Kisan Andolan: सरकार को न झुका पाने की कुंठा से चिंतित संयुक्त किसान मोर्चा
धरनास्थलों पर लोगों की नामौजूदगी से चिंतित संयुक्त किसान मोर्चा के नेता अब फिर संसद घेरने की बात करने लगे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल रेखांकित कर चुके हैं कि वह आंदोलनकारियों और उत्पातियों में फर्क समझ रहे हैं। उत्पातियों की मंशा पूरी नहीं होगी।
हिसार, जगदीश त्रिपाठी। Kisan Andolan हरियाणा के कुंडली बॉर्डर पर कृषि सुधार कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के नेताओं ने पंजाबी एक्टर-सिंगर दीप सिद्धू के भाजपाई होने का सर्टिफिकेट कैंसिल कर दिया है। गैंगस्टर से पंजाब के यूथ लीडर के रूप में कन्वर्ट हुए लक्खा सिधाना को भी आंदोलनकारी नेताओं ने फिर से अपना घोषित कर दिया है। विवशता है। धरनास्थलों पर लोग कम होते जा रहे हैं। यही कारण है कि संयुक्त किसान मोर्चा की कोर कमेटी के सदस्य दर्शनपाल कह रहे हैं कि गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हिंसा फैलाने के आरोपितों-दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना को धरनास्थलों पर बुलाया जाएगा।
युवाओं को जोड़ने के लिए उनकी मदद ली जाएगी। रेखांकित कर लें कि ये वही किसान नेता हैं जिन्होंने गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद कहा था कि दीप सिद्धू भाजपा का आदमी है और भाजपा ने आंदोलन खत्म कराने के लिए साजिश के तहत हिंसा कराई। लक्खा सिधाना के लिए भी संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कह दिया था कि उससे हमारा कोई संबंध नहीं है। अब उनकी बात दोनों मान भी जाएं तो धरनास्थलों पर शायद ही पहले जैसी भीड़ जुटे, क्योंकि उनके आने के बाद भी जो लोग आएंगे वे पंजाब से ही आएंगे।
उधर धरनास्थलों पर लोगों की नामौजूदगी से चिंतित संयुक्त किसान मोर्चा के नेता अब फिर संसद घेरने की बात करने लगे हैं। उनकी दिक्कत यह है कि संसद के भीतर तो गुंजाइश है नहीं, क्योंकि किसान संगठनों का कोई भी नेता सांसद नहीं है। हालांकि चुनाव तो कई लड़ चुके हैं, लेकिन जमानत जब्त ही कराए हैं। एक हन्नान मुल्ला को छोड़कर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य के रूप में बंगाल के उलुबेरिया लोकसभा क्षेत्र से वह कई बार सांसद रह चुके हैं, लेकिन 2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद से वह खाली हैं और ऑल इंडिया किसान सभा के जनरल सेक्रेटरी हैं, जो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का किसान मोर्चा है। सो, गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के नेता फिर संसद के घेराव की बात कर रहे हैं। हालांकि इस बार वे कह रहे हैं कि आंदोलनकारी हाथ बांधकर दिल्ली में प्रवेश करेंगे।
दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा में दोनों प्रमुख धरनास्थलों पर हरियाणा के लोगों की उपस्थिति नगण्य है। वैसे एक समुदाय (संप्रदाय नहीं) विशेष ही आंदोलन में भागीदारी कर रहा है। इस समुदाय के लिए आंदोलन के एकमात्र नेता राकेश टिकैत हैं और वही उनके नायक हैं। इसलिए वह धरनास्थलों पर पंजाब के नेताओं के सामने जाकर बैठने के बजाय सड़क पर संग्राम करता है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता हाथ बांधकर दिल्ली में प्रवेश की बात कर रहे हैं, लेकिन राकेश टिकैत ट्रैक्टर को किसानों का टैंक बता रहे हैं और उनसे अपील कर रहे हैं कि जब बुलाया जाए तो दिल्ली में अपने टैंक लेकर पहुंचना। इस बीच राकेश टिकैत के अन्य प्रदेशों में घूमने और महीने भर पहले एक छात्र द्वारा उनसे सवाल पूछे जाने और छात्र से माइक छीनने के बाद उनके समर्थक कुछ शांत थे, पर राजस्थान के अलवर जिले के एक छात्र नेता राव कुलदीप यादव ने टिकैत समर्थकों को फिर से भड़का दिया है। वैसे ही जैसे 26 जनवरी के बाद उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायक नंदकिशोर ने टिकैत को रुलाकर मौका दे दिया था।
अलवर के मत्स्य विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष राव कुलदीप यादव ने फेसबुक पर पोस्ट डाली और राकेश टिकैत से कुछ सवाल पूछने का एलान किया। कुलदीप का सवाल है कि टिकैत राजस्थान की उस कांग्रेस सरकार का समर्थन क्यों कर रहे हैं जिसने वादा किया था कि 10 दिन में कर्ज माफी कर देंगे, पर कर्ज माफ नहीं हुए। राजस्थान में बाजरे की खरीद 1200 रुपये प्रति क्विंटल के भाव हो रही है, लेकिन पड़ोसी हरियाणा में 2150 रुपये प्रति क्विंटल यानी एमएसपी पर खरीद हो रही है।
कुलदीप को अपने सवालों के जवाब तो नहीं मिले, लेकिन उन्हें राजस्थान पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और इधर हरियाणा में इसके विरोध में हरियाणा के मंत्रियों और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी-जननायक जनता पार्टी गठबंधन के नेताओं का घेराव शुरू कर दिया गया। यहां तक कि वे किसी के निधन पर शोकसभा में श्रद्धांजलि देने जाते हैं तो उन्हें घेरकर उनके साथ र्दुव्यवहार किया जा रहा है।
रोहतक में मुख्यमंत्री मनोहर लाल को एक श्रद्धांजलि सभा में रोकने का प्रयास किया गया। उसमें दो आंदोलनकारी और एक पुलिसकर्मी घायल हुए। अब इस घटना को किसानों का दमन बताकर सड़कों पर यातायात बाधित किया जा रहा है। लोग परेशान हो रहे हैं। आंदोलनकारी चाहते भी यही हैं। कारण यह कि भीड़ तो अब पहले जैसी जुटेगी नहीं। लोग मुंह मोड़ रहे हैं। इसलिए सरकार को न झुका पाने की उनकी कुंठा प्रतिध्वनित हो रही है। यदि उनकी अराजक आक्रामकता से निपटने के लिए पुलिस बलप्रयोग करती है तो उससे उनके आंदोलन को एक बार फिर संजीवनी मिल जाएगी, लेकिन उनकी दिक्कत यह है कि हरियाणा सरकार उनकी मंशा समझती है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल रेखांकित कर चुके हैं कि वह आंदोलनकारियों और उत्पातियों में फर्क समझ रहे हैं। उत्पातियों की मंशा पूरी नहीं होगी।
[प्रभारी, हरियाणा राज्य डेस्क]