आहूं गांव का ग्रामीण इतिहास शोध का एक अनुपम उदाहरण: न्यायाधीश चंद्रशेखर
गांव आहूं राज्य का ऐसा गांव बना गया है जिसके पास अपना व्यवस्थित प्रमाणित तथा लिखित इतिहास है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी शिव कुमार शर्मा द्वारा पांच वर्षों के शोध के बाद गांव आहूं पर लिखी 28 पृष्ठ की इस पुस्तक का विमोचन न्यायाधीश चंद्रशेखर वशिष्ठ ने एक वर्चुअल कार्यक्रम में किया।
जागरण संवाददाता, कैथल : गांव आहूं राज्य का ऐसा गांव बना गया है, जिसके पास अपना व्यवस्थित, प्रमाणित तथा लिखित इतिहास है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी शिव कुमार शर्मा द्वारा पांच वर्षों के शोध के बाद गांव आहूं पर लिखी 28 पृष्ठ की इस पुस्तक का विमोचन न्यायाधीश चंद्रशेखर वशिष्ठ ने एक वर्चुअल कार्यक्रम में किया। न्यायाधीश चंद्रशेखर वशिष्ठ ने कहा कि गांव का इतिहास अभी तक भी पूर्ण रूप से उपेक्षित ही रहा है। राजाओं महाराजाओं, रियासतों और नगरों के तो इतिहास लिखे गए, परंतु गांव के प्रामाणिक इतिहास लिखने पर इतिहासकारों का ध्यान नहीं गया। इसका एक बड़ा कारण गांव को लेकर किसी प्रामाणिक शोध सामग्री का उपलब्ध न होना है। इस दृष्टि से आहूं गांव का ग्रामीण इतिहास शोध का एक अनुपम उदाहरण है। पूंडरी के विधायक एवं हरियाणा पर्यटन निगम के चेयरमैन रणधीर गोलन ने कहा कि गांव का इतिहास रूचि पूर्ण बातों से भरा होता, लेकिन उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे खत्म होता रहता है। गांव के इतिहास में सबसे आकर्षण पहलू यह है कि इसमें अपने ही पूर्वजों तथा स्थानों का वर्णन होता है जिससे लोग सबसे अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
कैथल विधायक लीलाराम ने इस पुस्तक को जिले के लिए अत्यंत संग्रहणीय बताते हुए इतिहासकारों से आह्वान किया है कि अब गांवों के इतिहास लेखन की ओर चले। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार संजीव शर्मा ने कहा कि प्राचीन नदी सरस्वती के आसपास बसी वैदिक सभ्यता के अवशेष अब भी कुरुक्षेत्र जनपद के गांव गांव में बिखरे हुए हैं, बस उन्हें संजोने की आवश्यकता है। इस पर काफी शोध कार्य हुआ, लेकिन काफी कुछ होना अभी शेष है।
पुस्तक के लेखक शिव कुमार शर्मा ने बताया कि अहूं गांव अहन नामक प्राचीन तीर्थ के नाम पर पड़ा। इसका वर्णन ऋग्वेद में भी है। इस शोध कार्य के दौरान हज, बैबसाइटों, सैकड़ों भारत और पाकिस्तान के आहूं के जुड़े लोगों से बातचीत, अनेक संग्रहालयों से मिले दस्तावेजों ने बहुत मदद की। पुस्तक में गांव के प्रशासन के पुराने नियम कायदे, जमीन से संबंधित मामले, गांव की आबादी, शिक्षा, स्वास्थ्य व गांव के विशेष लोगों पर भी अलग अलग अध्याय है। गांव में एक किला भी था।
यह लगभग 100 साल तक एक सीख परिवार की जागीर भी रहा। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक को अब वह अंग्रेजी व उर्दू में भी अनुवादित करने पर विचार कर रहे हैं। बाद में उन्होंने गांव के मंदिर में इस पुस्तक के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां देने वाले आहूं के ही चौधरी बलवंत सिंह और चौधरी कर्ण सिंह को उनके पोट्रेट भेंट कर उन्हें सम्मानित किया तथा घर घर जाकर लोगों को पुस्तक की प्रतियां बांटी।