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गांव बाबा लदाना की राजनीतिक रूप से हो रही अनदेखी, समस्याओं का अंबार

आज से करीब 625 वर्ष पहले बसा जिले का गांव बाबा लदाना सत्तासीन सरकारों की अनदेखी झेलता रहा है। गांव के बसने के साथ आज तक यहां का सबसे बड़ा मुद्दा गंदे पानी की निकासी रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 25 Apr 2019 10:32 AM (IST)Updated: Thu, 25 Apr 2019 10:32 AM (IST)
गांव बाबा लदाना की राजनीतिक रूप से हो रही अनदेखी, समस्याओं का अंबार
गांव बाबा लदाना की राजनीतिक रूप से हो रही अनदेखी, समस्याओं का अंबार

जितेंद्र कुमार, कैथल :

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आज से करीब 625 वर्ष पहले बसा जिले का गांव बाबा लदाना सत्तासीन सरकारों की अनदेखी झेलता रहा है। गांव के बसने के साथ आज तक यहां का सबसे बड़ा मुद्दा गंदे पानी की निकासी रहा है। सत्ता परिवर्तन होता रहा, गांव के लोगों ने सरकारें चुनने में भी भागीदारी की, लेकिन आज गांव की कई गलियां गंदे पानी से लबालब हैं।

वर्तमान में गांव की आबादी 9000 से भी ज्यादा है और वोटर 3500 से 4000 के बीच हैं, लेकिन फिर भी किसी राजनैतिक दल ने गांव के बड़े मुद्दों की ओर ध्यान नहीं दिया। गांव में कई राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं, लेकिन आज भी यहां कोई खेल स्टेडियम तक नहीं बना है। इतना ही नहीं गांव में इस समय कोई पंचायत भी नहीं है। राजनैतिक विवादों के कारण गांव के सरपंच का पद भी खाली पड़ा है। ग्रामीण बताते हैं कि प्राचीन काल में गांव में दो द्वार होते थे, अब ये दरवाजे भी लुप्त होने की कगार पर हैं।

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सन 1398 में बसा था लदाना गांव

गांव का इतिहास भी गौरवमयी रही है। बाबा लदाना की धरती पर बाबा राजपुरी और बाबा बालनाथ जैसे महान साधु संत पैदा हुए हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यह गांव वर्ष 1398 में बसा था। इससे पहले गांव के लोग पास के गांव पाडला में रहते थे। उस समय अफगान का एक शासक मोहम्मद तैमूर लंग दिल्ली से लाहौर जाने के दौरान अकसर यहां से गुजरता था। उसके रास्ते में जो कोई आता था, उसका कत्लेआम कर दिया जाता था। गांव के लोगों ने यह स्थान छोड़ने का निर्णय लिया। पाडला से कुछ दूर बाबा बालनाथ अपनी कुटिया में रहते थे, उनके पास पानी व अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध थी। गांव के लोगों ने बाबा को जब स्थिति के बारे में बताया तो उन्होंने ग्रामीणों को तैमूर लंग के रास्ते से हटकर गांव बसाने की सलाह दी। गांव बसने के करीब 400 वर्ष बाद यहां यहां की पवित्र धरा पर महान साधु बाबा राजपुरी ने जन्म लिया, जिस कारण गांव का नाम बाबा लदाना पड़ गया।

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एक समय तंबाकू का बड़ा उत्पादक था गांव

कुटिया के पास ज्यादातर आबादी रहने लगी। लोग खेती, व्यापार व अन्य कार्य करने लगे। कहा जाता है कि गांव एक समय में तंबाकू का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया था। व्यापार के दौरान ज्यादातर वस्तुओं का लदान इसी गांव से होने लगा। इस कारण गांव का नाम लदाना पड़ गया। आज गांव में निकासी के साथ अन्य कई समस्याएं पैदा हो चुकी हैं। गांव में कई राष्ट्र स्तर के खिलाड़ी भी हैं, लेकिन खेल स्टेडियम जैसी सुविधाएं नहीं हैं। आज भी ग्रामीण गांव के मुद्दों को लेकर मंत्रियों और अफसरों के दरवाजे खटखटाने को बेबस हैं।

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नहीं सूखा गलियों से गंदा पानी

गांव बाबा लदाना के 70 वर्षीय बुजुर्ग धर्मपाल ने कहा कि गांव में कई गलियां आज भी गंदे पानी से लबालब हैं। पहले बस स्टॉप से गांव में आने वाली मुख्य गली में वर्षों तक बदहाल रही। अब एक वर्ष पहले ही उसका सुधार हुआ है। ऐसा समय आज तक नहीं आया, जब गांव की सभी गलियों से गंदगी साफ हुई हो। हमेशा किसी न किसी जगह पर यह परेशानी रहती है। जब भी कोई नेता या मंत्री गांव में प्रचार के लिए आता है तो उसे स्थिति साफ तौर पर दिखाई देती है। चुनाव जीतने के बाद कोई भी गांव की सुध तक लेना मुनासिब नहीं समझता।

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खिलाड़ियों के लिए नहीं बना खेल स्टेडियम

72 वर्षीय ग्रामीण ओमप्रकाश ने कहा कि गांव में कई राष्ट्र स्तर के खिलाड़ी रहे हैं। कुश्ती, कबड्डी और वॉलीबॉल के खिलाड़ी आज भी गांव में हैं। दुर्भाग्य है कि किसी भी सत्तापक्ष के राजनैतिक नुमांइदे ने खिलाड़ियों के लिए गांव में कुछ नहीं किया। दशहरे पर यहां बाबा राजपुरी का मेला लगता है, जहां देशभर से खिलाड़ी आते हैं। बार-बार मांग के बाद भी गांव में आज तक खेल स्टेडियम नहीं बना है।

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बस शेल्टर और न ही सार्वजनिक शौचालय

61 वर्षीय ग्रामीण ईश्वर सिंह ने बताया कि कैथल जाने के लिए 10 से ज्यादा गांवों के ग्रामीण बाबा लदाना से निकलते हैं, लेकिन आज गांव में बस शैल्टर तक की सुविधा नहीं है। जो पहले बना था, वह पूरी तरह बदहाल हो चुका है। मुख्य सड़क पर बनी मार्केट में 100 से भी ज्यादा दुकानें हैं, लेकिन कोई सार्वजनिक शौचालय तक नहीं हैं। ऐसे मुद्दों की तरफ कोई राजनैतिक पार्टी ध्यान नहीं दे रही।


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