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जानें प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 40 प्रतिशत लड़कियां क्‍यों छोड़ देती हैं स्कूल

ग्रामीण भारत में बेटियों को ‘और पढ़ाने’ की आवश्यकता है। न केवल नारी सशक्तीकरण वरन इसके माध्यम से सुशिक्षित समाज के निर्माण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी यह अनिवार्य है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 09:58 AM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 10:04 AM (IST)
जानें प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 40 प्रतिशत लड़कियां क्‍यों छोड़ देती हैं स्कूल
जानें प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 40 प्रतिशत लड़कियां क्‍यों छोड़ देती हैं स्कूल

अमित पोपली, झज्जर। हाल ही जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2019 के सर्वे के अनुसार प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 40.03 प्रतिशत लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद करने वाले हरियाणा में भी यह आंकड़ा 36.51 प्रतिशत है। निष्कर्ष यह कि देश में और विशेषकर ग्रामीण भारत में बेटियों को ‘और पढ़ाने’ की आवश्यकता है। न केवल नारी सशक्तीकरण वरन इसके माध्यम से सुशिक्षित समाज के निर्माण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी यह अनिवार्य है। इस दिशा में दैनिक जागरण ने व्यापक समाचारीय अभियान छेड़ा है- बेटी को और पढ़ाओ...। शुरुआत हरियाणा से हुई है।

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हरियाणा में हमने इस विषय पर सबसे पहले तमाम विशेषज्ञों से बात की। इनके मुताबिक, इस ड्राप आउट के पीछे बड़ा कारण असुरक्षा की भावना और परिवारों में बेटियों की जल्द शादी कर सामाजिक दायित्व से मुक्ति पाने की मानसिकता है। गांव से शहर पहुंचकर हायर सेकंडरी की शिक्षा ग्रहण करना तो दूर, घर से दो-तीन किलोमीटर दूर पड़ोस के गांव में भी बेटियों को स्कूल भेजने से परिवार के सदस्य अब भी कतराते हैं।

रात्रि चौपाल कार्यक्रम में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से अपनी बात रखते ब्रेकथ्रू संस्था के सदस्य। जागरण

हरियाणा सरकार द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक, प्राथमिक स्कूल में नियमित बेटियों की संख्या 94.93 फीसद है। आठवीं तक इनमें से 97.06 फीसद लड़कियां शिक्षा ग्रहण करती हैं, लेकिन इसके बाद इनकी संख्या अप्रत्याशित रूप से घट जाती है। सेकंडरी में लड़कियों की संख्या 86.73 फीसद रह जाती है। इसका मुख्य कारण उनके गांवों में स्कूल का नहीं होना है। पड़ोस के गांव में जाकर शिक्षा ग्रहण करने से बेटियां ही नहीं परिवार के लोग भी हिचकते हैं। इसके पीछे स्कूल के रास्ते में बेटियों के साथ होने वाली छींटाकशी, छेड़छाड़ जैसी घटनाएं भी हैं।

सरकार को भी इस बात की जानकारी है और सरकार के स्तर पर कम दूरी पर बेटियों को शिक्षा मुहैया कराए जाने की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है। कई जगह स्कूल अपग्रेड किए जा रहे हैं। हायर सेकंडरी के लिए बेटियों को शहर आना पड़ता है। गांव से शहर आने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होना भी एक समस्या है। हायर सेकंडरी में और गिरावट आती है और महज 60.45 फीसद बेटियां ही पढ़ाई कर पाती हैं। फिर पढ़ाई के बाद स्थानीय स्तर पर सुलभ रोजगार नहीं मिलने को भी विशेषज्ञ इससे जोड़कर देख रहे हैं...। आइये अब चलते हैं झज्जर के सुबाना गांव की ओर।

झज्जर का गांव सुबाना, जहां रात्रि चौपाल में अपनी पोती के साथ पहुंचीं रामकली। जागरण

नाटक, संवाद, प्रश्न प्रहर के माध्यम से जागरूकता : सुबाना में जब हम पहुंचे, शाम ढल चुकी थी। नुक्कड़ पर रात्रि चौपाल कार्यक्रम के आयोजन की तैयारी कुछ वालंटियर कर रहे थे। ये ब्रेक-थ्रू नामक स्वयंसेवी संस्था के वालंटियर थे। उन्होंने बताया कि वे यहां बेटियों के स्कूल छोड़ने के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए आए हैं। नाटक, संवाद, प्रश्न प्रहर आदि माध्यमों से जागरूकता बढ़ाएंगे...। थोड़ी देर बाद बेटियां, बेटे, माता-पिता, दादा-दादी इस चौपाल में जुड़ने लगते हैं और कार्यक्रम शुरू हो जाता है।

जन जागरण : गांव-गांव, घर-घर

हरियाणा से शुरू हुए इस समाचारीय अभियान का उद्देश्य बेटियों की शिक्षा को अबाध बनाने के लिए समाज को जागरूक करना है। ताकि बेटियां प्राथमिक शिक्षा की औपचारिकता तक सिमटी न रह जाएं और उच्चशिक्षा प्राप्त कर सकें। इस अभियान के दौरान इस दिशा में बेहतर काम कर रहे व्यक्तियों व संस्थाओं को प्रोत्साहित किया जाएगा। उनके कार्यों को और हासिल को प्रेरणा के रूप में समाज के सामने लाया जाएगा। साथ ही, गांव-गांव, घर-घर पहुंच कर उन कारकों को चिह्नित करना, जो बेटियों को सुशिक्षित बनाने में आड़े आ रहे हैं, इनका समाधान खोजना, लोगों को प्रेरित करना और सकारात्मक वातावरण का निर्माण करना इसमें शामिल है।

अब कुछ सवाल जवाब

सवाल : औरत की कमाई से बरकत नहीं होती।

जवाब : क्यों, क्या महिला जब कमाएगी तो नोट नकली हो जाएगा।

सवाल : औरत की कमाई की रोटी अच्छी नहीं होती, इसे समाज अच्छा नहीं मानता।

जवाब : खेत में काम करके महिला जो अनाज घर में सभी के लिए लाती है तो उसे खाने से बेइज्जती नहीं होती।

सवाल : बुजुर्गों की बनाई परंपरा है, बेटियों को ज्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए।

जवाब : परंपरा तो यह भी थी कि जब पहले पति मर जाता था तो महिला को साथ जला दिया जाता था।

ऐसा नहीं है कि बेटियां पढ़ने में बेटों से पीछे हैं। अब समाज में जागरूकता बढ़ी है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि शिक्षण संस्थान दूर होने के कारण 10वीं व 12वीं के बाद बेटियों को दिक्कत होती है। हमने सरकार को पत्र लिखा है कि लड़कियों को ग्रेजुएशन तक मुफ्त शिक्षा दी जाए ताकि ड्राप आउट को और कम किया जा सके।

- ज्योति बैंदा, चेयरपर्सन, बाल संरक्षण आयोग, हरियाणा

राज्य में कक्षा दस तक जीरो ड्राप आउट रेट होने के लिए कदम उठाए जाएंगे। मेरा स्कूल मेरा अभियान नामक स्कूल आधुनिकीकरण योजना लागू होगी। राज्य में एडवांस टीचर ट्रेनिंग की व्यवस्था होगी। बच्चों खासकर लड़कियों के कौशल एवं गुणी विकास को सुनिश्चित करने के लिए वैल्यु एजुकेशन पर जोर रहेगा।

- मनोहर लाल, मुख्यमंत्री हरियाणा


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