अवशेषों को खेत में ही दबाते हैं किसान, बढ़ती है उर्वरा शक्ति
अब जिले में किसान फसल अवशेष नहीं जलाते बल्कि प्रबंधन करते हैं। धान के अवशेषों की जुताई कर मिट्टी में मिला देते हैं। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है और अवशेषों का प्रबंधन भी बेहतर ढंग से होता है।
जागरण संवाददाता, कैथल : अब जिले में किसान फसल अवशेष नहीं जलाते, बल्कि प्रबंधन करते हैं। धान के अवशेषों की जुताई कर मिट्टी में मिला देते हैं। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है और अवशेषों का प्रबंधन भी बेहतर ढंग से होता है। किसानों का कहना है कि प्रबंधन के लिए उनको कृषि विभाग की ओर से कृषि यंत्र भी मुहैया करवाए जा रहे हैं। इससे किसान खेत में धान के सीजन में अवशेष नहीं जलाता है। किसान धान के अवशेषों के बीच ही गेहूं की बिजाई करते हैं। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। यूरिया खाद की खपत कम होती है। जमीन ज्यादा पैदावार देती है।
फसल अवशेष प्रबंधन जरूरी
किसान सुधीर मिड्ढा का कहना है कि आज के दौर में फसल अवशेष प्रबंधन जरूरी है। ऐसा करने से फसल पर आने वाला खर्च कम होगा। अवशेष न जलाने से भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी नहीं आती। हैप्पी सीडर से फसल अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई की जा सकती है। इस बिजाई के बाद अच्छी पैदावार मिलती है। किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन पर जरूर ध्यान देना चाहिए। हर किसान को आग की जगह फसल अवशेष प्रबंधन करना चाहिए।
अवशेषों को खेत में ही दबा रहे
किसान मितू का कहना है कि पिछले साल से उन्होंने खेत में अवशेष नहीं जलाए। फसल अवशेषों को खेत में ही दबा रहे हैं। इससे फसल को अच्छी खाद मिलती है। लागत के हिसाब से पैदावार हो रही है। कृषि विभाग द्वारा अनुदान पर कृषि यंत्र उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। उनसे फसल अवशेष प्रबंधन कर रहे हैं।
अवशेष के बीच में गेहूं की बिजाई करते हैं
किसान गगनदीप का कहना है कि वे 15 एकड़ में धान की रोपाई करते हैं। सारे खेत के अवशेषों को खेत में नहीं जलाते। अवशेषों के बीच में ही गेहूं की बिजाई कर देते हैं। इस विधि से बिजाई गेहूं की पैदावार स्वस्थ रहती है। गिरने की संभावना भी कम होती है। सभी किसान इसी तकनीक को अपनाएं और पर्यावरण को बचाने में अपना सहयोग दें।