कहीं आपके बच्चे को भी तो नहीं है junk food खाने की आदत, पड़ रहा ऐसा असर...
मशीनी युग में रहने वाली 90 फीसद माताओं को मालूम ही नहीं पैदा होने के बाद बच्चों को कब-कब क्या खिलाना चाहिए। माता-पिता बच्चों को जंक फूड दे रहे हैं जो उनके लिए खतरनाक है।
जेएनएन, झज्जर। कुपोषण किसी भी एक गड़बड़ी से नहीं होता। यह विभिन्न तरह के असंतुलन का परिणाम है। खासतौर पर वर्तमान जीवनशैली और उसके अनुसार खानपान भी बच्चों को कुपोषित कर रहे हैं। ज्यादा कैलोरी, शर्करा और कम पोषक तत्व युक्त आहार (जंक फूड) भी समानांतर रूप से बच्चों को छोटे कद का तथा अन्य बीमारियों का शिकार बना रहे हैं। हालांकि, विभिन्न विटामिनों के बारे में डायटीशियन का कहना है कि अगर बच्चा संतुलित खानपान करता है तो उसे अतिरिक्त विटामिन की जरूरत नहीं पड़ती है।
डॉ. अजू गर्ग का कहना है कि मशीनी युग में रहने वाली 90 फीसद माताओं को मालूम ही नहीं पैदा होने के बाद बच्चों को कब-कब क्या खिलाना चाहिए। पोषाहार की जानकारी ठीक ढंग से नहीं होने से बच्चों को मां-बाप ही कुपोषित बना रहे हैं। अक्सर यह तब सामने आता है। जब माता-पिता की रूटीन में कांउसलिंग की जाती है। वह यह मानते हैं कुछ भी खाए कम से कम पेट में तो जाएगा, जबकि ऐसा नहीं है। आज के समय में मां-बाप छोटे बच्चों को पैदा होते ही बिस्कुट, कुरकुरे, चिप्स की आदत डाल रहे हैं। बच्चों की आदतें बदल रही हैं और वे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। तीन साल तक हर माह बच्चे का वजन और कद जांचना जरूरी है।
70 फीसद बच्चों में है खून की कमी
डॉ. राकेश गर्ग का कहना है कि कुपोषण से मुक्ति के लिए दूध-दही का खाणा की कहावत को भूलना होगा। सिर्फ दूध-दही ही पर्याप्त नहीं है। जो माता-पिता छह माह की उम्र के बाद भी अपने बच्चों को केवल दूध व दही पर निर्भर रखते हैं, वे उनको सीधे रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं। दूध-दही के साथ फल-सब्जी, दाल व चिकित्सक की सलाह के अनुसार अन्य खाद्य पदार्थ भी देने चाहिए। 70 फीसद बच्चों में खून की कमी है। कुपोषण से मुक्ति के लिए केवल दवाएं पर्याप्त नहीं हैं। हमें बच्चों की खानपान की आदतों में भी बदलाव करना होगा। यही नियम बड़ों के मामले में भी लागू होता है।
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