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आजादी के 70 साल बाद भी हालातों में नहीं हो सका अनुकूल बदलाव गौतम

देश को आजाद हुए 70 वर्ष से देश को आजाद हुए 70 वर्ष से ज्यादा समय हो चुका है। देश के स्वतंत्रता से पूर्व और आज के हालातों में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो पाया है। कितनी सरकारें आई और चली गई, लेकिन न तो वे शिक्षा के स्तर में अनुकूल बदलाव ला सकी और न ही लचर स्वास्थ्य सेवाओं को जरूरत के अनुसार सुधार सकी हैं। रोजगार के लिए आज भी युवा दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। यह कहना है जिला बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एडवोकेट अशोक गौतम का। उन्होंने कहा कि 1947 से पूर्व देश अंग्रेजों का गुलाम था, लेकिन अब काले मन वालों ने देश की ऊर्जा को अपना गुलाम बना रखा है। गौरों की नीति देश को अशिक्षित रखने की थी, क्योंकि उन्हें पता था कि अगर ये शिक्षित हो गए तो अपने अधिकारों की मांग करेंगे। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में देश को आगे नहीं बढ़ने दिया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 Aug 2018 11:21 PM (IST)Updated: Thu, 09 Aug 2018 11:21 PM (IST)
आजादी के 70 साल बाद भी हालातों में नहीं हो सका अनुकूल बदलाव  गौतम
आजादी के 70 साल बाद भी हालातों में नहीं हो सका अनुकूल बदलाव गौतम

जागरण संवाददाता, कैथल : देश को आजाद हुए 70 वर्ष से ज्यादा समय हो चुका है। देश के स्वतंत्रता से पूर्व और आज के हालातों में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो पाया है। कितनी सरकारें आई और चली गई, लेकिन न तो वे शिक्षा के स्तर में अनुकूल बदलाव ला सकी और न ही लचर स्वास्थ्य सेवाओं को जरूरत के अनुसार सुधार सकी हैं। रोजगार के लिए आज भी युवा दर-ब-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। यह कहना है जिला बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एडवोकेट अशोक गौतम का। उन्होंने कहा कि 1947 से पूर्व देश अंग्रेजों का गुलाम था, लेकिन अब काले मन वालों ने देश की ऊर्जा को अपना गुलाम बना रखा है। गौरों की नीति देश को अशिक्षित रखने की थी, क्योंकि उन्हें पता था कि अगर ये शिक्षित हो गए तो अपने अधिकारों की मांग करेंगे। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में देश को आगे नहीं बढ़ने दिया। ऐसे ही हालात आज हैं। लोगों को अपने अधिकार तो पता लग चुके हैं, लेकिन उन्हें पाने के लिए लोगों को सड़कों पर आना पड़ रहा है। रोजाना धरने, प्रदर्शन, जाम, हड़ताल वर्तमान स्थिति को स्पष्ट बयां कर रहे हैं।

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आज भी धन की कमी ले रही जान

गौतम ने बताया कि विकसित देशों में बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा का खर्च सरकारें वहन कर रही हैं। हमारे देश में आज भी लोग धन की कमी के कारण अस्पतालों में पहुंचने से पहले दम तोड़ देते हैं। ला-इलाज बीमारी होने पर गरीब व्यक्ति का घर-बार बिक जाता है, इलाज के लिए पर्याप्त राशि इकट्ठी नहीं हो पाती। ऐसी व्यवस्था में सुधार लाने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद बिगाड़ रहे समीकरण

स्वतंत्रता के बाद अब तक भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद बढ़ा है, घटा नहीं। सरकारें रोजगार नहीं दे रही, क्योंकि वे जानती हैं कि ऐसा किया गया तो अधिकारियों और नेताओं के पीछे झंडा उठाकर घूमने वाला कोई नहीं रहेगा। हालात जानते हुए रोजगार के संसाधन पैदा नहीं किए जा रहे। मंत्रियों और बड़े अधिकारियों के ज्यादातर कार्यालयों में छोटे कर्मियों से जैसा व्यवहार इस समय हो रहा है, वो गुलामी से कम नहीं है। जनता के नौकर ही मालिक बने बैठे हैं।

युवा वर्ग को मिले अवसर

हमारे पूर्वजों और शहीदों ने जिस सपने को पूरा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, उसे सत्तासीन सरकारें आज तक पूरा नहीं कर पाई हैं। आज का युवा कुछ करने का जुनून रखता है लेकिन उसे आगे आने का अवसर नहीं मिल रहा। शिक्षित व जागरूक युवाओं को आगे आने का अवसर दिया जाए तो सुधार निश्चित है।


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