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बचपन में झेली गरीबी, घर में एक समय बनती थी रोटी, शिक्षक बन संवारा बच्चों का भविष्य

बचपन में मैंने बहुत गरीबी देखी है। घर के आर्थिक हालात इतने कमजोर थे कि एक समय ही रोटी बनती थी। इस कारण छोटी उम्र में बहुत मेहनत की। पढ़ाई करते हुए फोल्डिग बेड बनाए। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 10:40 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 06:36 AM (IST)
बचपन में झेली गरीबी, घर में एक समय बनती थी रोटी, शिक्षक बन संवारा बच्चों का भविष्य
बचपन में झेली गरीबी, घर में एक समय बनती थी रोटी, शिक्षक बन संवारा बच्चों का भविष्य

कर्मपाल गिल, जींद

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बचपन में मैंने बहुत गरीबी देखी है। घर के आर्थिक हालात इतने कमजोर थे कि एक समय ही रोटी बनती थी। इस कारण छोटी उम्र में बहुत मेहनत की। पढ़ाई करते हुए फोल्डिग बेड बनाए। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया। तब टीचर्स की एक बात समझ में आ गई थी कि पढ़ाई से जिदगी की तस्वीर बदली जा सकती है, इसलिए जमकर पढ़ाई की और घर का खर्च चलाने के लिए दूसरे काम भी किए। 1985 में जब शिक्षा विभाग में टीचर बना तो गरीब बच्चों की मदद की। पूरी लगन और मेहनत से बच्चों को पढ़ाया। मेरे पढ़ाए बच्चे आज उच्च पदों पर आसीन है। यह संघर्ष गाथा है ईक्कस के राजकीय सीनियर सेकेंडर से रिटायर प्रिसिपल राजकुमार वर्मा की।

पंजाब में पैदा हुए राजकुमार वर्मा ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि उनके शिक्षक इंद्रजीत शास्त्री, कौशल किशोर, एनडी गुप्ता, शांता लांबा और सहगल आदि रहे, जिन्होंने उनको लगातार मोटिवेट किया और सही मार्गदर्शन दिया। ये गुरुजी कहते थे कि टीचर का मतलब है कि बच्चों के लिए पूरी तरह से समर्पित हो जाओ। सहगल सर कहते थे कि कभी कर्म से पीछे से मत हटाओ। इसलिए जब हिदी का लेक्चरर बना तो यही बात गांठ बांध ली। पूरी लग्न से बच्चों को पढ़ाया। मेरा रिजल्ट कई बार सौ फीसदी रहा। जिस स्कूल में रहा, वहां दूसरे टीचर्स को भी बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित किया। बच्चों को प्रेरणा दी कि समाज से जुड़े रहें। माता-पिता और गुरुजन का आदर करें। कई बार रक्तदान शिविर लगवाए। खुद भी 16 बार रक्तदान किया। जो बच्चा गरीब परिवार से होता था, उसे किताबों, वर्दी के लिए आर्थिक मदद दी। ईक्कस स्कूल में रिटायरमेंट के समय ढाई लाख रुपये से एक कमरा बनवाया। दसवीं व बारहवीं के टॉपर बच्चों को हर साल नकद पुरस्कार देने की शुरुआत कर दी है। कई स्कूल के मुखिया से संपर्क करके कहा है कि ऑनरेरियम तौर पर हिदी की 11वीं और 12वीं की क्लास लेने के लिए वह हर समय तैयार हैं। इसके लिए स्कूल से कुछ नहीं लेंगे। राजकुमार वर्मा कहते हैं कि उनके इस काम में पत्नी सुविधा रानी भी मदद करती हैं, जो जंक्शन स्थित राजकीय स्कूल में इंचार्ज हैं। बेटी शिल्पा और सुरभि को भी यही सीख दी है कि जरूरतमंद की मदद से पीछे न हटा जाए। --अब गुरुओं का आदर हुआ कम

राजकुमार वर्मा कहते हैं कि पहले बच्चों को शिक्षक से डर लगता था। माता-पिता भी शिक्षक का सहयोग करते थे। स्कूल आकर कहते थे कि बच्चा न पढ़ा तो पिटाई कर देना। अब हालात बदल गए हैं। अब बच्चे को पीटते हैं कि माता-पिता स्कूल में उलाहना देने आ जाते हैं। वह कहते हैं कि पहले संयुक्त परिवार होते थे और एक घर में कई बच्चे होते थे। आजकल हर घर में एक या दो बच्चे हैं। इसलिए बच्चे भी मां-बाप को इमोशनली ब्लैकमेल करने लग गए हैं। साथ ही वे कहते हैं कि नाममात्र संख्या में एकाध टीचर भी रास्ता भटक गए। शिक्षकों के बारे में छवि बन गई कि वे स्कूलों बीड़ी-सिगरेट पीते हैं। दूसरे धंधे करके पैसे कमाते हैं। बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते। इससे सारा शिक्षक समुदाय बदनाम हो गया। वह कहते हैं कि जब वे वे पढ़ते थे तब 95 प्रतिशत बच्चे शिक्षकों का आदर करते थे। अब उलटा हो गया है और 95 प्रतिशत बच्चों में टीचर के प्रति आदर का भाव नहीं है। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि शिक्षक अपना कर्म सही करे तो बच्चे पूरा आदर करते हैं।


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