अधिकारियों की चर्चा तक सिमट कर रह गया लुप्त होते जीवों के सरंक्षण का 32 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट
विलुप्त हो रही वनस्पतियों व जीवों के संरक्षण के लिए 300 एकड़ में बायोडायवर्सिटी पार्क के निमार्ण का सपना देखा गया था। इस बात को चार वर्ष बीत गए हैं मगर अभी तक बायोडायवर्सिटी पार्क की नींव में एक पत्थर भी नहीं रखा गया है।
जागरण संवाददाता, हिसार। प्रदेश में विलुप्त हो रही वनस्पतियों व जीवों के संरक्षण के लिए 300 एकड़ में बायोडायवर्सिटी पार्क के निमार्ण का सपना देखा गया था। इस बात को चार वर्ष बीत गए हैं मगर अभी तक बायोडायवर्सिटी पार्क की नींव में एक पत्थर भी नहीं रखा गया है। बुरी खबर यह है है कि अब शायद बायोडायवर्सिटी पार्क का निर्माण हो भी नहीं सकेगा। क्योंकि सरकारी रुचि के अभाव में इस प्रोजेक्ट को कोई भी संस्थान सिरे ही नहीं चढ़ा पाया। किसी को पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की शर्तें नहीं भाईं तो किसी ने इसको लेकर आगे बढ़ने की जेहमत नहीं उठाई। बहरहाल वनस्पतियों व जीवों की रक्षा के लिए बनने वाला यह पार्क अब एक अधूरे सपने की तरह अधूरा ही रह गया है। इसको लेकर किसी सरकारी विभाग में कोई चर्चा नहीं है ना ही कहीं पर कोई फालोअप है।
क्या था बायोडायवर्सिटी पार्क का सपना
दरअसल चार वर्ष पहले पूर्व मुख्य सचिव हरियाणा डीएस ढेसी की अध्यक्षता में पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की राज्य स्तरीय स्टेयरिंग कमेटी की बैठक आयोजित हुई थी। इस बैठक में बायोडायवर्सिटी पार्क को बनाने की मंजूरी दी गई। इस पार्क का निर्माण हिसार में होना था। 300 एकड़ भूमि पर बनने वाले इस पार्क के लिए पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग 32 करोड़ रुपये खर्च करने को तैयार था। यह पार्क हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) की भूमि पर बनाया जाना प्रस्तावित था। इस पार्क के निर्माण की योजना चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान (सीआइआरबी) द्वारा बनाई जानी थी।
बायोडायवर्सिटी पार्क का यह था लक्ष्य
योजना के तहत विलुप्त हो रही प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों को 7 से 15 तक बढ़ाने, स्थानीय पक्षी प्रजातियों को 80 से 110 तक बढ़ाने, जलीय वनस्पति को 14 से 30 तक बढ़ाने, जलीय जीवों की संख्या को 20 से 55 तक बढ़ाने के लक्ष्य के अलावा जंगली पशु प्रजातियों, कृषि फसलों, फल वाले वृक्षों आदि का संरक्षण किया जाना प्रस्तावित था।
कई बैठकों के बाद भी नहीं निकला परिणाम
इस प्रोजेक्ट के तहत एचएयू और सीआइआरबी दोनों संस्थानों के विज्ञानियों की राज्य स्तर पर कई बैठकें हुईं। इसमें केंद्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की शर्तों पर संस्थान तैयार नहीं हुए तो मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बाद में पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने फंडिंग नहीं की तो एक भी बैठक आयोजित नहीं हो सकी। इस मामले में सूत्र बताते हैं कि पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग चाहता था कि एचएयू की जिस 300 एकड़ भूमि पर यह पार्क बनाया जाए वह विभाग को हस्तांतरित हो। मगर इस बार पर राज्य की तरफ से अधिकारी तैयार नहीं थे। ऐसी एक नहीं बल्कि कई शर्तें थी जो इस प्रोजेक्ट को राज्य से दूर करती गईं।