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सफेद सच: बेटा हमारा बड़ा काम करेगा, सियासत की विरासत आगे बढ़ाने में जुटे हरियाणा के ये दिग्‍गज

सफेद सच हरियाणा के दिग्‍गत नेता सियासत में अपने परिवार की विरासत बढ़ाने में जुटे हैं। इन नेताओं का मानो कहना है- बेटा हमारा बड़ा काम करेगा। इन दिग्‍गज नेताओं में शामिल हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा व बीरेंद्र सिंह।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 22 Jun 2021 01:17 PM (IST)Updated: Tue, 22 Jun 2021 01:17 PM (IST)
सफेद सच: बेटा हमारा बड़ा काम करेगा, सियासत की विरासत आगे बढ़ाने में जुटे हरियाणा के ये दिग्‍गज
पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा। (फाइल फोटो)

हिसार, [जगदीश त्रिपाठी]। सफेद सच: फादर्स डे पर सबने अपने अपने पिता को महान बताया। अब पिता तो अपनी संतान के लिए महान होता ही है। इसमें दो राय नहीं। वह पुत्र को आगे बढ़ाने के लिए हर जतन करता है। चाहे चौधरी बीरेंद्र सिंह हों या चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा। रिश्ते में दोनों भाई लगते हैं, लेकिन हैं एक दूसरे के धुर विरोधी। एक भाजपा में हैं तो एक कांग्रेस में। लेकिन दोनों में एक बात कामन है,दोनों मानते हैं-बेटा हमारा बड़ा काम करेगा।

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बीरेंद्र सिंह चाहते हैं कि उनके बेटे को केंद्र में मंत्री पद मिल जाए। उसको सांसद बनाने के लिए उन्होंने स्वयं मंत्री पद छोड़ दिया था। दूसरी तरफ हुड्डा अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को लोकसभा का चुनाव हारने के बाद राज्यसभा में भिजवा चुके हैं। अब इस प्रयास में जुटे हैं कि किसी तरह एक बार प्रदेश में सरकार बनाने का मौका मिल जाए तो दीपेंद्र का राजतिलक करा दें।

 पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और सांसद बृजेंद्र सिंह। (फाइल फोटो)

जो अनाथ, वही होते हैं जनता के नाथ

हरियाणा में दो तरह के नेता हैं। एक सनाथ। दूसरे अनाथ। सनाथ यानी जो राजनीतिक घरानों में जन्मे हैं। वही उनकी पूंजी है। लेकिन यहां चर्चा अनाथों की। ऐसे नेता, जो सेल्फमेड होते हैं। ऐसे ही एक नेता हैं डाक्टर अरविंद शर्मा। मेडिकल की पढ़ाई की। फिर राजनीति में कूद पड़े। सोनीपत से लोकसभा चुनाव लड़ा निर्दलीय। जीते। कांग्रेस में शामिल हुए। करनाल से दो बार सांसद बने। अब भाजपा में हैं। रोहतक से सांसद हैं।

वह राजनीतिक घराने से नहीं आते हैं, इसलिए उन्हेंं पूंजी बनानी पड़ती है। जो जनता के सुख-दुख में शामिल होने से बनती है। अरविंद इसमें नहीं चूकते। कृषि सुधार कानून का विरोध कर रहे चार लोगों ने कसार गांव के एक व्यक्ति को जिंदा जलाकर मार डाला। किसी दल का कोई नेता पीडि़त परिवार को सांत्वना देने नहीं गया। गए तो केवल अरविंद। यही वजह है कि वह सनाथ नेताओं पर भारी पड़ते हैं।

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तुम्हारे शहर की रौनक इन फकीरों से है

ऊंची बिल्डिगों से है न दौलतजदा अमीरों से है, तुम्हारे शहर की रौनक हम फकीरों से है। फकीर का अर्थ भले ही आध्यात्मिक रूप से कुछ और होता हो, लेकिन लोक-प्रचलित अर्थ में तो मांगने-खाने वाला होता है। वैसे कभी विश्वनाथ प्रताप सिंह फकीर हुआ करते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खुद को फकीर बताते हैं। लेकिन हम न तो राजानुमा फकीरों की बात कर रहे हैं और न संतनुमा फकीरों की।

हम बात कर रहे हैं, उत्तरप्रदेश-बिहार से हरियाणा आकर निर्माण क्षेत्र में लगे मजदूरों की, जो फकीरों जैसा जीवनयापन करते हैं। इनके बारे में किसी ने नहीं सोचा। अब उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों के लिए यह व्यवस्था बनाई है कि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन्हेंं भी मिल सकेगा। ऐसा हुआ तो यह श्रम का सम्मान होगा और दुष्यंत राजनीतिक फकीर नहीं बल्कि फकीरों के मसीहा के रूप में याद किए जाएंगे।

मैं हूं बड़ा खिलाड़ी

मुख्यमंत्री मनोहर लाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जीवनव्रती कार्यकर्ता हैं। जीवनव्रती माने जिसने अपना जीवन देश समाज के लिए दे दिया। ऐसे अधिकांश कार्यकर्ता पारिवारिक दायित्वों से मुक्त रहने के लिए विवाह नहीं करते। सीधा सादा सरल जीवन व्यतीत करते हैं। मनोहर लाल के बारे में भी लोग ऐसा ही सोचते थे। शायद ऐसे रहे भी हों, लेकिन समय समय पर वह जिस तरह से हाथ छोड़कर बुलट पर करतब दिखाते हैं, पानी में जेट स्कूटर चलाते हैं, गुब्बारे पर बैठकर हवा में उड़ते हैं, उससे लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।

कहते हैं कि मनोहर लाल प्रचारक भले रहे हों, उनके जैसा जीवन व्यतीत किया हो, लेकिन वह अब 66 की उम्र में जितने रिस्की खेल खेलते हैं, यह बता देता है कि 22 की उम्र में वह कितने गुणी रहे होंगे। यह बात अलग है कि अन्य प्रचारक अपने भीतर ऐसे गुण पनपने की लालसा नहीं पालते।


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