अभी भी 2019 में ही जी रहे हैं साहब जी
साल बेशक 2020 लग गया हो लेकिन लघु सचिवालय में चलने वाले विभिन्न दफ्तरों के साहब जी अभी भी 2019 में ही जी रहे हैं।
साल बेशक 2020 लग गया हो लेकिन लघु सचिवालय में चलने वाले विभिन्न दफ्तरों के साहब जी अभी भी 2019 में ही जी रहे हैं। दरअसल लघु सचिवालय में चलने वाले विभिन्न विभागों के दफ्तरों में अभी भी पिछले साल के कैलेंडर ही टंगे हुए हैं। लघु सचिवालय में 15 से ज्यादा सरकारी महकमे चल रहे हैं, जिनमें ए क्लास अफसर भी बैठते हैं। 2019 साल को बीते 23 दिन बीत चुके हैं लेकिन लघु सचिवालय के इन भवनों में शायद अभी तक नए कैलेंडर नहीं पहुंचे हैं। हालांकि एक-दो विभाग में जरूर नए कैलेंडर टंगे हैं। यह कर्मचारी अपने निजी पैसों से खरीदकर लाए हैं या विभाग की तरफ से भेजे गए हैं, इसका पता नहीं। कर्मचारियों की मानें तो जैसे ही नए कैलेंडर आ जाएंगे, पुराने कैलेंडर उतार दिए जाएंगे और उनकी जगह नए कैलेंडर लगा दिए जाएंगे।
अस्पताल के गेट पर ऑटो का कब्जा
गोहाना रोड पर राजकीय पीजी कॉलेज के गेट के सामने नागरिक अस्पताल का जो नया गेट है, वहां हर समय आटो खड़े रहते हैं। इससे अस्पताल के अंदर जाने के लिए यह रास्ता पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया जाता है। बाइक तक ले जाने के लिए रास्ता नहीं मिलता तो एंबुलेंस कैसे निकल पाएगी, यह बड़ा सवाल है। इंमरजेंसी में एंबुलेंस के लिए यहां से रास्ता मिलना संभव नहीं है। अस्पताल और कॉलेज की सवारी यहां से बैठती हैं, इसलिए यहां ऑटो चालक एक-दूसरे के पीछे खड़े रहते हैं। हालांकि इसी जगह पर एक पुलिस कर्मी की ड्यूटी है लेकिन पुलिस कर्मी भी बेचारा पूरे दिन आटो चालकों को हटा-हटाकर थक जाता है लेकिन आटो चालक हैं कि मानते ही नहीं। आटो चालकों की यह दादागीरी और पुलिस की ढील किसी न दिन किसी मरीज की जान पर भारी पड़ सकती है।
आगे-आगे प्राइवेट, पीछे-पीछे सरकारी बस
रोडवेज का जींद डिपो घाटे से जूझ रहा है। हालांकि रोडवेज बस सेवा एक जन सुविधा है और इसमें घाटा-मुनाफा चलता रहता है, लेकिन कुछ हद तक रोडवेज प्रबंधन भी घाटे के लिए जिम्मेदार है। प्रबंधन घाटे के लिए जिम्मेदार यूं है कि जिले के कुछ रूटों पर रोडवेज के आगे-आगे प्राइवेट बसें चलती हैं। यह प्राइवेट बसें रोडवेज बस से कुछ मिनट पहले ही निकलकर हर अड्डे से सवारियां उठाते हुए चलती हैं। इससे पीछे से आ रही रोडवेज बस को सवारी नहीं मिल पाती। इसके अलावा प्राइवेट बस चालक जहां पर भी सवारी दिखती है, वहीं ब्रेक लगा देते हैं और आराम से सवारी को बस में चढ़ाते हैं, इसके विपरीत रोडवेज बस चालक बस स्टॉप के अलावा कहीं पर 4 से 5 सवारियां भी खड़ी होंगी तो ब्रेक नहीं लगाते। ऐसे में हम तो कहेंगे ही कि घाटे के लिए अपने ही जिम्मेदार हैं।
पंचायती राज विभाग में जेई के नीचे पद ही नहीं
जिन सरकारी विभागों में जेई की पोस्ट होती हैं, वहां जेई के नीचे मेट, बेलदार या चौकीदार होते हैं लेकिन जींद में पंचायती राज विभाग में जेई के नीचे कोई पद ही नहीं है। इसका सबसे बड़ा नुक्सान विभाग झेल रहा है, क्योंकि कंस्ट्रक्शन साइट पर सामान की देखरेख से लेकर दूसरे काम जेई को खुद देखने पड़ते हैं। कई गांवों में ग्रामीणों का सहयोग नहीं मिल पाता, जिससे कंस्ट्रक्शन साइट लोहे का, सीमेंट या दूसरा सामान चोरी हो जाता है तो इसकी रिकवरी भी जेई के खाते से की जाती है। इस विभाग के जेई खुद को सबसे बदनसीब मान रोना रो रहे हैं कि वह कहां आकर फंस गए। पहले ही जिले में जेई के 6 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं और जो कार्यरत हैं, वह दूसरे कामों के बोझ तले दबे पड़े हैं।