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World AIDS Day 2021: झिझक तोड़ी तो कम हुआ HIV संक्रमित मरीजों का आंकड़ा, जिंदगी हुई बेहतर

World AIDS Day 2021 हरियाणा में HIV संक्रमित मरीजों का आंकड़ा कम हुआ है। स्वास्थय विभाग की ओर से चलाए गए जागरुकता अभियान ने इसमें अहम रोल अदा किया। जागरुकता बढ़ने से मरीजों ने झिझक तोड़ी है जिसके कारण इस पर नियंत्रण पाया जा सका है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 06:52 PM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 06:52 PM (IST)
World AIDS Day 2021: झिझक तोड़ी तो कम हुआ HIV संक्रमित मरीजों का आंकड़ा, जिंदगी हुई बेहतर
World AIDS Day 2021: हरियाणा में एचआइवी संक्रमित मरीजों का आंकड़ा घटकर 0.3 से 0.2 पहुंचा।

जागरण संवाददाता, रोहतक। World AIDS Day 2021: एचआइवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशियंसी वायरस) को लेकर जागरूकता और मरीजों की झिझक टूटने से इस लाइलाज बीमारी को नियंत्रित किया जा सका है। एचआइवी संक्रमित मरीज पहले इलाज के अभाव में समय से पहले दम तोड़ देते थे। लेकिन अब ऐसे मरीजों की जिंदगी बढ़ी है, बल्कि बेहतर ढंग से जीवनयापन भी करना शुरू कर दिया है। सरकार द्वारा ऐसे मरीजों के प्रोत्साहन में लागू की गई नीतियां भी कारगर साबित रही। यहीं कारण है कि प्रदेश में एचआइवी मरीजों का आंकड़ा 0.3 से 0.2 रह गया है, जो अन्य प्रदेशों की तुलना में काफी कम है। 

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12 साल पहले हुई थी सेंटर की शुरुआत

पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य स्नातकोत्तर स्वास्थ्य संस्थान में एआरटीसी यानी एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी सेंटर में इस समय करीब 11 हजार एचआइवी संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा है। हालांकि पंजीकृत मरीजों की संख्या 25 हजार से अधिक है। पीजीआइएमएस में एआरटी सेंटर की शुरुआत करीब 12 साल पहले की थी। एचआइवी मरीजों के इलाज के लिए प्रदेश का एकमात्र नोडल सेंटर था। सरकार ने बाद में मरीजों के लिए उनके जिले में भी इलाज देने की योजना के तहत जिला स्तर पर सब सेंटर व संपर्क सेंटर स्थापित कर दिए, जिसके कारण पीजीआइ में एचआइवी मरीजों का लोड कम हुआ।

शुरुआत में एचआइवी की जांच करवाने के लिए मरीज पीजीआइ आते ही नहीं थे, लेकिन धीरे-धीरे जागरूकता कार्यक्रम शुरु किए तो मरीजों ने जांच के लिए आना शुरु किया। जांच पाजिटिव मिलने पर उनका इलाज किया, जिससे उनकी जिंदगी पटरी पर लौटी और जीने का आत्मविश्वास भी पैदा हुआ। पीजीआइ में कुल अभी तक 25 से ज्यादा एचआइवी मरीज रजिस्ट्रर्ड हुए, जो अब 11 हजार के करीब रह गए हैं। इनमें से चार से पांच हजार मरीजों की मौत हो गई, कुछ मरीजों को उनके जिले में खुले सेंटर में ट्रांसफर कर दिया। कुछ ऐसे थे, जिन्होंने इलाज बीच में ही छोड़ दिया।

पीजीआइ में होती है वायरल लोड जांच

रोहतक के पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय में आने वाले एचआइवी/एड्स मरीजों को अब बीमारी की मात्रा के हिसाब से दवाई दी जाती है। इसके लिए एचआइवी की वायरल लोड जांच जरूरी होती है। पीजीआइ के माइक्रोबायोलोजी विभाग में लैब स्थापित की जा चुकी है। प्रदेश में 35 हजार से अधिक मरीज रजिस्टर्ड हैं। समय-समय पर मरीजों के वायरल लोड जांच करनी होती है ताकि मरीज के अंदर बीमारी के फैलाव को देखते हुए उसके हिसाब से दवाई दी जा सके। एचआइवी की दवाईयां देने की तीन ट्रीटमेंट लाइन होती हैं और मरीज को पहली लाइन से आराम ना आने पर यह जांच करवाकर ही दूसरी लाइन पर डाला जाता है। उन्होंने कहा कि यदि बिना टेस्ट के मरीज की दवाइयों की कैटेगरी बदल दी जाती है तो उससे मरीज पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है इस मशीन के पीजीआइ में उपलब्ध हो जाने से सभी मरीजों का यह टेस्ट निशुल्क होता है।

टीबी के लिए सिंगल विंडो की व्यवस्था

एआरटी सेंटर के सहायक नोडल अधिकारी डा. दीपक जैन ने बताया कि यहां एचआइवी मरीजों का निश्शुल्क इलाज किया जाता है। दवा भी मुफ्त दी जाती है। कुछ टेस्ट के रुपये लगते थे, लेकिन सेंटर के नोडल आफिसर डा. वीके कत्याल ने टेस्ट फ्री करने के लिए सरकार को पत्र भेजा है। एचआइवी मरीजों में टीबी की शिकायत भी रहती है, इसलिए उनके लिए पीजीआइएमएस में सिंगल विंडो सिस्टम शुरू कर दिया ताकि उनको अपने इलाज के लिए इधर- उधर न भटकना पड़े। साथ ही, सरकार की योजना के तहत एचआइवी मरीजों को प्रोत्साहन देने के लिए दो हजार रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी, इसके लिए रजिस्ट्रर्ड मरीजों के बैंक खाते व अन्य कागजी कार्रवाई पूरी की जा रही है।

ग्रुप बनाकर करते हैं एक-दूसरे की मदद

पीजीआइ के एआरटी सेंटर में रजिस्ट्रर्ड एचआइवी मरीजों ने व्हाट्सअप ग्रुप बना रखा है, जो एक-दूसरे की मदद करते हैं। हिसार जिले के एक मरीज, जो एलएलबी कर चुके हैं, वो लीगल तौर पर अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं। कोई जागरूकता करने का काम करता है। नए मरीज, जिनको पीजीआइ में जांच व इलाज में दिक्कत आती है, उनकी मदद के लिए भी ग्रुप के साथ पहुंच जाते हैं। इनमें से कुछ सरकारी विभागों में नौकरी करते हैं तो कोई प्राइवेट नौकरी करते हैं। दस साल से ज्यादा समय से इलाज के बेहतर जिंदगी जीने वाले मरीजों को ब्रांड अंबेसडर भी बनाया गया है।


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