डिकंपोजर दवाई का छिड़काव कर किसान खेत में अवशेषों से खाद कर रहे तैयार
किसानों ने पराली को जलाना छोड़कर खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया है। किसानों का कहना है कि आग लगाने से जहां पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था वहीं आमदनी को नुकसान होता था।
जागरण संवाददाता, कैथल: किसानों ने पराली को जलाना छोड़कर खाद के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया है। किसानों का कहना है कि आग लगाने से जहां पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था, वहीं आमदनी को नुकसान होता था। इस नुकसान को बचाने के लिए फसल अवशेष जलाना छोड़ दिया। खाद की खपत खेत में कम हो रही है। डिकंपोजर दवाई का छिड़काव कर किसान अवशेषों से खाद तैयार कर रहे हैं। तभी से फसल में खाद कम डाला जा रहा है।
फसल अवशेष प्रबंधन किसान हित में
किसान संगीत बंसल छह वर्ष से खेत में आग नहीं लगा रहे है। डिकंपोजर दवाई अवशेषों में डालकर खाद तैयार कर रहे है। उनका कहना है कि प्रशासन द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जागरूक कैंपों का आयोजन किया जा रहा है। हमें भी इनका सहयोग करना चाहिए। किसान हित में है। अवशेष न जलाने से फसल की बिजाई पर कम खर्च आता है। पर्यावरण में जहरीली गैसें नहीं घुलती। फसल अवशेषों को खेत में दबा दें। इससे फसल को अच्छी खाद मिलेगी और भरपूर पैदावार होगी।
पेस्टिसाइड डालने की कम जरूरत पड़ती है: केहर सिंह
किसान केहर सिंह ने बताया कि अवशेष को खेत में मिलाने से पेस्टीसाइड डालने की कम जरूरत पड़ती है। इसलिए फसल अवशेष को खेत में ही मिलाना चाहिए। ऐसा करने से फसल पर आने वाला खर्च कम रहेगा। इस दिशा में जब सरकार हमारा सहयोग कर रही है तो हम किसान भाई क्यों पीछे रहें। भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी नहीं आती। हैप्पी सीडर के माध्यम से फसल अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई की जा सकती है। किसान को अच्छी पैदावार मिलती है और पर्यावरण में जहर नहीं घुलता। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन पर जरूर ध्यान देना चाहिए।
जीरो ड्रिल मशीन से गेहूं की बिजाई करते है किसान रहेजा
सीवन निवासी किसान राजेश रहेजा दस एकड़ में धान की रोपाई करते हैं। उनका कहना है कि पिछले सात वर्ष से अब तक धान या गेहूं के अवशेष को नहीं जलाया। जीरो ड्रिल मशीन से ही खेतों में गेहूं की बिजाई करते है। इसमें अवशेष जलाने की जरूरत नहीं होती है। समय के साथ-साथ खेत तैयार करने पर आने वाला खर्च बच जाता है। जमीन की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।