रेलवे कर्मियों के बनेंगे ई-पास, कागजी प्रक्रिया का झंझट होगा खत्म
कोरोना संक्रमण काल में रेलवे ने अपने कर्मचारियों की सुविधा के लिए एचआरएमएस (ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम) लागू किया है। इसके तहत कर्मचारियों को रेलवे पास एवं सुविधा टिकट ऑर्डर के लिए विभागों के चक्कर नहीं लगाने होंगे।
जागरण संवाददाता, जींद : कोरोना संक्रमण काल में रेलवे ने अपने कर्मचारियों की सुविधा के लिए एचआरएमएस (ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम) लागू किया है। इसके तहत कर्मचारियों को रेलवे पास एवं सुविधा टिकट ऑर्डर के लिए विभागों के चक्कर नहीं लगाने होंगे। रेलकर्मियों को भी ई-पास एवं पीटीओ यानि प्रिविलेज टिकट ऑर्डर का लाभ मिलेगा। वहीं रेलवे ने यात्रियों को भी मासिक और तिमाही पास ऑनलाइन देने की तैयारी कर ली है।
अभी तक रेल कर्मचारियों को रिजर्वेशन कराने के लिए काउंटर पर जाकर प्रिटिड रेलवे पास से टिकट बुक करनी पड़ती थी। अब ई-पास लागू होने से पूरी व्यवस्था पेपरलेस हो जाएगी। रेल अधिकारी और कर्मचारी घर बैठे रेल टिकट का रिजर्वेशन करवा सकेंगे। राजपत्रित अधिकारियों को एक साल में छह और सेवानिवृत्त होने पर तीन रेल पास मिलते हैं। इस पास के जरिए वह एवं उनके आश्रित मुफ्त रेल सफर करते हैं। रेल कर्मियों को चार पीटीओ यानि प्रिविलेज टिकट ऑर्डर भी मिलता है। पीटीओ से सफर करने के लिए उन्हें एक तिहाई किराया देना पड़ता है।
मोबाइल पर आए कोड को रखना होगा सेव
अभी तक रेलकर्मियों को अपने पास बनवाने के लिए विभाग के चक्कर लगाने पड़ते थे। कागजी प्रक्रिया के दौरान रेल पास सुविधा का दुरुपयोग होने का अंदेशा भी बना रहता था, लेकिन अब पूरा डाटा ऑनलाइन अपडेट रहेगा। सिस्टम ई-पास से जुड़ी तमाम जानकारी दो सेकेंड में ही अधिकारियों व कर्मचारियों को दे देगा। यह सुविधा मिलने के बाद कर्मचारियों को पास लेकर टिकट काउंटर पर जाने और यात्रा के दौरान इसे संभालकर रखने की जरूरत नहीं होगी। अब सिर्फ मोबाइल पर आए कोड को सेव रखना होगा।
वर्जन
रेलवे का यह कदम सराहनीय है। इससे लंबी कागजी कार्रवाई से राहत मिलेगी और इससे फर्जीवाड़ा भी रुकेगा। कई जगह पर दूसरे के पास लेकर सफर करने के मामले भी सामने आ चुके हैं। इस कार्य के लिए वाणिज्य विभाग के सॉफ्टवेयर में जरूरी बदलाव किया है। इसके साथ ही आरक्षण प्रणाली के सॉफ्टवेयर में भी बदलाव किया गया है, इससे कर्मचारियों को टिकट काउंटर पर किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।
-सुरेंद्र छोक्कर, सीनियर इंजीनियर, जींद