कॉलेज वाले कहते थे यशपाल दाखिला ले ले, फीस मत देना बस हमारे लिए नाटक में रोल अदा कर देना
फिल्म अभिनेता यशपाल ¨सह से दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय की विशेष बातचीत
फिल्म अभिनेता यशपाल ¨सह से दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय की विशेष बातचीत ---------
सवाल : शुरुआती संघर्ष कैसा रहा। बाकि जिम्मेदारियां छोड़ आप सिनेमा में गए।
जवाब- मैं वास्तव में जिम्मेदारियां नहीं निभा पाया। बड़े भाई घनश्याम दास ने सब कुछ संभाला। रिक्शा चलाया, लैमन की बोतलें बेची और फिर बहनों की शादी की। मेरे लिए उन्होंने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। लेकिन अब चीजें समझ में आने लगी हैं। लेकिन थिएटर मुझे हमेशा से पसंद था। रामलीला हो या यूथ फेस्टिवल। गवर्नमेंट और डीएन कालेज के लोग कहते थे कि यशपाल दाखिला लेले। फीस मत देना और क्लास भी नहीं लगाना। लेकिन हमारे लिए नाटक करना। तब ये बहुत बड़ी गर्व की बात होती थी।
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सवाल : क्या आपने कभी फिल्मों में आने के बारे में सोचा था।
उत्तर : यूथ फेस्टिवल के बाद कई लोग मुझे कहने लगे कि में अच्छी एक्टिंग करता हूं। तो मैंने सोचा कि ऐसी बात है तो यूथ फेस्टिवल की बजाए मुझे थिएटर में हाथ आजमाना चाहिए। इसके बाद मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि फिल्मों में आऊंगा। लेकिन जरूरतें फिल्मों में ले आईं।
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सवाल : आप मुंबई में रहकर भी स्टारडम से कैसे बचे रहे और अपने अंदर थिएटर को भी बचा के रखा।
उत्तर - यह सही बात है। मैं स्टारडम के लिए फिल्में नहीं करता। मेरा खर्चा चलता रहे बस इसलिए कंटेट बेस फिल्मों में काम करता हूं। आज मुझे किसी स्टार के साथ काम करने की चाहत नहीं है। कंटेट मिले को कहीं भी अच्छा काम किया जा सकता है। अब हरियाणा में पंडित लख्मीचंद पर फिल्म की तैयारी कर रहे हैं। मैं चाहता हूं कि फिल्मों में थिएटर आए। ताकि सिनेमा का स्तर उठाया जा सके। वे अब भी करीब 11 नाटकों में काम कर रहे हैं।
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सवाल : हरियाणा से विशेष लगाव क्यूं। आप बार-बार हरियाणा आकर यहां के सिनेमा की बात करते हैं।
- जवाब : बॉलीवूड में हरियाणा आ रहा है। भाषा की बात हो या संस्कृति की। ऐसा है तो हरियाणा में सिनेमा क्यूं नहीं बन सकता। मैं यहां सिनेमा का स्तर उठाना चाहता हूं। चाहता हूं कि लोग सिनेमा को सही तरीके से समझें। अच्छा कंटेट वाला सिनेमा देखें। दूसरा गांव में बैठा व्यक्ति जो सोच रहा है वो हो सकता है वो हरियाणवी सिनेमा के माध्यम से सारी दुनिया में भेज सकते हैं।
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सवाल : आप कंटेट बेस सिनेमा की बात करते हैं, लेकिन फुहड़ता और अश्लीलता का बोलबाला फिल्मों में बढ़ रहा है।
जवाब : ये हमारा दायित्व है। एक्टर-डायरेक्ट, प्रोड्युसर अपनी जिम्मेदारी को समझें कि उन्हें समाज को क्या देना चाहिए। हमें अपनी सोच में परिवर्तन करना होगा। फुहड़ता और नगनता सिनेमा में ज्यादा दिन नहीं टिकेगी। इसको लेकर नियमन भी होना चाहिए। क्योंकि कला या सिनेमा समाज का दर्पण है। फिल्म में किसी भी सीन को दिखाने की सीमा होनी जरूरी है।
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सवाल - बहुत सी अच्छी मुवी आती हैं लेकिन लाइम लाइट में नहीं आती, क्या कारण हो सकता है।
जवाब - फिल्मी दुनिया में कुछ ऐसे नीति नियंता बैठे हैं, जो डिसाइड करते हैं कि हॉल किसे मिलेगी या कौन सी फिल्म हिट करवानी है। अभी तक देश में हमारी फिल्म करीम मोहम्मद को भी हॉल नहीं मिल रहे हैं। ऐसा ही हाल मुल्क या कड़वी हवाएं जैसी दूसरी कुछ शानदार फिल्मों का है। पता नहीं ये कब तक चलता रहेगा। लेकिन इसमें बदलाव होना चाहिए।
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सवाल - युवाओं से क्या कहना चाहेंगे।
जवाब - युवा किसी भी व्यक्ति से इंस्पायर हों। उसके काम से प्रेरणा लें। लेकिन उसे फॉलों कभी न करें। वर्ना वे उसके अंधभक्त हो जाएंगे। यह न देश के लिए अच्छा है, न युवाओं के लिए और न सिनेमा के लिए।
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