संघर्ष की अनोखी कहानी, रोहतक में फुटपाथ पर रहने वाली पूजा को यूनिवर्सिटी में मिला दाखिला
रोहतक में फुटपाथ पर शेड में रहने वाली मध्यप्रदेश की पूजा की पढ़ाई के प्रति लगन देखकर लोग हैरान हैं। कोरोना काल में मदद के लिए हाथ आगे बढ़े तो ऑनलाइन कक्षा लगाने के लिए मोबाइल फोन तक मुहैया करवाया गया। पूजा को यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला है
रोहतक [ओपी वशिष्ठ]। फुटपाथ पर दस बाई बारह फीट का शेड। यह वो शेड है, जहां 15 वर्षीय पूजा शिक्षा को नए क्षितिज दे रही हैं। उसकी लग्नशीलता को देखकर संवेदनाओं ने उसे मुफलिसी से उभारकर शिक्षा के शिखर तक पहुंचाने की ठान ली है। यह समृद्धि से भरी संवेदना शिक्षा की राह में गरीबी के रोड़े हटाने के लिए आगे बढ़ी है।
मूलरूप से मध्यप्रदेश के जिला टीकमगढ़ के गांव दररेठा की रहने वाली पूजा रोहतक के सेक्टर-3-4 के एक्सटेंशन एरिया में फुटपाथ पर एक छोटे से शेड में तीन बहनों व माता पिता के साथ रहती है। पिता कैलाश रोड़े तोड़ने का काम करते है और मां मनकू घरों में काम करती है।
कैलाश की चार बेटियां हैं, जिसमें पूजा दूसरे नंबर की है। पूजा ने संसाधनों के अभाव में भी शिक्षा की ज्योति इस शेड में जला रखी है। पिछले दिनों हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी से दसवीं कक्षा में मेरिट हासिल की। उसकी इस उपलब्धि को देखकर डालमिया ग्रुप ने उसे जयपुर के वनस्थली विश्वविद्यालय में पढ़ाने का प्रस्ताव भेजा, जिसे पूजा ने बिना देरी से स्वीकार कर लिया। अब वह विश्वविद्यालय में नॉन मेडिकल की पढ़ाई कर रही है।
बचपन से ही थी पढ़ने की ललक
गांधी स्कूल के संचालक नरेश कुमार ने बताया कि एक दिन वह पार्क में स्ट्रीट लाइट की रोशनी में बच्चों को पढ़ा रहे थे। वहां पर खेलते हुए पूजा भी पहुंच गई। उसमें पढ़ने की ललक देखी और उसे भी पढ़ने के लिए कहा गया। इसके बाद वह भी पढ़ने के लिए रोजाना आती रही। फिर उसका सरकारी स्कूल में दाखिल कराया। दसवीं कक्षा में पूजा ने 80.4 अंक हासिल करते हुए मेरिट में स्थान हासिल किया। हालांकि वह इन नंबरों से संतुष्ट नहीं थी क्योंकि उसे उम्मीद थी कि 90 फीसद या इससे अधिक अंक हासिल करेगी। लेकिन इसका उसे मलाल नहीं है, कहती है, आगे ज्यादा मेहनत करके फीसद में सुधार करेगी।
खुद भी पढ़ती है और बच्चों को भी पढ़ाती है
पूजा गांधी निश्शुल्क स्कूल में खुद भी पढ़ती है और छोटी कक्षा के बच्चों को पढ़ाती भी है। मॉडल टाउन स्थित शहीद कैप्टन दीपक शर्मा राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय से ही दसवीं कक्षा उत्तीर्ण की। पहले स्कूल पैदल जाती थी, लेकिन दूर होने के कारण किसी ने साइकिल भी भेंट कर दी। कोरोना महामारी में जब आनलाइन पढ़ाई शुरू हुई तो चार बहनों के पास एक ही मोबाइल था। जिससे पढ़ाई प्रभावित होती थी। फिर किसी दानी ने एक मोबाइल दिया।
संसाधन नहीं लक्ष्य साधने पर फोकस
पूजा कहती है। सफलता हासिल करने के लिए संसाधन खास मायने नहीं रखते। लक्ष्य तय कर उसे हासिल करने की लग्न और ललक जरूरी है। दसवीं कक्षा में 90 फीसद अंक हासिल करने का लक्ष्य रखा। हासिल तो नहीं कर सकी, लेकिन नजदीक पहुंच गई। चार बहनें हैं, जिनमें बड़ी बहन वर्षा 12वीं में पढ़ रही हैं, उसके साथ ही मुकाबला भी रहता है।
विश्वविद्यालय में पढ़ने का सपना हुआ पूरा
पूजा कहती है, विश्वविद्यालय में पढ़ने का ख्वाब था, जो समय से पहले पूरा हो गया। डालमिया ग्रुप के सहयोग से उसका दाखिल जयपुर की वनस्थली विश्वविद्यालय में हो गया। अब वह अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगी। 11वीं कक्षा में उसने नॉन मेडिकल स्ट्रीम ली है, जिसमें फिजिक्स, केमेस्ट्री और मैथ विषय की पढ़ाई कर रही है। वह पीएचडी करके शिक्षक बनना चाहती है। उसे पता है कि श्रमिकों के बच्चों को पढ़ने में कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्ट्रीट लाइन की रोशनी में गांधी स्कूल में पढ़ती थी, लेकिन स्थानीय लोग वहां से भगा देते थे। लेकिन स्कूल संचालक नरेश ने हौसला दिया और पढ़ाई जारी रखी। वह भी शिक्षा के वंचित बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला जारी रखेगी।
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'' पूजा की काबिलियत और उसमें पढ़ने की ललक को देखते हुए मृद्दहरि डालमिया परिवार ने उसे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का फैसला लिया। पूजा से संपर्क किया गया और वनस्थली विवि जयपुर में उसका दाखिल करवा दिया। डालमिया परिवार की तरफ से उसकी ट्यूशन फीस और हॉस्टल का खर्च उठाया जा रहा है।
- इंदू, सहायक सेक्रेटरी, मृद्द डालमिया।
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