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अब और भी स्‍वादिष्‍ट बनेंगी चपातियां, एचएयू ने विकसित की रोगरोधी व बंपर पैदावार वाली गेहूं की किस्म

हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने गेहूं की नई उन्नत किस्म (डब्ल्यूएच 1270) विकसित की है। इसकी विशेषता यह है कि यह पैदावार भी अधिक देगी और इस गेहूं से बने आटे की चपातियां भी खाने में स्वादिष्ट लगेंगी।

By Manoj KumarEdited By: Published: Tue, 15 Dec 2020 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 15 Dec 2020 03:44 PM (IST)
अब और भी स्‍वादिष्‍ट बनेंगी चपातियां, एचएयू ने विकसित की रोगरोधी व बंपर पैदावार वाली गेहूं की किस्म
गेहूं की डब्ल्यूएच 1270 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी इलाकों के लिए अनुमोदित किया गया है

हिसार, जेएनएन। अब गेहूं का जायका और भी स्‍वाद होगा, तो जाहिर है कि रोटियां भी पहले से ज्‍यादा स्‍वादिष्‍ट बनेंगी। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने गेहूं की नई उन्नत किस्म (डब्ल्यूएच 1270) विकसित की है। इसकी विशेषता यह है कि यह पैदावार भी अधिक देगी और इस गेहूं से बने आटे की चपातियां भी खाने में स्वादिष्ट लगेंगी। इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के गेहूं अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है।

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किस्म को लेकर हाल ही में भारत सरकार के कृषि एवं सहयोग विभाग की फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप समिति ने प्रयोग की स्वीकृति दी दी है। ऐसी ही नई-नई उन्नत किस्मों के कारण हरियाणा गेहूं के प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता में देशभर में प्रथम स्थान पर है। कुलपति प्रो. समर सिंह ने विज्ञानियों की इस उपलब्धि पर बधाई दी और भविष्य में भी निरंतर प्रयासरत रहने का आह्वान किया।

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए की गई है विकसित

गेहूं की यह किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी इलाकों के लिए अनुमोदित किया गया है। इन क्षेत्रों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर क्षेत्र को छोड़कर),पूर्वी उत्तर प्रदेश (झांसी क्षेत्र को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर के कठुआ व जम्मू जिले, हिमाचल प्रदेश के उना जिला व पांवटा घाटी और उत्तराखंड का तराई क्षेत्र प्रमुख रूप से शामिल हैं। 

नियमानुसार करें बिजाई तो मिलेगी अधिक पैदावार

अनुसंधान निदेशक डा. एसके सहरावत ने बताया कि गेहूं की इस किस्म को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में बिजाई के लिए अनुमोदित किया गया है। अगेती बिजाई करने पर इसकी पैदावार प्रति एकड़ 4 से 8 क्विंटल तक अधिक ली जा सकती है। इस किस्म में विश्वविद्यालय द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार बिजाई करके उचित खाद, उर्वरक व पानी दिया जाए तो इसकी औसतन पैदावार 75.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है और अधिकतम पैदावार 91.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है।

रोगरोधी है यह किस्म

इस किस्म की खास बात यह है कि यह गेहूं की मुख्य बीमारियां पीला रतवा व भूरा रतवा के प्रति रोगरोधी है। इसके अलावा गेहूं के प्रमुख क्षेत्रों में प्रचलित मुख्य बीमारियां जैसे पत्ता अंगमारी, सफेद चूर्णी व पत्तियों की कांग्यिारी के प्रति भी रोगरोधी है। यह किस्म 156 दिन तक पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत ऊंचाई भी 100 सेंटीमीटर तक होती है, जिसके कारण यह खेत में गिरती नहीं। इस किस्म में प्रोटीन भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक है।

इन विज्ञानियों की मेहनत लाई रंग

गेहूं की डब्ल्यूएच 1270 उन्नत किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के गेहूं अनुभाग के विज्ञानिक डा. ओपी बिश्नोई, डा. विक्रम सिंह, डा. एसके सेठी, डा. एसएस ढांडा, डा. दिव्या फौगाट, डा. एमएस दलाल, डा. सोमवीर, डा. आइएस पंवार, डा. एके छाबड़ा, डा. योगेंद्र कुमार, डा. केडी सहरावत, डा. मुकेश सैनी, डा. रमेश कुमार, डा. कृष्ण कुमार, डा. वाईपीएस सोलंकी, डा. ए लोकेश्वर रेड्डी, डा. आरएस बेनीवाल, डा. रेनू मुंजाल, डा. भगत सिंह, डा. नरेश सांगवान, डा. आरएस कंवर, डा. प्रियंका, डा. राकेश पूनिया, डा. मुकेश कुमार, डा. निशा कुमारी, डा. बबीता व डा. हरबिंद्र सिंह का भी विशेष सहयोग रहा।

अगले वर्ष से होगा बीज उपलब्ध

पादप एवं पौध प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एके छाबड़ा ने बताया कि रबी के मौसम के लिए सिफारिश की गई इस किस्म का बीज अगले वर्ष किसानों के लिए उपलब्ध करवा दिया जाएगा। यह किस्म किसानों के लिए वरदान साबित होगी।


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