मिलिए फतेहाबाद की शकुंतला से, कोरोना की आपदा को अवसर में बदला, सीएम कर चुके सराहना
फतेहाबाद की शकुंतला के पास खुद का घर भी नहीं था। बुआ के पास रहती थीं। पति मजदूरी करते थे। तीन बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी। लॉकडाउन में मास्क बनाने का काम शुरू किया। अब अपना घर है। 2500 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रही हैं।
फतेहाबाद, जेएनएन। बात उन दिनों की है जब देश-प्रदेश में कोरोना का संकट छाया था। सरकार लॉकडाउन की दिशा में कदम बढ़ा रही थी। चौतरफा चर्चा कोरोना संकट और बचाव की। गांव खान मोहम्मद की 38 साल की शकुंतला उन दिनों अपना घर न होने के कारण बुआ के पास रहती थीं। वहीं टीवी चैनल पर कोरोना से बचाव में मास्क की उपयोगिता की जानकारी देखी-सुनी। इस नारी-शक्ति ने आपदा को ही अवसर बनाने की ठानी। रख दी आफत की जमीन पर खुद के आशियाने की नींव।
तकरीबन एक साल के कोरोना काल में उन्होंने न केवल आपने ख्वाबों का आशियाना बना लिया बल्कि अपने गांव व आसपास की सैकड़ों महिलाओं स्वरोजगार से स्वावलंबन का आधार भी दिया। शकुंतला की इस संवेदना की सराहना प्रदेश सरकार के मुखिया मनोहर लाल ने भी की। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ग्रामीण विकास में आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं की भागीदारी पर शकुंतला से रायशुमारी भी की। लहर के विपरीत चलने वाली इस शख्सियत पर जिलवासियों को फख्र है। इसे ही तो कहते हैं आपदा का रुख मोड़ उसे अवसर बनाना...।
प्रदेश की पहली महिला जिन्होंने मास्क बनाना शुरू किया
हरियाणा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के शेरावाली स्वयं सहायता समूह की संचालिका हैं शकुंतला। मिशन के जिला परियोजना समन्वयक रणविजय सिंह दावा करते हैं कि शकुंतला ने 16-17 मार्च, 2020 से ही मास्क बनाना शुरू किया था। वह पूरे हरियाणा में मास्क बनाने वाली पहली महिला हैं। शकुंतला ने अन्य महिलाओं को भी प्रशिक्षित किया। फिर तो कारवां ही बन गया।
यूं जोड़ा 2300 महिलाओं को स्वावलंबन से
शकुंतला ने पहले शेरावाली नाम से स्वयं सहायता समूह बनाया। इस समूह को एक लाख रुपये का प्रोत्साहन पुरस्कार भी मिला। इसके बाद वह एकता ग्राम संगठन की सचिव बनीं। फिर उम्मीद महिला क्लस्टर संगठन की प्रधान बन गईं।
ऐसे चली आपदा में आमदनी
ग्राम संगठन से प्रतिदिन औसत 1200 मास्क तैयार करती रही हैं। जबकि क्लस्टर लेवल पर लगभग 5000 मास्क प्रतिदिन। मास्क बनाकर चार रुपये प्रति मास्क बेच रही हैं। सस्ते दाम पर लोगों को मास्क उपलब्ध करवा रहीं जबकि खुद की आमदनी भी बढ़ा रही हैं।
शकुंतला की कहानी, उन्हीं की जुबानी
बकौल शकुंतला- मैं पहले कुरुक्षेत्र जिले के गांव मुस्तापुर रहती थी। अपनी बुआ के घर। दस साल किराये के मकान में भी रही। पति सुमेरचंद मजदूरी करते हैं। तीन बच्चों की परवरिश व शिक्षा की जिम्मेदारी हम दोनों पर थी। इधर, कोरोना का संकट आ गया। हमने इस दौर में खूब मेहनत की। मास्क की कमाई के साथ-साथ कुछ बैंक लोन भी लिये। जोड़-तोड़ के बाद खुद का मकान भी बना ही लिया। सीएम को सुझाव दिया था कि स्वयं सहायता समूहों के बैंक लोन के ब्याज माफ करने के विधान हो। उन्होंने आश्वस्त किया है।
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