रोहतक पीजीआई में हड्डी रोग विभाग के एचओडी डॉक्टर आरसी सिवाच ने अचानक दिया इस्तीफा, ये वजह
हड्डी रोग विभागाध्यक्ष डॉ आर सी सिवाच ने अचानक 3 महीने का वॉलंटरी रिटायरमेंट का नोटिस देकर पूरे पीजीआईएमएस में एक बार फिर से हलचल मचा दी है। संस्थान में किसी को ज्यादा नहीं पता कि नोटिस देने का क्या कारण है
जागरण संवाददाता, रोहतक। रोहतक पीजीआइएमएस के हड्डी रोग विभागाध्यक्ष डॉ आर सी सिवाच ने अचानक 3 महीने का वॉलंटरी रिटायरमेंट का नोटिस देकर पूरे पीजीआईएमएस में एक बार फिर से हलचल मचा दी है। संस्थान में किसी को ज्यादा नहीं पता कि नोटिस देने का क्या कारण है, बस कयास लगाए जा रहे हैं, क्योंकि उनकी रिटायरमेंट अभी 30 दिसंबर 2025 तक बाकी थी, लेकिन जैसे ही नोटिस की खबर फैली सारे पीजीआइएमएस में हलचल हो गई और उनका यह कदम चर्चा का विषय बन गया है कि अचानक क्या कारण रहा होगा कि उन्हें रिटायरमेंट का नोटिस देना पड़ा।
वहीं दूसरी ओर हड्डी रोग विभाग के सारे डॉक्टर तथा रेजिडेंट मायूस हैं, कोई कह रहा है कि डॉ सिवाच हमारे रक्षा कवच हैं उन्होंने ही डिपार्टमेंट को एक परिवार की तरह इकट्ठा बांधकर रखा हुआ था। विभाग में डॉक्टर उन्हें हड्डी रोगों के इलाज के साथ-साथ जोड़ बदलने का जादूगर भी कहते हैं। सुनने में आ रहा है कि ज्यादातर डॉक्टरों को डर है कि कहीं विभाग बिखर ना जाए हर एक आदमी के मन में उनके प्रति गहरी आस्था है, आंखों की शर्म है, तो कुछ नहीं चाहते कि उन्हें हड्डी के इलाज तथा जोड़ बदलने की दक्षता वे डॉ सिवाच से सीखने से वंचित रह जाएं। समस्त हड्डी रोग विभाग मानता है कि डॉक्टर सिवाच एक जुझारू और निडर आदमी है।
वह बात जग जाहिर है कि पूर्व कुलपति, निदेशक यानी कि सारा प्रशासनिक अमला हड्डी रोग विभाग को खत्म करने पर तुला हुआ था तथा तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे थे फिर भी डॉक्टर सिवाच इस से बात डरे नहीं और पूर्व प्रशासनिक अमले को घुटनों पर आना पड़ा था, विभाग के किसी भी चिकित्सक पर उन्होंने आज तक आंच नहीं आने दी। विभाग में डॉक्टर सिवाच की इज्जत का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी एक आवाज पर डिपार्टमेंट के सीनियर 35 डॉक्टर्स ने 1 दिन में पंजाब एवं एवं हरियाणा हाईकोर्ट में पूर्व कुलपति तथा कुलसचिव के खिलाफ एफिडेविट दे दिए थे, यह डॉक्टर सिवाच का डिपार्टमेंट पर पकड़ का सबसे बड़ा उदाहरण है।
डॉ आर सी सिवाच एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। वर्ष 1978 बैच के एमबीबीएस स्टूडेंट रहे हैं और 1990 में वे यहां लेक्चरर लगे तथा इसी विभाग में विभिन्न पदों पर रहते हुए 2011 में खानपुर मेडिकल कॉलेज चलाने के लिए उन्हें निदेशक बनाया गया, जिसे उन्होंने एक रोल मॉडल की तरह चलाया। डॉक्टर सिवाच ने एमएस, एमएनएएमएस, डीएनबी, पीएचडी और एफए एमएस डिग्रियां हासिल की हुई हैं, जो शायद ही हरियाणा के किसी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक के पास नहीं होंगी।
इन सब को देख कर यही लगता है कि उन्हें मरीजों के हित में संस्थान को नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि उनका यह कदम विभाग व संस्थान के लिए ही नहीं मरीजों के हित में भी उचित साबित नहीं होगा। जैसे ही संस्थान के लोगों को पता चला कि डॉक्टर सिवाच ने वीआरएस के लिए इच्छा जाहिर की है, संस्थान के सभी वर्ग के लोगों का उनके कार्यालय पर तांता लग गया है । यहां तक कि सीनियर डॉक्टर भी उन पर दबाव बना रहे हैं कि वे अपना फैसला वापस ले लें।