हरियाणवी में गीता का ज्ञान दे रही डॉ. जगदीप राही की गीताकुंज
कर्मपाल गिल जींद धृतराष्ट्र नै संजय ताईं दिया एक आदेश। के हो रया रणभूमि म्हैं मन्नैं बता
कर्मपाल गिल, जींद
धृतराष्ट्र नै संजय ताईं, दिया एक आदेश। के हो रया रणभूमि म्हैं, मन्नैं बता दरवेश। हरियाणवी में लिखी गीताकुंज की शुरुआत इस श्लोक से होती है। नरवाना के गांव बेलरखां निवासी डॉ. जगदीप शर्मा राही ने विशुद्ध हरियाणवी में श्रीमद्भगवद गीता का अनुवाद किया है। खास बात यह है कि चतुष्पदी शैली में किए काव्य अनुवाद को दोहे की लय में गाया भी जा सकता है।
हर्बल पार्क के सामने जिला स्तरीय गीता जयंती महोत्सव के पहले दिन यह किताब लोगों की पसंद बनी रही। मनुराज प्रकाशन के स्टॉल पर इस किताब को खरीदने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी रही। डॉ. जगदीप हरियाणवी के अलावा हिदी में भी गीता का सरल अनुवाद कर चुके हैं। ये दोनों किताबें चतुष्पदीय शैली में लिखी गई हैं। यानी गीता के सभी 18 अध्यायों के 700 श्लोकों का चार लाइनों में अनुवाद किया है। डॉ. जगदीप शर्मा ने दैनिक जागरण के साथ विस्तार से बातचीत की। गीता के प्रति रुझान कैसे बढ़ा, इस पर डॉ. जगदीप ने बताया कि बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति रही है। सत्संग, कथा इत्यादि में भजन, गीत गाने की रुचि रही। जब छठी कक्षा में था तो श्राद्ध पक्ष के दौरान परिजनों ने गीता पढ़ने की ड्यूटी लगा दी। तब से लेकर आज तक श्राद्ध पक्ष में गीता पढ़ता आ रहा हूं। दक्षिण भारत की स्वाध्याय संस्था गीता ज्ञान का प्रचार-प्रसार करती है। 1994 में उनके संपर्क में आया और कई साल उनके साथ काम किया। इससे गीता की समझ पैदा हुई और उससे काफी प्रभावित हुआ। एक दिन गीता पढ़ते हुए ख्याल आया कि गीता के गूढ़ ज्ञान को आम जन और अनपढ़ आदमियों के लिए भी सरल भाषा और उनकी बोली में लिखा जाना चाहिए। ग्रेजुएशन तक संस्कृत का विद्यार्थी रहा हूं और नाना जी कर्मकांडी विद्वान पुरोहित रहे हैं। संस्कारगत इन चीजों ने भी प्रभावित किया। गीता पर अलग-अलग प्रकार की टीकाओं की किताबें पढ़ी। स्वाध्याय संस्था से जुड़ा होने के कारण स्वयं गीता के ऊपर प्रवचन करता था, इसलिए गीता को समझने में और सरलीकृत करने में कोई कठिनाई महसूस नहीं हुई। हरियाणा साहित्य अकादमी ने प्रकाशन में की मदद
जिले के एकमात्र राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल बेलरखां में प्राध्यापक डॉ. जगदीप शर्मा ने बताया कि पहले 2016 में श्रीमदभगवत गीता का हिदी अनुवाद गीतापुंज लिखा। चतुष्पदी शैली में लिखी इस किताब में प्रत्येक श्लोक का चार-चार पंक्तियों के पद में काव्य अनुवाद पद्य रूप में किया है। इसकी अच्छी प्रतिक्रिया मिली। कई लेखकों व पाठकों ने कहा कि हरियाणवी में गीता का अनुवाद किया जाना चाहिए। वह खुद गांव बेलरखां में पैदा हुए हैं और गांव के सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। हिदी के साथ हरियाणवी और संस्कृत का भी ज्ञान है। इसलिए अनुवाद करने में कोई दिक्त नहीं हुई। हरियाणवी में लिखी गीताकुंज को हरियाणा साहित्य अकादमी की मदद से जींद के मनुराज प्रकाशन से प्रकाशित किया।