अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना भी हमारा धर्म
आचार्य ने कहा कि अधर्म का उन्मूलन और धर्म का संस्थापन एक ही रथ के दो पहिये हैं। दोनों का समन्वय बने रहने से सृष्टि का संतुलन भी ठीक रहता है। इसलिए धर्मरक्षा के लिए इन दोनों की बराबर जरूरत है।
जागरण संवाददाता, जींद : जप, तप, व्रत और पूजा-पाठ ही धर्म नहीं है, अपितु अनीति और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना भी धर्म है। उक्त उद्गार आचार्य पवन शर्मा ने अक्षय तृतीया पर्व पर माता वैष्णवी धाम में मंगलवार को आयोजित धार्मिक समारोह में उपस्थित श्रद्धालुओं के समक्ष व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा कि अधर्म का उन्मूलन और धर्म का संस्थापन एक ही रथ के दो पहिये हैं। दोनों का समन्वय बने रहने से सृष्टि का संतुलन भी ठीक रहता है। इसलिए धर्मरक्षा के लिए इन दोनों की बराबर जरूरत है। भगवान परशुराम के क्रोध की चर्चा बार-बार होती रहती है, लेकिन उसके कारणों की खोज बहुत कम हुई है। क्रोध वह वर्जित है। अन्याय के विरुद्ध क्रुद्ध होना तो मानवता का चिह्न है। उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम की यह स्पष्ट मान्यता थी कि विनम्रता व ज्ञान से सज्जनों को और प्रतिरोध व दंड से दुष्टों को जीता जा सकता है। परशुराम को केवल ब्राह्मणों का देवता बनाकर हम लोगों ने उनके प्रभाव व सम्मान को सीमित कर दिया है, जबकि वे तो भगवान विष्णु के अवतार हैं, उन्हें अमरत्व प्राप्त है।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप