Makar Sankranti 2022 : म्हारै सबतै बड़ा त्योहार संक्रात नै मान्नै सै, रोहतक में महिलाओं ने जाहिर की भावनाएं
Makar Sankranti 2022 मकर संक्रांति पर नवविवाहिता कंबल चद्दर आदि लेकर अपने ससुर सास व जेठ का मान-सम्मान करने के लिए जाती है। उनके साथ अनेक महिलाएं लोक गीत गाती हुई चलती हैं। मकर संक्रांति पर गांव देहात या शहर में आज भी ये चलन है।
रोहतक, रतन चंदेल। म्हारै सबतै बड़ा त्योहार मान्नै सै संक्रात (मकर संक्रांति पर्व) नै, ससुरे का कंबल, सासू की तील व शाल, ऊपर रुपये धरकै, मनावण चली परात मैं। मेरे पिहर तै आया बायना (मकर संक्रांति पर मायके पक्ष से भेजी वस्तुएं) थारे मान मैं, मनै आशीर्वाद दे दो सास-ससुर जी, मैं आई सूं थारे सम्मान मैं। हरियाणा में मकर संक्रांति पर्व का कितना महत्व है, इसकी बानगी हरियाणवी में गाए जाने वाले इस लोक गीत से बखूबी जानी जा सकती है। दरअसल, प्रदेश की लोक संस्कृति से जुड़े लोगों की मानें तो हरियाणा में मकर संक्रांति पर्व बेटी के सम्मान और बुजुर्गाें के आशीर्वाद का प्रतीक है। मकर संक्रांति पर्व पर सुबह के स्नान और सूर्योपासना का भी विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन सूर्य भगवान दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन दिन स्नान न करने पर व्यक्ति का स्वभाव उग्र बना रहता है।
मकर संक्रांति पर्व पर स्नान और सूर्योपासना का भी है विशेष महत्व
महिला एवं बाल विकास विभाग की पूर्व जिला महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी और हरियाणवी लोक कलाकार अंग्रेज कौर के मुताबिक मकर संक्रांति पर हरियाणा में 14 जनवरी को हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन हमारी प्राचीन परंपराएं आज भी अनेक घरों में निभाई जाती है। नवविवाहिता के मायके से मकर संक्रांति पर सीधा या बायना भेजा जाता है। जिसमें मायके पक्ष की ओर से रजाई, कंबल, शाल, तिल, गुड, चावल आदि वस्तुएं भेजी जाती हैं। दरअसल, पहले महिलाओं में शिक्षा का स्तर काफी कम था और वे आत्मनिर्भर भी न के बराबर थी। जिस कारण मायके पक्ष वाले इस दृष्टिकोण के साथ बेटी का सहयोग करते थे कि बेटी को आशीर्वाद मिले और उनके परिवार खुशहाल बना रहे। ये परंपराएं अब भी निभाई जा रही है। नवविवाहिता के मायके पक्ष वाले अपनी बेटी के ससुराल में उसकी इज्जत व मान बढ़ाने की खातिर अनेक वस्तुएं अब भी भेजते हैं। जिसमें नवविवाहिता के ससुर के लिए कंबल, सास के लिए दामण चुनरी के अलावा जेठ के लिए चद्दर आदि शामिल हैं। इसके पीछे बेटी के ससुराल में उनके परिवार के बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना होता है, ताकि वे बेटी को आशीर्वाद दें और उनका परिवार खुशहाल बना रहे।
नवविवाहिता काे देते हैं आशीर्वाद
मकर संक्रांति पर नवविवाहिता कंबल, शाल व चद्दर आदि लेकर अपने ससुर, सास व जेठ का मान-सम्मान करने के लिए जाती है। उनके साथ अनेक महिलाएं लोक गीत गाती हुई चलती हैं। मकर संक्रांति पर गांव देहात या शहर में भी घर के आसपास जहां कहीं भी वे बैठे होते हैं उनके आदर स्वरूप वे वस्तुएं भेंट करती हैं। जिस पर सास ससुर व जेट आदि बड़े बुजुर्ग नवविवाहिता का आशीर्वाद देते हैं।
घरों में बनते हैं विशेष पकवान
वहीं, हरियाणा कला परिषद एवं आकाशवाणी रोहतक के पूर्व निदेशक डा. रामफल चहल का कहना है कि मकर संक्रांति पर घरों में गुड, तिल, मूंगफली व देशी घी की खिचड़ी आदि का प्रयोग विशेष रूप से विशेष पकवान बनाने में किया जाता है। इन दिनों सर्दी अधिक होती है। जबकि गुड, तिल व मूंगफली गर्म तासीर की होती है। इनके सेवन से शरीर में गर्मी बनी रहती है और हमारा सर्दी से बचाव होता है।
परंपराओं की रंगत होने लगी फीकी
हालांकि पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते चलन के चलते इन परंपराओं की रंगत फीकी होने लगी हैं लेकिन गांव देहात और शहर में भी अपनी संस्कृति को बनाए रखने वाले लोग आज भी मकर संक्रांति पर बड़े बुजुर्गों का सम्मान इसी तरह पारंपरिक रूप से करते हैं। अलग अलग परिवारों में दिनभर इस प्रकार की पारंपरिक सांस्कृतिक गतिविधियां चलती रहती हैं। इस दिन गुड, तिल, मूंगफली आदि के सेवन के चलते यह त्योहार हमें प्रकृति के निकट रहने का संदेश भी देता हैं।