गले में सोने की चेन है, ¨जदगी बेचैन है: अचल मुनि
चातुर्मास प्रवचन में कभी-कभी विषय को आगे बढ़ाते हुए अचल मुनि ने फरमाया कि कभी-कभी मुस्कुराना भी सीखो। सुखी तन का और स्वस्थ मन का यही एक राज है कि मुस्कुराते रहो। आज इंसान रोना, मुंह चिढ़ाना, तिओड़ी चढ़ाना, मुंह सुजाना तो सीख चुका है, पर मुस्कुराना नहीं सीखा।
संवाद सूत्र, उचाना : चातुर्मास प्रवचन में कभी-कभी विषय को आगे बढ़ाते हुए अचल मुनि ने फरमाया कि कभी-कभी मुस्कुराना भी सीखो। सुखी तन का और स्वस्थ मन का यही एक राज है कि मुस्कुराते रहो। आज इंसान रोना, मुंह चिढ़ाना, तिओड़ी चढ़ाना, मुंह सुजाना तो सीख चुका है, पर मुस्कुराना नहीं सीखा। पुराने जमाने में घरों में बहुत सारे कमरे होते थे, पर एक कमरा उनमें और था जिसे कोप भवन कहते थे। जब किसी को भी गुस्सा आता था या मूड खराब होता था तो उस भवन में क्रोध करते थे। अर्थात गुस्सा करने के लिए एक कमरा और मुस्कुराने के लिए पूरा महल। एक छोटा सा बालक भी मुस्कुराते वक्त अच्छा लगता है। रोते बालक को कोई भी गोद उठाना पंसद नहीं करता। आज इंसान घर के बाहर तो बहुत मुस्कुराता है पर घर में आकर जाड़े भींच लेता है।
जैन संत ने कहा कि ¨जदगी हंसाए तब समझाना कि अच्छे कर्मो का फल मिल रहा है और जब ¨जदगी रुलाए तब समझ लेना कि अच्छे काम करने का समय आ गया है। किसी के हंसते चेहरे को देख कर ये मत समझना कि इसे कोई गम नहीं, बल्कि उसमें सहन करने की ताकत आ गई है, परंतु आज इंसान की मुस्कुराहट तो दूर हो गई है और बेचैनी ने चारों ओर घेरा डाला दिया है। आज ¨जदगी की सच्चाई है कि गले में भले ही चैन है पर ¨जदगी में चैन नहीं है। गले में सोने की चैन है, पर रात में सोने के लिए बेचैन है। ऐसा क्यों नहीं हो रहा? इसलिए क्योंकि इंसान खाता तो ठंडा-ठंडा है पर उगलता गरमागरम है। बाहर से तो इंसान शांत दिखता है पर दिमाग में तो नीलाम घर खुला है। मैं कहूंगा चैन से सोना है तो जाग जाइये और चैन (सुख की नींद) चाहिए तो त्याग चाहिए। ¨जदगी में कई मुश्किलें आती है और इंसान इनसे घबराता है। न जाने कैसे हजारों कांटों के बीच रहकर भी ये गुलाब रोज मुस्कुराता है।