युद्ध को केवल अंतिम विकल्प मानते थे शिवाजी : प्रो. व्यास
भारत में सुराज की स्थापना के लिए शिवाजी की शासन नीति एवं शासन व्यवस्था से सीख लेने की आवश्यकता है। पूर्व में रोहतक हिदू कॉलेज में राजनीति शास्त्र के शिक्षक रहे प्रो. सीताराम व्यास ने शिवाजी और सुराज विषय पर बोलते हुए चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जींद व चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा के शिक्षकों को संबोधित किया।
जागरण संवाददाता, जींद : भारत में सुराज की स्थापना के लिए शिवाजी की शासन नीति एवं शासन व्यवस्था से सीख लेने की आवश्यकता है। पूर्व में रोहतक हिदू कॉलेज में राजनीति शास्त्र के शिक्षक रहे प्रो. सीताराम व्यास ने शिवाजी और सुराज विषय पर बोलते हुए चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय जींद व चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा के शिक्षकों को संबोधित किया। प्रो. सीताराम व्यास उत्तर क्षेत्र कार्यवाह के रूप में दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख का काम देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिवाजी में सुराज स्थापित करने वाले शासक के सभी गुण विद्यमान थे। शिवाजी योग्य व्यक्तियों से सलाह लेकर ही कार्य किया करते थे। उनमें व्यक्तियों का आंकलन करने की प्रभावी क्षमता थी। शिवाजी निडर थे, लेकिन युद्ध को वह केवल अंतिम विकल्प ही मानते थे। जिस प्रकार से सर छोटूराम तत्कालीन पंजाब के किसानों के मसीहा बने। उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी ने भी जागीरदारी प्रथा खत्म करके अपने राज्य काल में किसानों के शोषण समाप्त किया था। शिवाजी पहले राजा थे, जिन्होंने आज से 350 वर्ष पहले अपनी नेवी की सेना खड़ी की थी। वे टेक्नोलॉजी के आयात विश्वास रखते थे। वस्तुओं के आयात की अनुमति उनके राज्य में नहीं थी। वीसी प्रो. राजबीर सोलंकी ने शिवाजी का अर्थ एवं कूटनीति में भारत के महानतम शिक्षक चाणक्य को अपना आधार बताया। सोलंकी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी द्वारा जीते हुए अनेकों किले आज भी उस महान शासक की गौरव गाथा, साहस और बुद्धिमता की याद दिलाते हैं। व्याख्यान के लिए वीसी ने सीआरएसयू के रजिस्ट्रार प्रो. राजेश पूनिया और चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय सिरसा के रजिस्ट्रार डा. राकेश वधवा को बधाई दी। प्रो. राजेश पूनिया ने करोना के समय में महापुरुषों की जीवनी पढ़ने का शिक्षकों को आह्वान किया। डा. वधवा ने हिदू साम्राज्य की नींव रखने में शिवाजी के योगदान का उल्लेख किया।