जागरण संवाददाता, जींद : इनकी उम्र 18 साल की भी नहीं और इनके पास ड्राइविग लाइसेंस भी नहीं है लेकिन दुपहिया वाहन को यह फर्राटा बना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं, स्कूली बच्चों की, जिनके हाथों में दुपहिया वाहनों की कमान होती है। स्कूल, कॉलेज एवं गलियों में छोटे-छोटे बच्चे स्कूटर, बाइक एवं स्कूटी चलाते हुए देखे जा सकते हैं। प्रशासन भी इन्हें देखकर मूकदर्शक बना हुआ है। यह सब बातें ढेर सारे सवालों को अपने पीछे छोड़ रही हैं।
स्कूल की छुट्टी होते ही सड़कों पर नाबालिग के हाथों में वाहनों के हैंडल नजर आते हैं। पुलिस विभाग द्वारा बच्चों को जागरूक करने के लिए स्कूलों में जागरूकता का पाठ पढ़ाया जाता है। बच्चों को यातायात नियमों की पालना करने की शपथ दिलाई जाती है, मगर यहां पर पुलिस अधिकारी यह चेक नहीं करते कि कितने बच्चों के पास वाहन हैं और कितने बच्चों ने लाइसेंस बनवाए हुए हैं। यदि एक स्कूल में 100 बच्चों के पास वाहन हैं तो मुश्किल से 10 बच्चों के पास ही लाइसेंस मिलेंगे, क्योंकि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की उम्र 18 वर्ष तक नहीं होती, इसलिए वह लाइसेंस नहीं बनवा पाते। बच्चे छोटी उम्र में ही वाहनों को चलाना तो सीख जाते हैं, मगर उन्हें यातायात नियमों का कतई ज्ञान नहीं होता। इस कारण शहर की सड़कों पर आए दिन हादसे बढ़ रहे हैं।
यातायात नियम तोड़ने में लड़कियां भी नहीं पीछे
यातायात नियमों के मामले में नाबालिग लड़के तो उल्लंघन करते ही हैं, लड़कियां भी नियम तोड़ने में पीछे नहीं हैं। लड़कियां द्वारा लड़कों से ज्यादा नियमों को ताक पर रखा जा रहा है। 20 फीसद लड़कियों के ही ड्राइविग लाइसेंस बने हैं। शहर के एकाध चौक पर ही महिला पुलिस कर्मचारी तैनात हैं। एक स्कूटी पर 3 लड़कियां सवार होकर निकल जाती हैं, लेकिन पुलिस कर्मचारी द्वारा नियमों की अवहेलना करने पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
चलाया जाता है जागरूकता अभियान : नरेश ढांडा
ट्रैफिक पुलिस एएसआइ नरेश ढांडा ने कहा कि स्कूलों में सड़क सुरक्षा सप्ताह के तहत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और बच्चों को यातायात नियमों के बारे में जानकारी दी जाती है। पुलिस का प्रयास रहता है कि लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करें। इसके अलावा यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान भी पुलिस द्वारा किए जाते हैं।
में कोरोना वायरस से जुडी सभी खबरे
blink LIVE
PNB MetLife Webinar
VIDEO