विश्व की पहली महिला मुस्लिम सुल्तान रजिया बेगम की हिसार के हांसी के बड़सी गेट पर हुई थी हत्या
दिल्ली के सुल्तान अलतमश की बेटी रजिया सुल्तान का शव हांसी की चारकुतुब दरगाह में दफनाया गया था। आज भी दरगाह की दक्षिणी दीवार के निचले भाग में पारसी भाषा में लिखा रजिया की मजार का शिलालेख जड़ा हुआ है। बाद में कब्र से निकालकर शव दिल्ली में दफनाया गया।
हांसी, [पंकज नागपाल] विश्व की पहली मुस्लिम महिला बादशाह बनने का श्रेय रजिया सुल्ताना उर्फ रजिया बेगम को जाता है। रजिया बेगम दिल्ली की बादशाह बनी जो मर्दाने कपड़ों में शासन का कार्य करती थी। लेकिन उसके ही मंत्रियों को उनका मर्द की तरह रहना और बादशाह बनना रास नहीं आया। उसको गिरफ्तार करके हांसी किले की जेल में बंद करने के लिए ले जाया जा रहा था तो किसी ने हांसी में बड़सी गेट के पास उसकी हत्या कर दी। एक होनहार बेगम रजिया सुल्ताना इतिहास मे अपना रोल दर्ज करवा कर पुरुष के अहम की बलि वेदी पर मिट गई। रजिया बेगम कौन थी। उसको किससे प्रेम हुआ और हत्या कैसे हुई। इसकी विस्तृत जानकारी इस लेख में आपके लिए प्रस्तुत है।
अलतमश जो पहले उलूग खां के नाम से हांसी में किलेदार था। उसके बाद वह दिल्ली का सुल्तान बना। अलतमश के बेटे जहां अय्याश और निक्कमे थे। वहीं उसकी बेटी रजिया बहुत होनहार और समझदार थी। वह अधिकतर अपने पिता के साथ रहती और बहुत से राज कार्यों मे अपने पिता को सलाह भी देती, जो बहुत ही कारगर साबित होती। रजिया ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था। उसने घुड़सवारी व तलवारबाजी सीखना शुरू कर दिया। घुड़सवारी उसे एक गुलाम हब्शी जलालुद्दीन याकूत सिखाता था।
सुल्तान अलतमश ने समझ लिया था कि रजिया में वो सभी योग्यता और समझ है, जो एक शासक में होनी चाहिए। वह अपने जीवनकाल मे ही रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहता था। इसके लिये उसने अपने कुछ विश्वसनीय सरदारों, जागीरदारों से सलाह भी कर ली थी। लेकिन वह ये न कर सका और एक दिन अलतमश का निधन हो गया। इसके तुरंत बाद ही रजिया ने सिंहासन संभाल लिया और मर्दाना कपड़े पहन कर रजिया सुल्ताना के नाम से दरबार लगाने लगी। उसके राज कार्यों से आम जनता में उसका प्रभाव बढने लगा।
लेकिन कुछ ऐसे भी दरबारी सरदार थे जो राजगद्दी पर बैठी एक औरत के सामने सिर झुकाना या हुक्म मानना सहन नही कर रही थे। उनके अहम को ठेस पहुंच रही थी। रजिया ने बहुत से पुराने नियमो को बदल दिया था जिससे कुछ दरबारी सरदारों मे नाराजगी बढ़ने लगी। अब उन्होंने धीरे धीरे दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। बेगम रजिया का याकूत के प्रति अनुराग बढ़ने लगा था। जिस बात ने आग में घी डालने का काम किया। रजिया ने उसको अपने अंगरक्षक के तौर पर नियुक्त कर लिया था।
एक सुल्तान की एक गुलाम के प्रति अनुराग की चर्चा राज दरबार से होते हुए आम जनता मे पहुंचने लगी। साथ ही बेगम के प्रति नफरत को भी बढावा दिया जाने लगा। तभी अप्रैल 1240 ई. में पश्चिमी सीमा पर तबर हिंद के गवर्नर अलतुनिया ने बगावत कर दी। रजिया बगावत दबाने गयी लेकिन वहां माजरा ही कुछ और हो गया। उसकी शाही सेना में भी बगावत हो गई। रजिया की जान को खतरा हो गया। रजिया का अंगरक्षक याकूत ने रजिया को अपने साथ घोड़े पर बैठाया और रण भूमि से सुरक्षित स्थान की और भाग निकले। लेकिन भटिंडा के पास दोनों को गिरफ्तार कर लिया। इसमे याकूत को मार डाला गया। रजिया को गिरफ्तार कर तबर हिंद की जेल में डाल दिया। अब अलतुनिया ने गिरफ्तार बेगम रजिया से निकाह कर लिया और दोनों दिल्ली आ गये।
अलतुनिया के इस कदम से दरबारी सरदार और भड़क गये। उन्होंने रजिया के एक नाकारा भाई बहराम शाह को उकसाना शुरू कर दिया। इसी बीच 1सितंबर,1240 को तबर हिंद में एक बार फिर विद्रोह हो गया जिसे दबाने अलतुनिया और रजिया दोनों गये लेकिन बगावतियों ने कैथल के पास अलतुनिया को मार डाला और रजिया को गिरफ्तार कर लिया। अलतुनिया की कब्र कैथल के पास है। इस बगावत को दबाने से पहले रजिया ने रोहतक की सर्वखाप पंचायत से सहायता मांगी थी। सर्वखाप पंचायत के नौजवान और रजिया के वफादार सैनिक रजिया को बचाना चाहते थे। बगावतियों ने गिरफ्तार रजिया को हाँसी की सुरक्षित जेल मे बंद करने का निर्णय लिया।
जब वह हाँसी के बाहर बड़सी दरवाजे के पास पहुंचे तो दिन ढल चुका था। इनका पीछा करने वाले बेगम के वफादारों को लगा कि अगर बेगम को लेकर सैनिक हांसी किले के बड़सी दरवाजे मे घुस गये तो उसके बाद बेगम को आजाद करवाना कठिन हो जायेगा। इसलिए वो बगावतियों से टकरा गये। इस झड़प मे किसी ने रजिया बेगम को ही मार डाला। इसके बाद एक होनहार बेगम रजिया सुल्तान वीरता और काबिलियत के होते हुए भी पुरुष के अहंकार की बलि पर चढ़ गई।
बेगम के शव को यहां की दरगाह चारकुतुब के आहते में दफनाकर एक इबारत लिख कर उसकी मजार पर लगाया गया। जब रजिया का भाई बहराम शाह गद्दी पर बैठा तो उसने अपनी बहन के शव को यहां से निकलवा कर दिल्ली मे दफनाया। हांसी मे रजिया बेगम की मजार का शिलालेख काफी समय तक एक तरफ पड़ा रहा। लेकिन आजादी के बाद जब दरगाह की मरम्मत हो रही थी तब उस शिलालेख को दरगाह चारकुतुब की जामा मस्जिद की दक्षिणी दीवार के निचले भाग में जड़ दिया गया जो अभी भी वहीं है।
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इतिहासकार जगदीश सैनी ने बताया कि रजिया बेगम की हत्या और उसके जीवन से संबंधित वर्णन रोहतक की सर्वखाप के ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी मिलता है। जगदीश सैनी के मुताबिक समय बदलता गया और हांसी जिसका देश की आजादी तक बहुत बड़ा रुतबा था, वह आजादी के बाद राजनेताओं की भ्रष्टाचारी मानसिकता का शिकार होता चला गया। प्रशासन व सरकार की अनदेखी का शिकार हांसी में मौजूद ऐतिहासिक धरोहरें समय बीतने के साथ ही नष्ट होकर मिटती जा रही हैं।
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