संत रविदास दीन-दुखियों के कल्याण के लिए धरा पर आए थे : स्वामी राघवानंद
जींद के निर्जन गांव के घीसापंथी आश्रम में पूर्णिमा व संत रविदास जी की जयंती मनाई गई। आश्रम के संचालक स्वामी राघवानंद ने श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कहा कि संत रविदास दीन दुखियों के कल्याण के लिए इस धरा पर प्रकट हुए थे। उन्होंने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। वे जूते बनाने का काम पूरी लगन और परिश्रम से करते थे। उन्होंने संत रामानंद के शिष्य बनकर आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया।
जागरण संवाददाता, जींद: निर्जन गांव के घीसापंथी आश्रम में पूर्णिमा व संत रविदास जी की जयंती मनाई गई। आश्रम के संचालक स्वामी राघवानंद ने श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कहा कि संत रविदास दीन दुखियों के कल्याण के लिए इस धरा पर प्रकट हुए थे। उन्होंने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। वे जूते बनाने का काम पूरी लगन और परिश्रम से करते थे। उन्होंने संत रामानंद के शिष्य बनकर आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया।
संत रविदास के मधुर व्यवहार के कारण उनके संपर्क में आने वाले लोग काफी खुश रहते थे। वे शुरू से ही परोपकारी तथा दयालु थे। दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-संतों की सहायता करने में उनको विशेष आनंद मिलता था। साधु-संतों से बिना रुपये लिए उन्हें जूते भेंट कर दिया करते थे। अपना काम करने के बाद वे ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे। एक बार उनके पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। एक शिष्य ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता, किन्तु गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहां लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। इसीलिए कहावत प्रचलित हो गई कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। इस मौके पर स्वामी राघवानंद की अगुआई में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद भी छका।