मुंशी प्रेमचंद ने हिदी को पाला-पोसा, बड़ा किया व संस्कार दिए : डा. मंजुलता
अखिल भारतीय साहित्य परिषद की अध्यक्ष डॉक्टर मंजुलता ने कहा कि 31 जुलाई का दिन समूचे भारतवर्ष के लिए गौरव का दिन है।
जागरण संवाददाता, जींद : अखिल भारतीय साहित्य परिषद की अध्यक्ष डॉक्टर मंजुलता ने कहा कि 31 जुलाई का दिन समूचे भारतवर्ष के लिए गौरव का दिन है। इसी दिन विश्व विख्यात साहित्यकार, कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था। उनकी स्मृति में परिषद ने लोक रंग धारा न्यास के सौजन्य से मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह में ऑनलाइन वैचारिक संगोष्ठी आयोजित की, जिसमें साहित्यकार, शिक्षाविद्, पत्रकार, हिदी साधक, हिदी साहित्य के शोधार्थी और विद्यार्थी शामिल हुए।
डा. मंजुलता ने संगोष्ठी के अध्यक्ष हिन्दी के विद्वान, शिक्षाविद्, डॉक्टर अजायब सिंह का स्वागत करते हुए कि प्रेमचंद ने हिदी को पाला पोसा, बड़ा किया और संस्कार दिए। उन्होंने कहानी और उपन्यास की ऐसी परंपरा का विकास किया। जिसने एक पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया अपने बाद की एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य को आम आदमी के साथ और जमीन के साथ जोड़ा। डॉक्टर जगदीप शर्मा राही ने कहा कि मुंशी जी महान साहित्यकार हैं, जिनके सम्मान में हर शब्द छोटा प्रतीत होता है। कवि आजाद जुलानी, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हिदी विभाग के प्रोफेसर बृजपाल सिंह, सोनीपत से आई प्राध्यापिका अंजलि सहवाग व साहित्य परिषद के परामर्शक एवं हिदी विषय के विद्वान डा. राम मेहर सिंह ने भी प्रेमचंद को नमन किया। डा. राममेहर ने प्रेमचंद ने अतीत का गौरव राग नहीं गाया, न ही भविष्य की हैरत अंगेज कल्पना की। उन्होंने तो ईमानदारी के साथ अपने समय के वर्तमान का विश्लेषण करते हुए वे रचनाएं रची जो अमर हो गई हैं, क्योंकि सच्चाई के धरातल पर लिखी गई थी। कवयित्री मंजू मानव, पत्रकार मनजीत सिंह, प्रोफेसर हरज्ञान, प्रोफेसर संजय कुमार, हिदी साधक विक्रम सिंह, डा. क्यूटी, छात्रा कुमारी कविता, अनीता, शोधार्थी अमित ने भी मुंशी प्रेमचंद के प्रति अपने भाव पुष्प अर्पित किए। लोकरंग धारा न्यास की ओर से डा. शिवनी सिंह ने सभी का आभार जताया।
मुंशी प्रेमचंद का साहित्य समूचे भारत का दर्शन
रंगकर्मी रमेश भनवाला ने बहुत सादर भाव से कहां कि मुंशी जी का साहित्य हमारी अमूल्य धरोहर है जिस पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए क्योंकि मुंशी जी केवल आज ही प्रासंगिक नहीं है, अपितु आने वाले हर समय, हर युग में प्रासंगिक रहेंगे विषम परिस्थितियों में मार्गदर्शन करते रहेंगे। डॉक्टर अजायब सिंह ने परिषद की गौरवशीलता को सराहा और कहा कि मुंशी प्रेमचंद का साहित्य केवल उनका रचना कर्म ही नहीं, अपितु समूचे भारत का दर्शन है