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आठ हजार साल पहले हिसार से होकर निकलती थी सरस्वती नदी, विकसित हुई थी सिंधु घाटी सभ्यता

हिसार स्थित (हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर) के वैज्ञानियों ने हरियाणा में सेटेलाइट और जीआइएस (ग्राफिक इंफोरमेशन सिस्टम) के जरिये रस्तवती की मुख्यधारा और इसकी नदियों की खोज की है। जिसमें पता चलता है रस्वती की कई उपनदिया थीं। इन नदियों के किनारों पर भारतीय सभ्‍यता विकसित हुई थी।

By Manoj KumarEdited By: Published: Thu, 11 Mar 2021 08:37 AM (IST)Updated: Thu, 11 Mar 2021 08:37 AM (IST)
आठ हजार साल पहले हिसार से होकर निकलती थी सरस्वती नदी, विकसित हुई थी सिंधु घाटी सभ्यता
नारनौंद की राखीगढ़ी, फतेहाबाद के कुनाल और वनावली की सभ्यता इसी नदी के किनारे विकसित हुई थी

हिसार [चेतन सिंह] 8 हजार साल पहले हिसार से होकर सरस्‍वती नदी निकलती है। हरसैक (हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर) के वैज्ञानियों ने हरियाणा में सेटेलाइट और जीआइएस (ग्राफिक इंफोरमेशन सिस्टम) के जरिये रस्तवती की मुख्यधारा और इसकी नदियों की खोज की है। जिसमें पता चलता है रस्वती की कई उपनदिया थीं। जो सरस्वती की मुख्यधारा से ही निकलती थी और आगे जाकर उनमें ही मिल जाती थी। इस नदी के किनारे हमारे ऋषियों में आश्रम बनाए और अनुसंधान के कार्य किए थे। वेदों में भी सरस्वती नदी का जिक्र है।

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हरसैक (हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर) ने सेटेलाइट के माध्यम से ऐसे क्षेत्रों का पता लगा है जहां मिट्टी में पानी काफी तेजी से रिचार्ज होता है। विज्ञानी बताते हैं कि जहां सरस्तवी बहती थी आज भी वहां का पानी मीठा है। वैज्ञानी बताते हैं कि हिसार का गुजरी महल और राखीगढ़ी सरस्वती से ही निकली उपनदी के किनारे बसाए गए थे। इतना ही नहीं फतेहाबाद में मिली प्राचीन साइट भिरडाना, बनावली और कुनाल भी इसी नदी के किनारे है। हरसैक की इस रिपोर्ट का फायदा पुरात्वविदों को भी होगा क्यूंकि अधिकतर प्राचीन साइट इसी नदी के किनारे हैं।

हरसैक के डायरेक्टर वीके आर्य ने इसको लेकर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी तैयार की है जो सरकार को सौंप दी गई है। इस रिपोर्ट से मीठे पानी के स्त्रोत और आर्किलोजिकल साइट के बारे में आसानी से पता लगाया है। वीके आर्य इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट के कॉर्डिनेटर, सीनियर साइंटिस्ट डा. अनूप कुमार प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर रहे हैं।

इस तरह हरसैक को मिली जानकारी

डा. वीके आर्य ने बताया कि सेटेलाइट के जरिये देखने पर कंकड और मिट्टी गहरे नजर की नजर आती है। इन जगहों पर इनफिलट्रेशन रेट अधिक हैं। सेटेलाइट से देखने पर पता चला कि सिरसा और फतेहाबाद में सरस्वती नदी कई किलोमीटर चौड़ी थी। यमुनानगर के आदिबद्री से निकलकर कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, जींद, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा होकर राजस्थान में यह नदी निकल जाती थी। इतना ही हरियाणा के बाकि जगहों में भी इस नदी की उपनदियां मौजूद थी। इसलिए हरियाणा में संभवत इस नदी के आसपास ही हमारे पूर्वजों ने खेती शुरू की। क्यूंकि यहां की जमीन और पानी फसलों के लिए उपयुक्त था।

इस रिपोर्ट का सरकार उठा सकती है लाभ

हरसैक की रिपोर्ट के जरिये मीठे और ताजे पानी के स्त्रोत का आसानी से पता लगाया जा सकता है। जहां सरस्वती नदी बहती थी वहां वाटर रिचार्ज तेजी से होता है। उन जगहों को सरकार वाटर रिचार्ज के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। इसके अलावा पुरानी प्राचीन सभ्यताओं का भी पता लगाया जा सकता है।

सरस्वती नदी से ही भारतीय सभ्यता का उदय हुआ : प्रो. शिंदे

पुरातत्विदों मानते हैं कि सरस्वती नदी के तट से ही भारतीय सभ्यता की शुरुआत हुई है। डेक्कन यूनवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर वशंत शिंदे के अनुसार हरियाणा की मिट्टी उपजाऊ थी और सरस्वती नदी बहने के कारण यहां पानी की कोई कमी नहीं थी। वहीं सिंधु नदी काफी बड़ी नदी थी मगर इसमें बाढ़ बहुत अधिक आती थी। सरस्तवी नदी सिंधु के मुकाबले शांत नदी थी और इसका पानी काफी मीठा था जो फसलों और मनुष्यों के लिए लिए अमृत था। इससे पता चलता है कि भारतीय सभ्यता की शुरआत यहीं से हुई थी।

सेटेलाइट से पता लगाया कहां कहां थी नदी

वीके आर्य, डायरेक्टर, हरसैक ने कहा कि हमने सेटेलाइट के जरिये पूरे हरियाणा में मैपिंग कर पता लगाया था कि सरस्वती नदी कहां-कहां है। हमें इसके सुखद परिणाम मिले हैं। रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजी हुई है। सरकार इस रिपोर्ट काफी फायदा उठा सकती है।


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