Move to Jagran APP

संध्या छाया ने दर्शकों के दिल-दिमाग को हिलाया, आंखों से निकले आंसू

जागरण संवाददाता, जींद : जिन बेटों को पाल-पोस कर बड़ा किया और खूब पढ़ाया-लिखाया। बुढ़ापे

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Sep 2017 11:50 PM (IST)Updated: Sun, 10 Sep 2017 11:50 PM (IST)
संध्या छाया ने दर्शकों के दिल-दिमाग को हिलाया, आंखों से निकले आंसू
संध्या छाया ने दर्शकों के दिल-दिमाग को हिलाया, आंखों से निकले आंसू

जागरण संवाददाता, जींद : जिन बेटों को पाल-पोस कर बड़ा किया और खूब पढ़ाया-लिखाया। बुढ़ापे में वे दोनों दूर हो गए। बड़ा बेटा इंजीनियर बनकर अमेरिका चला गया और मां-बाप को बताए बिना वहीं शादी कर ली। छोटा बेटा सेना में भर्ती हो गया और भारत-पाक युद्ध में शहीद हो गया। छोटे भाई की मौत के बाद अमेरिका से बड़ा बेटा घर पहुंचता है तो मां-बाप कहते हैं कि अब यहीं रह जा। लेकिन वह कहता है कि यह देश चोरों, भ्रष्टाचारियों का है। मैं यहां नहीं रह सकता। वह बूढ़े मां-बाप को छोड़कर वापस चला जाता है। तब मां-बाप की हालत देखकर हर दर्शक की आंख में पानी आ जाता है। यह सीन था संध्या छाया नाटक का, जिसका मंचन शनिवार शाम दीवान बालकृष्ण रंगशाला में किया गया।

loksabha election banner

जिला सांस्कृतिक समन्वय समिति द्वारा जीवन की हकीकत का बयान करता यह नाटक एक एकल परिवार में वृद्धों की असली ¨जदगी को चरितार्थ करता नजर आया। नाटक में दर्शाया गया कि परिवार के युवा सदस्य बाहर चले जाते हैं। वृद्ध माता-पिता अपने आप को अकेला पाते हैं। वे पोत्र-पोत्रियों के साथ खेलना चाहते हैं, लेकिन अच्छी नौकरी का लालसा में परिवार के युवा सदस्य बाहर चले जाते हैं। वहीं पर जाकर जीवन संगिनी का चयन कर लेते हैं।

मां-बाप एक अच्छी वधु की लालसा में कई प्रकार के सपने संजोते हैं। उनके सपने उस वक्त टूट जाते हैं, जब उन्हें पता लगता है कि उनकी संतान ने उन्हें पूछे बिना ही शादी के बंधन में अपने आप को बांध लिया है। बेटे सिर्फ पैसे कमाने की होड़ में मां-बाप को भूला कर विदेश में ही आबाद हो जाते हैं। मां-बाप पारिवारिक खुशी के लिए पेइंग गेस्ट को रखकर उसमें भी खुशी ढूंढ़ने का प्रयास करते हैं। आखिरकार अकेलापन उन्हें इतना तोड़ देता है कि दोनों नशे की गोलियां खाकर मरने का निर्णय ले लेते हैं। तभी नौकर अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर पहुंचता है। इससे बूढ़े दंपति के चेहरे पर खुशी आ जाती है और ¨जदगी जीने का मकसद मिल जाता है। तभी मंच पर अंधेरा छा जाता है और रंगशाला तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठती है।

रंगमंच बुराइयां रोकने में कारगर

नाटक का शुभारंभ करते हुए एडीसी धीरेंद्र खडगटा ने कहा कि नाटक विद्या में रंगमंच कर्मी अपनी कला के माध्यम से ऐसा दृश्य बना देता है, जिसका मानस पटल पर अमिट चित्र अंकित हो जाता है। कई बार सामाजिक बुराइयों पर रंगकर्मी इतने प्रभावी तरीके से अपनी कला का प्रदर्शन करता है कि दर्शक उसे किसी भी तरह भूला नहीं पाते और ऐसी स्मृतियां मनुष्य को बुराई करने से रोकने में कारगर साबित होती है। जयवंत दलवी द्वारा लिखित नाटक में निदेशक सुदेश शर्मा ने विशेष पात्र की भूमिका निभाई। सुदेश शर्मा हरियाणा कला परिषद के वाइस चेयरमैन भी हैं। इस मौके पर आइबी के एसपी मुकेश ¨सगला, रमेश ¨सगला, थियेटर कला से जुड़े प्रो. रोशन लाल श्योराण, प्रो. वजीर खटकड़, जयवीर ढांडा, सुनिता मलिक, डॉ. पवन आर्य, हनीफ खान उपस्थित रहे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.