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चरखी दादरी की ये शिक्षिका हैं समर्पण की ऐसी मिसाल, रिटायर होने के वर्षाें बाद भी कर रहीं सेवा

संतरा देवी शिक्षा विभाग में 38 साल की सेवा करने के बाद अब भी अपने आप को रिटायर्ड नहीं मानती है इनकी उम्र 68 साल हो चुकी है। उन्होंने स्कूल में हमेशा अव्वल रहकर अपनी अलग ही पहचान बनाई।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Sat, 17 Apr 2021 05:57 PM (IST)Updated: Sat, 17 Apr 2021 05:57 PM (IST)
चरखी दादरी की ये शिक्षिका हैं समर्पण की ऐसी मिसाल, रिटायर होने के वर्षाें बाद भी कर रहीं सेवा
खेलों के साथ-साथ संतरा देवी कई सालों से सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेती रही है।

चरखी दादरी [सोनू जांगड़ा]। आम तौर पर जिस उम्र में शिक्षक व खिलाड़ी सन्यास ले लेते हैं, उस उम्र में दादरी निवासी शिक्षिका संतरा देवी समाज सेवा कार्यों में युवाओं जैसा जोश दिखा रही हैं। खेलों के साथ-साथ संतरा देवी कई सालों से सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेती रही हैं।

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संतरा देवी द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर चंडीगढ़ में उन्हें समाज सेवा श्रेणी में प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। पिछले एक साल के दौरान कोरोना संक्रमण के दौर में उन्होंने आमजन को जागरूक करने, मास्क, सैनिटाइजर वितरित करने, जरूरतमंदों की सहायता करने की लगातार मुहिम चलाई है।

स्कूल में अव्वल रहकर बनाई पहचान

संतरा देवी शिक्षा विभाग में 38 साल की सेवा करने के बाद अब भी अपने आप को रिटायर्ड नहीं मानती हैं। इनकी उम्र 68 साल हो चुकी है। उन्होंने स्कूल में हमेशा अव्वल रहकर अपनी पहचान बनाई। 1991 में प्रमोशन होने पर उन्होंने नवनिर्मित कन्या पाठशाला का संचालन करके लड़कियों एवं उनके परिवारों को शिक्षा का महत्व बताते हुए प्रेरित किया। सन 2007 से 2020 तक हरियाणा मास्टर एथलेटिक्स फाउंडेशन में पदक लाकर अपने जिले और राज्य का नाम रोशन करती है।

हजारों मास्क बनाकर वितरित किए

पिछले एक साल में उन्होंने अपने हाथों से हजारों की संख्या में मास्क बनाकर वितरित किए। असहाय लोगों की सहायता करना, तपती गर्मी में ठंडे पानी के लिए मटका अभियान चलाना, स्लम बस्तियों में जाकर वस्त्र बांटना, सिलाई सिखाना, खुशियों की दीवार में कपड़े, किताबें और बर्तन इत्यादि उपलब्ध करवाना उनकी दिनचर्या में शामिल रहा है। संतरा देवी ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि उन्हें समूह की जगह अकेला रहकर जरूरतमंदों की सेवा करने से सुकून मिलता है।

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