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गोवंश संरक्षित, हम सुरक्षित : कलेसर के जंगलों में छोड़े जाएंगे बंदर, गोवंश के लिए निकाय विभाग से मांगी 50 लाख की ग्रांट

बेहाल हो रहे बेसहारा गोवंश को सहारा मिलने की दिशा में कदम बढ़ने लगा है। 31 अगस्त को अदालत में बार के दो पूर्व प्रधान नरेश शर्मा झामरी पूर्व प्रधान कृष्ण कादियान तथा अधिवक्ता दीपक शर्मा ने आमजन की समस्या को समझते हुए संयुक्त रूप से एक परिवाद दीवानी अदालत में दायर किया था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2020 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 06:00 AM (IST)
गोवंश संरक्षित, हम सुरक्षित : कलेसर के जंगलों में छोड़े जाएंगे बंदर, गोवंश के लिए निकाय विभाग से मांगी 50 लाख की ग्रांट
गोवंश संरक्षित, हम सुरक्षित : कलेसर के जंगलों में छोड़े जाएंगे बंदर, गोवंश के लिए निकाय विभाग से मांगी 50 लाख की ग्रांट

जागरण संवाददाता, झज्जर : बेहाल हो रहे बेसहारा गोवंश को सहारा मिलने की दिशा में कदम बढ़ने लगा है। 31 अगस्त को अदालत में बार के दो पूर्व प्रधान नरेश शर्मा झामरी, पूर्व प्रधान कृष्ण कादियान तथा अधिवक्ता दीपक शर्मा ने आमजन की समस्या को समझते हुए संयुक्त रूप से एक परिवाद दीवानी अदालत में दायर किया था।

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परिवाद के स्वीकार हो जाने के बाद शुक्रवार को एक दफा फिर से दोनों पक्षों के अधिवक्ता सिविल जज नेहा यादव की अदालत में प्रस्तुत हुए। जहां पर परिषद पक्ष की ओर से प्रस्तुत हुए अधिवक्ता धन सिंह सहरावत ने बताया कि बंदरों को पकड़ने का कार्य मथुरा के ठेकेदार को सौंपा गया है। जोकि बंदरों को पकड़कर कलेसर के जंगलों में छोड़ेगा। बेसहारा गोवंश को सहारा मिल सके, इसके लिए निकाय विभाग से 50 लाख रुपये की ग्रांट मांगी गई है। बहरहाल, याचिका पर अगली तिथि 29 सितंबर की दी गई है।

अगर रिकॉर्ड की बात हो तो हरियाणा को स्ट्रे कैटल फ्री घोषित करने के बाद भी सड़कों पर हर जगह गोवंश दिखाई देता है। जिससे गोसेवक और गोप्रेमियों के मन में पीड़ा पहुंचती हैं। संबंधित विषय को लेकर ही परिवाद दीवानी अदालत में दायर किया गया। जिसमें विशेष तौर पर उल्लेख है कि बेसहारा पशुओं व उत्पाती बंदरों को पकड़कर सुरक्षित स्थान पर छुड़वाया जाए। अधिवक्ताओं द्वारा डाली गई याचिका में बताया गया कि बेसहारा पशुओं तथा उत्पाती बंदरों ने एक तरह से शहरवासियों को बंधक बना रखा है। सार्वजनिक जीवन में अवरोध पैदा हो रहा है। बेसहारा पशुओं की वजह से रोजाना जान तथा माल का नुकसान हो रहा है। काफी लोग जहां दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं तथा काफी पशु भी दुर्घटना के शिकार हो चुके है। डाली गई याचिका की पैरवी अधिवक्ता अजीत सिंह सोलंकी एवं अधिवक्ता रजनीश शर्मा कर रहे हैं। याचिका में उल्लेख है कि शहर की गलियों, सड़क, सार्वजनिक चौक-चौराहों पर बेसहारा पशुओं ने अपना कब्जा कर रखा है। हालात यह है कि लघु सचिवालय तथा अधिवक्ता चेंबर परिसर में भी बेसहारा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है। जबकि, बंदरों के झुंड ने लोगों के मकान, छत, चौक, आंगन आदि पर कब्जा जमा रखा है। ऐसी स्थिति में लोग ना तो छतों पर आसानी से जा सकते हैं और ना ही खुले में कपड़े सूखा सकते हैं। पानी की टंकियों को नुकसान पहुंचा रहे है।

इस तरह से बढ़ी डाली गई याचिका

31 अगस्त : अदालत में प्रस्तुत हुआ याचिका पक्ष

3 सितंबर : अदालत में प्रस्तुत हुआ याचिका पक्ष

8 सितंबर : बहस

9 सितंबर : बहस

11 सितंबर : लिखित बयान

18 सितंबर : लिखित बयान

पहले दिन पकड़ से बाहर रहे बंदर, प्रयास करती रही टीम

झज्जर : नगर परिषद ने शहर में बंदरों को पकड़ने का ठेका दे दिया है। पहले दिन ठेकेदार की टीम ने वार्ड नंबर 6 में जाल भी डाला। लेकिन, बंदरों का इंतजार करती रही। पर पहले दिन टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा। हालांकि, काफी समय तक बंदर पकड़ से बाहर रहने के कारण टीम ने स्थान बदलने का निर्णय लिया। अब टीम उन स्थानों का पहले चयन करेगी, जहां पर बंदरों की संख्या अधिक है। ताकि शहर के बंदरों को पकड़ा जा सके और शहरवासियों को बंदरों के आतंक से छुटकारा मिले। टीम आने वाले दिनों में लगातार यह अभियान चलाएगी।

नगर परिषद ने 900 रुपये प्रति बंदर के हिसाब से बंदर पकड़ने का ठेका दिया हुआ है। जिसके तहत ठेकेदार ने शुक्रवार से शहर में बंदर पकड़ने का अभियान चलाया। नपा की आओ से शहर को बंदर मुक्त करने के उद्देश्य से यह ठेका दिया गया है। हालांकि, अभी लोग इस अभियान को सफल होने व बंदरों को पकड़ने का इंतजार कर रहे हैं। सेनेटरी इंस्पेक्टर आनंद कुमार ने बताया कि बंदर पकड़ने का अभियान आगे भी जारी रहेगा।


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