खुलेआम बिक रहे केमिकल से पके फल-सब्जियां, स्वास्थ्य विभाग मौन
फलों का उत्पादन जलवायु के अनुकूल होता है। ठंडे मौसम व गर्म मौसम में अलग-अलग फल होते हैं लेकिन बाजार में हर समय बेमौसमी फल मिल जाते हैं।
जागरण संवाददाता, जींद : फलों का उत्पादन जलवायु के अनुकूल होता है। ठंडे मौसम व गर्म मौसम में अलग-अलग फल होते हैं, लेकिन बाजार में हर समय बेमौसमी फल मिल जाते हैं। फल तो अपने समय पर ही पकता है, लेकिन कृत्रिम तरीके से इन्हें तैयार किया जाता है। शहर में खुलेआम रेहड़ियों पर केमिकल से पकाए गए फल और सब्जियां बिक रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग मौन है और इन पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
शहर में बिकने वाले फल-सब्जियों को किस तरह पकाया जाता है, स्वास्थ्य विभाग इसकी कभी जांच नहीं करता। आढ़तियों के अनुसार हैदराबाद, लखनऊ व अन्य दूसरे राज्यों जो भी आम व केला आता है। वो कच्चा लाया जाता है, जिसे केमिकल से पकाया जाता है। नियमानुसार मसालों से पके फल-सब्जियों की बिक्री नहीं कर सकते। लेकिन इसकी खुलेआम बिक्री हो रही है, जिस पर स्वास्थ्य विभाग का कोई ध्यान नहीं है। फलों को समय से पहले पकाने के लिए एथिलीन व अन्य केमिकल का प्रयोग किया जाता है। खासकर आम व केले को कच्चा तोड़ा जाता है और उसे केमिकल से पकाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार लगातार इस तरह के फ्रूट खाने से स्लो प्वाइजन का काम होता है। इसका सबसे अधिक असर किडनी पर पड़ता है। इस प्रकार के खाद्य पदार्थ के बारे में जागरूक होना बहुत जरूरी है। जागरूकता के अभाव में हम ऐसे फलों का सेवन करते रहते है, जिससे हम बीमार होते हैं।
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-अंधाधुंध स्प्रे का प्रयोग
सब्जी की फसल में बीमारी या कीड़ा लगने पर किसान जागरूकता के अभाव में अंधाधुंध स्प्रे का प्रयोग करते हैं। इस स्प्रे का असर करीब एक सप्ताह तक रहता है। लेकिन इससे पहले ही सब्जी को तोड़ कर किसान बाजार में ले आते हैं। मंडी में सब्जी पहुंचने के बाद कोई ऐसा मानक नहीं है, जिससे पता चले सके कि उसमें कितना जहर है और स्वास्थ्य पर इसका क्या असर पड़ेगा। सब्जी तोड़ने के बाद लंबे समय तक खराब ना हो, उसके लिए भी केमिकल का प्रयोग किया जाता है।
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फलों को पकाने में कैल्शियम कार्बाइड का प्रयोग किया जा रहा है। जिस पर देश में पूरी तरह से बैन है। लेकिन इसके बावजूद इसका प्रयोग हो रहा है। इसके सेवन से कैंसर का खतरा रहता है। किडनी व दूसरे शरीर के हिस्सों पर भी विपरीत असर पड़ता है। प्राकृतिक रूप से पके फलों का स्वाद अच्छा होता है। लेकिन कृत्रिम रूप से पके फल का स्वाद बदल जाता है। ये गैर कानूनी है और और पांच साल की सजा का प्रावधान है।
डॉ. सुरेश जैन, बाल रोग विशेषज्ञ
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