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राहगीरी के बहाने भी नहीं जुटी भीड़ तो बुलाए स्कूल और कॉलेज के बच्चे, कल से शुरू हैं पेपर

जिला प्रशासन कई महीने से राहगीरी कार्यक्रम कर रहा है। यह कार्यक्रम हर बार रविवार को छुट्टी के दिन होता है। पहली बार मंगलवार को वर्किंग डे पर इसका आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 01:42 AM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 01:42 AM (IST)
राहगीरी के बहाने भी नहीं जुटी भीड़ तो बुलाए स्कूल और कॉलेज के बच्चे, कल से शुरू हैं पेपर
राहगीरी के बहाने भी नहीं जुटी भीड़ तो बुलाए स्कूल और कॉलेज के बच्चे, कल से शुरू हैं पेपर

जागरण संवाददाता, जींद : जिला प्रशासन कई महीने से राहगीरी कार्यक्रम कर रहा है। यह कार्यक्रम हर बार रविवार को छुट्टी के दिन होता है। पहली बार मंगलवार को वर्किंग डे पर इसका आयोजन किया गया। इसका मकसद था कि राहगीरी के बहाने लोगों की भीड़ जुटा ली जाए, ताकि 10 बजे से शुरू होने वाला खिलाड़ियों का सम्मान समारोह सफल हो जाए, लेकिन पौने 10 बजे तक राहगीरी में शहर के 10 लोग भी नहीं जुटे तो अधिकारियों के माथे पर पसीना आ गया। स्टेडियम की सीढि़यों पर दर्शकों के बैठने के बैठने की व्यवस्था थी, वहां एक स्कूल के बच्चों के अलावा कोई नहीं था। ऐसे में तुरंत डीईओ को फोन घुमाया गया और स्कूल व कॉलेजों से बसों में भरकर बच्चे बुलाए, जबकि एक दिन बाद ही स्कूली बच्चों के पेपर शुरू होने हैं।

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राहगीरी में प्रस्तुति देने के लिए कई स्कूलों से सांस्कृतिक टीमों को बुलाया गया था, लेकिन लोगों के न आने के कारण ये टीमें बैठी रहीं। 10 बजे जब प्राइवेट स्कूलों की बसों से शहर के सरकारी स्कूलों और कॉलजों के विद्यार्थियों को स्टेडियम में लाया गया, तब राहगीरी के सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू हुए। लेकिन 10 बजे सम्मान समारोह के लिए आमंत्रित खिलाड़ी भी पहुंचना शुरू हो गए थे। करीब दो घंटे तक स्कूलों की सांस्कृतिक टीमें और हरियाणवी कलाकार अमित ढुल और रामकेश जीवनपुरिया ही बच्चों का मनोरंजन करते रहे। आयोजकों का ध्यान सिर्फ इस बात पर था कि किसी तरह कार्यक्रम के समापन तक स्कूल और कॉलेज के लड़के-लड़कियां स्टेडियम में डटे रहें और आयोजन सफल हो जाए। किसी भी खिलाड़ी का परिचय नहीं कराया, न संघर्ष गाथा बताई

तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम में आमंत्रित किए गए 58 खिलाड़ियों में से एक का भी भीड़ से परिचय नहीं कराया गया। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम चमकाने वाले इन खिलाड़ियों ने किस तरह मेहनत की? कहां अपनी प्रेक्टिस की? उन्होंने अपने आप को किस तरह तराशा? अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा? इस दौरान रास्ते में किस तरह की रुकावटें आईं? इन सब ¨बदुओं पर खिलाड़ी अपनी बात रखते तो स्कूल-कॉलेजों से बुलाए गए युवाओं के लिए कार्यक्रम काफी फायदेमंद रह सकता था, लेकिन प्रशासन पहले नाच गाने कराता रहा और बाद में केंद्रीय मंत्री के भाषण के बाद सीधे खिलाड़ियों को सम्मानित कार्यक्रम को संपन्न करा दिया।

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बसों में ठूंसे गए बच्चे

समारोह में आए स्कूली विद्यार्थियों कमल और राजेश ने बताया कि परसों से उनके पेपर शुरू होने हैं। इन पेपरों में जो अंक आएंगे, वे एसेसमेंट में जुड़ेंगे। आज स्कूल में तैयारी करानी चाहिए थी, लेकिन बसों में भरकर यहां से ले आए। तीन घंटे तक सिर्फ किलकियां ही मरवाई गई। किसी खिलाड़ी का संघर्ष भी नहीं जान सके। यहां किसी तरह रिफ्रेशमेंट का भी प्रबंध नहीं था।

सीनियर सेकेंडरी स्कूल से आए विद्यार्थी पवन ने कहा कि निजी स्कूल की बस में डंगरों की तरह ठूंस कर लाया गया है, जबकि वापसी के समय बस गिनती के बच्चों को लेकर आ गई। इस कारण बड़ी संख्या में बच्चे पैदल या ऑटो में बैठक घर पहुंचे।

फोटो 10--

बस वापस नहीं ले गई

अंकित नामक छात्र ने बताया, 'शहर के राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ता हूं। हमें यहां लाने के लिए प्राइवेट स्कूल की बस हमारे स्कूल में गई थी, लेकिन अब वह बस कुछेक बच्चों को लेकर चली गई। अब हम ऑटो में जाएंगे।' सिर्फ गाने ही सुनाए

छात्र अजय ने कहा, 'बृहस्पतिवार से हमारे पेपर शुरू होने हैं। फिर भी स्कूल में तैयारी कराने के बजाय हमें यहां भीड़ जुटाने के लिए ही बुलाया गया। यहां किसी खिलाड़ी की बात भी नहीं सुन सके। सिर्फ गाने ही गाए गए।'

--डीईओ बोले : मोटिवेशन के लिए भेजे गए थे विद्यार्थी

जिला शिक्षा अधिकारी अजीत श्योराण ने कहा कि यह सरकारी समारोह न होकर खिलाड़ियों का सम्मान समारोह था। स्कली बच्चों को इसलिए भेजा गया था कि वे चैंपियन खिलाड़ियों से प्रेरणा ले सकें। बच्चों को पता चले कि इसी जिले के खिलाड़ियों ने किस तरह मेहनत करके विश्व स्तर पर मुकाम हासिल किया है। परसों से पेपर शुरू होने का सवाल है तो कल का पूरा दिन है। 24 घंटे कोई नहीं पढ़ता है। जहां तक चैंपियन खिलाड़ियों को बोलने का मौका नहीं मिलने और विद्यार्थियों को प्रेरणा न मिलने का सवाल है, तो यह आर्गेनाइजरों का काम है।

चैंपियन खिलाड़ियों से दिलानी थी प्रेरणा, किलकियां ही मरवाई

फोटो: 10बी, 10सी

कर्मपाल गिल, जींद

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जींद जिले व देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों के सम्मान समारोह में स्कूल व कॉलेज के बच्चों को इसलिए बुलाया गया था कि वे खिलाड़ियों से प्रेरणा ले सकें। लेकिन तीन घंटे चले प्रोग्राम में एक मिनट भी प्रेरणा की बात नहीं हुई। इंडोनेशिया में एशियन गेम्स में ट्रैप शू¨टग में सिल्वर मेडल लाना वाला लक्ष्य श्योराण दो घंटे घंटे से ज्यादा समय तक बैठा रहा। कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी घंटों बैठे रहे, लेकिन एक मिनट के लिए भी उन्हें माइक नहीं थमाया गया ताकि वे युवाओं को बता सकें कि किस तरह मेहनत और संघर्ष करके उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। इन चैंपियन खिलाड़ियों के पास युवाओं को प्रेरणा देने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन वे सिर्फ शो पीस बनकर ही मंच पर बैठे रहे। मंच पर भी अव्यवस्थाओं का आलम था। खिलाड़ियों की सीटों पर दूसरे लोगों ने कब्जा कर रखा था। अंतरराष्ट्रीय स्तर के एक खिलाड़ी ने बताया कि तीन घंटे सिर्फ गानों और किलकियों में ही निकाल दिए। आज युवाओं की इतनी भीड़ जुटी हुई थी, जिसका प्रशासन को फायदा उठाना चाहिए था। सभी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को बोलने के लिए दो-दो मिनट भी मिल जाते तो वे जिले के यूथ को मोटिवेट कर सकते थे। यह मोटिवेशन उनकी पढ़ाई और खेल दोनों में फायदेमंद रहता। लेकिन प्रशासन को यह डर था कि कहीं कार्यक्रम फेल न हो जाए, इसलिए सिर्फ नाच-गाने ही होते रहे। हरियाणवी कलाकार अमित ढुल और रामकेश जीवनपुरिया ने गाने सुनाए तो स्कूली छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। --मंत्री बीरेंद्र की नसीहत : किलकी नहीं, ताली बजाओ

केंद्रीय मंत्री चौ. बीरेंद्र ¨सह ने भी अपने भाषण में भी कहा कि अच्छे काम पर किलकियां मारने के बजाय तालियां बजानी चाहिए। जब उन्होंने निडानी गांव के पूर्व सरपंच दलीप ¨सह का नाम पूछा तो युवाओं ने किलकी मारनी शुरू कर दी। इस पर केंद्रीय मंत्री ने युवाओं को नसीहत देते हुए अच्छे काम पर किलकी नहीं मारते और हे.. हे. नहीं करते बल्कि तालियां बजाते हैं। यह किलकी मारना पिछड़ेपन की निशानी है। कहीं बाहर जाकर किलकियां मारोगे तो लोग कहेंगे कि कहां से आ गए? आज इन चैंपियन खिलाड़ियों से प्रेरणा लेने की जरूरत है।


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