक कार्य भी करने होंगे, इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़ जाए। 1995 में महिलाओं को ज्यादातर घर तक ही सीमित रखा जाता है। घर से बाहर नहीं जाने नहीं दिया जाता था। उस समय आवाज उठाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। इसके बाद मजदूरों व महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों पर आवाज उठानी शुरू की।
अवैध खुर्दा को बंद करवाया
गरीब व बेसहारा लोगों के साथ जहां भी अन्याय होता है, शर्मिला उनकी मदद के लिए निकल पड़ती है। शहर के शक्ति नगर व देवीगढ़ को जाने वाले रास्ते पर शराब का अवैध खुर्दा खोलने जाने को लेकर सबसे पहले संघर्ष किया। संघर्ष के बल पर उसे बंद करवाया। कॉलोनी के आसपास तब से शराब नहीं बिक रही है। इसके साथ साथ बीपीएल वर्ग के लोगों को राशन वितरण प्रणाली को लेकर लड़ाई लड़ी। जिन गरीब लोगों के सिर पर छत नहीं थी। उन्हें योजना के तहत मकान दिलवाने का काम किया।
मजदूरी के रेट संघर्ष कर बढ़वाए
शर्मिला बताती है कि मजदूरी के रेट घर के पालन पोषण से बिल्कुल कम थे। घर का गुजारा नहीं हो रहा था। धरने प्रदर्शन कर मजदूरी के रेटों में बढ़ोतरी करवाई। ताकि मजदूर लोग भी बच्चों की पढ़ाई करवा कामयाब कर सकें। वहीं भट्ठा मजदूरों को वेतन एक सामान करवाया।
घरेलू हिसा के मामले आपस में सुलझाए
दो हजार के करीब के घरेलू हिसा के मामले घर पर ही सुलझवा चुकी है। उनका कहना है परिवार को चलाने के लिए पारिवारिक संबंध अच्छे रखने जरूरी है। पारिवारिक संबंध अच्छे होंगे तो समाज में अपनी अलग पहचान होगी। पुलिस में जाने से पहले अपने घर के लेवल पर सुलझा लेना चाहिए।
शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए लड़ी लड़ाई
जरूरतमंद परिवार के बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा के लिए लड़ाई लड़ी। कई बार धरने देने पड़े। 134 ए के तहत गरीब बच्चों को शिक्षा दिलवाने के लिए कई बार ज्ञापन दिए। उसके बाद सरकार ने इसके तहत बच्चों को एडमिशन दिया।
नहीं मिल रही सुविधाएं-
करीब एक लाख 20 हजार के करीब मजदूर परिवार है। इनमें ज्यादातर खेतीहर व भवन निर्माण मजदूर है। इन मजदूरों को सरकार की तरफ से सुविधा नहीं दी जा रही है। भवन निर्माण मजदूरों को इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। कई बार पंजीकरण के अभाव में मजदूरों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। सरकार व प्रशासन को इसकी तरफ ध्यान देना चाहिए।