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दीपक पूनिया से थी पिता को पदक की आस, हार देख भर आई आंखें,बोले- अगली बार जरूर मिलेगा पदक

टोक्यो ओलिपिक में सेमीफाइनल में हार के बाद कांस्य पदक से भी दीपक पूनिया के चूकने से घर और गांव छारा में निराशा है। दीपक से उनके पिता सुभाष पूनिया को पदक की आस थी। मगर बेटे की हार देख उनकी आंखें भर आई तो रुंधे गले से बोले कि इस बार नहीं तो अगली बार जरूर मिलेगा पदक।

By JagranEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 12:31 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 12:31 AM (IST)
दीपक पूनिया से थी पिता को पदक की आस,  हार देख भर आई आंखें,बोले- अगली बार जरूर मिलेगा पदक
दीपक पूनिया से थी पिता को पदक की आस, हार देख भर आई आंखें,बोले- अगली बार जरूर मिलेगा पदक

जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : टोक्यो ओलिपिक में सेमीफाइनल में हार के बाद कांस्य पदक से भी दीपक पूनिया के चूकने से घर और गांव छारा में निराशा है। दीपक से उनके पिता सुभाष पूनिया को पदक की आस थी। मगर बेटे की हार देख उनकी आंखें भर आई तो रुंधे गले से बोले कि इस बार नहीं तो अगली बार जरूर मिलेगा पदक। दीपक को किस्मत का भी साथ कम मिला। आखिरी वक्त में बाजी पलट गई। वरना तो पदक इस बार ही आ गया होता। उन्होंने कहा कि भले ही उनका बेटा पदक नहीं जीत पाया, लेकिन वे इसे हार नहीं मानते। बेटा घर आएगा तो उसका विजेता की तरह ही स्वागत करेंगे। इतनी सी उम्र में इतने वजन में ओलिपिक में सेमीफाइनल तक पहुंचना ही बड़ी बात है। पदक न जीत पाने का उन्हें मलाल नहीं है, क्योंकि अगले दो-तीन ओलिपिक के लिए तो दीपक के पास मौका रहेगा। सुभाष बोले कि बेटे की खुराक पर और ज्यादा ध्यान देंगे। जहां तक मुकाबलों का सवाल है तो कहां क्या कमी रही, यह तो दीपक के गुरु देखेंगे और उसे भविष्य के लिए और ज्यादा तराशेंगे। कोच बोले- डिफेंसिव के बजाय अटैकिग खेलता तो परिणाम शायद कुछ और होता :

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गांव के निवर्तमान सरपंच जितेंद्र भी पहलवान रहे हैं और छारा में ही लाला दीवानचंद अखाड़े में कोच वीरेंद्र आर्य से दीपक ने कुश्ती सीखी। दोनों का कहना है कि अगर दीपक आखिर तक अटैकिग रहता तो जीत तय थी। मगर आखिर में उसने अंक जुटाने की बजाय प्रतिद्वंद्वी को अंक न देने की कोशिश ज्यादा की। यह हार का कारण बनी। हर क्षण बदलते रहे चेहरों के भाव :

वीरवार को छारा गांव में दीपक पूनिया के घर ज्यादा लोग पहुंचे हुए थे। आंगन में एलईडी लगाई गई थी। सभी को कांस्य पदक की आस थी। शुरूआत में दीपक ने जैसे ही एक साथ दो अंक बटोरे तो तालियां गूंज उठी। इसके बाद जैसे-जैसे मुकाबले के क्षण बीते तो सभी के चेहरों के भाव बदलते रहे। आखिर में जब वक्त कम था, तब दीपक का डिफेंसिव खेल देख सांसें अटक गई थी। आखिर में वही हुआ, जिसका डर था। प्रतिद्वंद्वी पहलवान अंक बटोर गया और दीपक की हार होते ही मायूसी छा गई। हालांकि दीपक के पिता सुभाष, बहन मनीषा, सरपंच जितेंद्र, कोच वीरेंद्र आर्य समेत सभी लोगों ने कहा कि असफलता ही सफलता की राह बनाएगी। अगली बार दीपक पदक जरूर जीतेगा।


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