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पांच हजार वर्षों से भी पुराना हिसार का सीसवाल धाम, अज्ञातवास में पांडवों ने की थी शिवलिंग की स्थापना

हिसार का सीसवाल धाम ऐतिहासिक है। महाभारतकाल से इसकी मान्यता जुड़ी है। पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले करीब 750 सालों का रिकार्ड है। इससे पूर्व का रिकॉर्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था। हड़प्पा की समकालीन सीसवालिय सभ्यता का भी साक्षी है।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 02:52 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 02:52 PM (IST)
पांच हजार वर्षों से भी पुराना हिसार का सीसवाल धाम, अज्ञातवास में पांडवों ने की थी शिवलिंग की स्थापना
सीसवाल धाम में देश का सबसे लंबा प्राचीन शिवलिंग मौजूद है।

संवाद सहयोगी, मंडी आदमपुर (हिसार)। आदमपुर से करीब 10 किलामीटर दूर गांव सीसवाल व मोहब्बतपुर के मध्य स्थित पुरातन ऐतिहासिक शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने महाभारत काल के दौरान की थी। मंदिर का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से साफ हो जाता है कि पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले करीब 750 सालों का रिकार्ड उपलब्ध है।

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बताया जाता है कि इससे पूर्व का रिकार्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था। हिसार से उत्तर-पश्चिम दिशा में सिंधु घाटी की सभ्यता व मोहन जोदड़ो-हड़प्पा कालीन सभ्यता की समकालीन प्राचीन सीसवालिय सभ्यता वर्तमान गांव सीसवाल की जगह पनपी। सीसवालिय सभ्यता के कारण इस गांव का नाम सीसवाल पड़ा जो सरस्वती नदी की सहायक नदी दृश्दवंती के किनारे बसा हुआ था। भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई से इस सभ्यता का पता चला।

शोध पत्रों में मिलता है इस सभ्यता का वर्णन

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. केसी यादव के शोध पत्रों में इसका विस्तृत विवरण मिलता है। भिवानी के पास नौरंगाबाद में सैन्धव सभ्यता पनपी। सीसवालिय लोगों की संपन्नता को देखते हुए सैन्धवों ने सीसवालिय लोगों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि इस युद्ध में हार-जीत का वर्णन नहीं मिलता। लेकिन, इस युद्ध के बाद दोनों सभ्यताएं आत्मसात होकर एक हो गईं तथा इसे सीसवालिय-सैन्धव सभ्यता कहा जाने लगा।

संत को स्वप्न में दिखा था पेड़ के नीचे दबा शिवलिंग 

सीसवाल कुरुक्षेत्र-हस्तिनापुर जितना पुराना है। करीब 5,150 साल पहले महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव सीसवालिय वनों में भी रहे। मां कुंती शिव भक्त थी। अपने कुछ समय के प्रवास के दौरान माता कुंती के आदेश पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की जो वर्तमान में शिव मंदिर में मौजूद है। बताया जाता है कि मंदिर के स्थान पर पहले एक फ्रास का पेड़ हुआ करता था। यहां एक संत तपस्या करते थे। तपस्यारत संत को एक बार स्वप्न में पेड़ के नीचे शिवलिंग दबा हुआ दिखाई दिया। संत ने ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी। बाद में खुदाई करने पर 9-10 फीट लंबा शिवलिंग मिला जो पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यही शिवलिंग इस मंदिर की नियति का आधार बना।

मंदिर निर्माण के लिए नहीं थी सामग्री, हुआ चमत्कार

इसे एक चमत्कार व दैवयोग ही कहा जाएगा कि जब मंदिर निर्माण के लिए सामग्री को लेकर चिंता की गई तो आकाशवाणी हुई कि निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाए, सामग्री उसी वृक्ष के नीचे से मिल जाएगी। मंदिर का निर्माण वृक्ष के नीचे से मिली तमाम आवश्यक सामग्री के साथ निर्बाध गति से हुआ। शिवालय में अब तक सुरक्षित पड़ी ईंट भी उसी वृक्ष के नीचे से निकली हुई बताई जाती है।

भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक

मंदिर कमेटी के प्रधान घीसाराम जैन का दावा है कि यह भारत के सबसे प्राचीन चार मंदिरों में से एक है। अपने दावे का आधार वे केंद्रीय पुरातत्व से विभाग से मिली सूचना को बताते हैं। यह सूचना मंदिर की प्राचीनता व ऐतिहासिकता से जुड़ी बताई गई है। शिवलिंग की बाहरी लंबाई करीब चार फीट है और अंदर भी इतनी ही होने का अनुमान है। ऐसे प्राकृतिक एवं असाधारण शिवलिंग कम ही देखने को मिलते हैं।

शिवलिंग के चारों ओर विशेष भाषा

शिवलिंग के चारों ओर की शब्दावली एक विशेष भाषा में लिखी गई है, जो बहुत ही बारीक है और इसे आंखों से पढ़ना नामुमकिन है। मंदिर के निर्माण के लिए खुदाई से ईंटें अपने आप में असाधारण हैं। जिनकी लंबाई 1.25 फीट व चौड़ाई 0.75 फीट है। इन तमाम विशिष्टïताओं के चलते धार्मिक जगत में अपनी खास पहचान बना चुके इस मंदिर से जुड़े इतिहास को लिपिबद्घ करवाने की मांग शिव भक्त कई बार कर चुके हैं।

अद्भुत वातावरण के चलते विशिष्ट पहचान

मेला संयोजक राकेश शर्मा ने बताया कि सीसवाल का यह शिवालय अपनी कई विशेषताओं और अद्भुत वातावरण के चलते देशभर में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से असीम सुख की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहां मन और लगन से पूजा करने पर मनोकामना पूरी होती है। शर्मा ने बताया कि अगर इस तरफ पुरात्तव विभाग सकारात्मक कदम उठाए तो इस प्राचीन शिव नगरी का आध्यात्मिक स्वरूप शिव भक्तों के सामने आ सकेगा। साथ ही यह शिवालय धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी सामने आ सकता है।

करोड़ों रुपये की लागत से हो रहा जीर्णाेद्धार

पिछले करीब डेढ़ साल से सीसवाल धाम स्थित शिवालय मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य किया जा रहा है। करोड़ों रुपये की लागत से होने वाले जीर्णोद्धार के बाद यह मंदिर देशभर के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र होगा। शिव मंदिर को भव्य रूप देने के लिए कमेटी द्वारा राजस्थान के भरतपुर जिले के बंशी पहाड़पुर से विशेष पत्थर मंगवाए गए है। कारीगर इन पत्थरों को तराशकर अनेक रूप दे रहे हैं।

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