लोकतंत्र में जाति, धर्म व भाषा के नाम पर वोट मांगना स्वीकार नहीं
जागरण संवाददाता, जींद : सुप्रीम कोर्ट ने धर्म की आड़ में वोट मांगने वालों को सुप्रीम कोर्ट न
जागरण संवाददाता, जींद : सुप्रीम कोर्ट ने धर्म की आड़ में वोट मांगने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने झटका देते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। सोमवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि चुनाव में धर्म, जाति, भाषा के आधार पर वोट नहीं मांगा जा सकता है। यह गैरकानूनी है। हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है। इसलिए उसकी इस प्रकृति को बनाए रखना जरूरी है। चुनाव में कोई भी प्रत्याशी या एजेंट धर्म का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। इस फैसले का राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों ने स्वागत किया है। इन सभी लोगों का एक सुर में कहना है कि इस फैसले का दूरगामी परिणाम निकलेगा। देश में स्वच्छ राजनीति का जन्म होगा। इस फैसले से देश में लोकतंत्र को और मजबूती मिलेगी। दैनिक जागरण ने इस बारे में समाज के प्रबुद्ध लोगों और राजनेताओं से बातचीत की..
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भारतीय जनता पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करती है। भाजपा पहले से ही इसी तरह की राजनीति में विश्वास रखती है। प्रधानमंत्री का नारा है कि सबका साथ-सबका विकास। मुख्यमंत्री भी हरियाणा एक-हरियाणवी एक के नारे के साथ काम कर रहे हैं। भाजपा ने कभी जाति के नाम पर काम नहीं किया। यह देश के लिए अच्छा फैसला है। हम सभी से अपील करते हैं वे इसका पालन करें। सभी दल इस आधार पर काम करेंगे तो राज्य व देश की तरक्की होगी।
-जवाहर सैनी, प्रदेश सचिव, भाजपा
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला सम्मानीय है। कांग्रेस कभी भी जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगने के हक में नहीं रही है। इससे समाज में भाईचारा खराब होता है। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में हैं। चुनाव में हमेशा प्रत्याशी की योग्यता को देखकर वोट डालना चाहिए। यह फैसला उन दलों के लिए बड़ा झटका है, जो धर्म और जाति का नाम लेकर वोट मांगते हैं। कांग्रेस पार्टी इसका समर्थन करती है।
रघुबीर भारद्वाज, वरिष्ठ कांग्रेस नेता, जींद
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सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अच्छा फैसला दिया है। इनेलो इसका स्वागत करती है। धर्म और जाति के नाम वोट मांगना गलत है। यह अच्छी सोच है। चुनाव के समय धर्म और जाति का इस्तेमाल करके लोग गलत फायदा उठाते हैं और लड़ाई-झगड़े भी होते हैं। इस फैसले से चुनाव के दौरान प्रेम-प्यार बना रहेगा। चुनाव के समय जाति-धर्म के नाम पर वोट मांगने जो भाईचारा टूट जाता था, अब वह बना रहेगा।
डॉ. हरिचंद मिड्ढा, विधायक, इनेलो, जींद
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सुप्रीम कोर्ट फैसला बहुत बढि़या फैसला है। हम इसका स्वागत करते हैं। लेकिन यह फैसला सख्ती से लागू भी होना चाहिए। यदि केंद्र व प्रदेश सरकारें और चुनाव आयोग इस फैसले को गंभीरता से लेकर इस पर इम्पलीमेंट करें तो देश में स्वच्छ राजनीति का जन्म होगा। इससे देश की लोकतांत्रिक प्रणली मजबूत होगी। राजनीति में अच्छे लोग आएंगे और देश को बहुत फायदा होगा।
देवेंद्र लोहान, प्रधान, बार एसो. जींद
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देश में शुरू से ही जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं। देश की आजादी के बाद 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र से मौलाना अबुल कलाम आजाद और फिल्म अभिनेता शाहरूख खान के पिता ताज मोहम्मद आमने-सामने थे। तब मौलाना साहब कांग्रेस प्रत्याशी थे और देश के कद्दावर नेता थे। वे कहीं से भी चुनाव लड़ते तो जीत सकते थे, लेकिन मेवात का मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण उन्हें फरीदाबाद से चुनाव लड़ाया गया। पार्टियां भी जाति, धर्म को देखकर टिकट देती हैं। यह बहुत सराहनीय फैसला है।
--जयवंती श्योकंद, रिटायर्ड आइएएस, जींद
-सुप्रीम कोर्ट का जाति, धर्म व भाषा के नाम पर वोट न मांगने का फैसला सराहनीय है और ऐसे लोगों से चुनाव लड़ने का अधिकार भी छीन लेना चाहिए, जो इस तरह जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं।
किताब ¨सह, पूर्व प्रधान हसला, नरवाना
-वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हक में हैं। जाति व धर्म के नाम पर वोट मांगने से न केवल लोकतंत्र की भावनाओं को ठेस पहुंचती है, बल्कि समानता के अधिकारों का भी हनन होता है। ऐसा करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान होना चाहिए।
रोहताश नैन, प्रधान, बार एसो. नरवाना
- सुप्रीम कोर्ट का जाति, धर्म व भाषा का नाम लेकर वोट मांगना गैर कानूनी ठहराना जाना सही तो है, लेकिन इसको अमलीजामा पहनाए जाने की जरूरत है। इसके लिए लोगों को जागरूक होना पड़ेगा। तब जाकर कुछ बात तो बन सकती है।
विद्या रानी, कांग्रेस नेत्री, नरवाना