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कभी संयुक्‍त किसान मोर्चा की कोर कमेटी में भी शामिल नहीं थे टिकैत, आंसुओं ने बना दिया आंदोलन का सिरमौर

टिकैत के पीछे एक बड़ा जन समुदाय है और टिकैत आंदोलन के टिकैत बन चुके हैं। कम से कम हरियाणा में जितनी अकेले टिकैत की फैन फालोइंग है संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के कुल मिलाकर उसकी चौथाई भी नहीं होगी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 03:22 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 09:09 AM (IST)
कभी संयुक्‍त किसान मोर्चा की कोर कमेटी में भी शामिल नहीं थे टिकैत, आंसुओं ने बना दिया आंदोलन का सिरमौर
टिकैत संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं की अवशता को भी समझते हैं।

हिसार, जगदीश त्रिपाठी। राकेश टिकैत ने कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे अन्य आंदोलनकारी नेताओं को अवश कर दिया है, वे चाहकर भी टिकैत के विरोध में बोल भी नहीं सकते, क्योंकि उन्हें पता है कि जेठ हो जून, बिन टिकैत सब सून। अब टिकैत बाकी नेताओं के जेठ बन चुके हैं। इसलिए फिलवक्त हरियाणा में राकेश टिकैत के विपरीत बयान देना, उनके तंबू उखाड सकता है। टिकैत भी यह जानते हैं। वह भी निश्चिंत हैं। अपनी बात स्पष्ट कह देते हैं।

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संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं ने कहा कि 26 जून देश पर आपातकाल थोपा गया था। हम उस दिन पूरे देश में काले झंडे लगाकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। राजभवनों का घेराव करेंगे। लेकिन टिकैत ने स्पष्ट कह दिया कि उनके संगठनों के लोग न राजभवनों का घेराव करेंगे न काले झंडे दिखाएंगे। टिकैत की इस घोषणा से भाजपा और कांग्रेस दोनों राहत की सांस ले सकती हैं।

भाजपा इसलिए कि वह अधिकतर प्रदेशों में सत्ता में है, जहां सत्ता में नहीं है, वहां भी राजभवनों पर उसका ही कब्जा है और राज्यपाल उसकी ही तरफ से नियुक्त किए गए हैं। कांग्रेस इसलिए कि 26 जून का प्रदर्शन आपातकाल की याद दिलाते हुए किया जा रहा है, यदि प्रदर्शन जितना कम प्रभावी होगा, उसे (कांग्रेस को) उतनी कम शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।

दिलचस्प है कि राकेश टिकैत उस संयुक्त किसान मोर्चा की को सात सदस्य कोर कमेटी में नहीं हैं, जो आंदोलन कर रहे चालीस से अधिक संगठनों ने बनाई है। लेकिन इससे क्या होता है? टिकैत के पीछे एक बड़ा जन समुदाय है और टिकैत, आंदोलन के टिकैत बन चुके हैं। कम से कम हरियाणा में जितनी अकेले टिकैत की फैन फालोइंग है, संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं के कुल मिलाकर उसकी चौथाई भी नहीं होगी। टिकैत इसे जानते हैं और संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं की अवशता को भी समझते हैं।

संभव है कि आंदोलन के पूर्वार्द्ध में संयुक्त किसान मोर्चे के नेताओं की तरफ से गई अपनी उपेक्षा का वह बदला भी रहे हों। ध्यान रखें कि जब आंदोलन प्रारंभ हुआ तो दिल्ली सीमा पर तीन प्रमुख धरनास्थल ही थे। दो हरियाणा में सिंघु बार्डर (सोनीपत-दिल्ली) पर और टीकरी बार्डर (बहादुरगढ़-दिल्ली) पर, तीसरा उप्र-दिल्ली सीमा में गाजीपुर बार्डर पर था, जिसका नेतृत्व राकेश टिकैत कर रहे थे। इसके बावजूद राकेश टिकैत या उनके बड़े भाई नरेश टिकैत को संयुक्त किसान मोर्चे की कोर कमेटी में नहीं रखा गया। लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के हन्नान मौला, योगेंद्र यादव, शिवकुमार शर्मा कक्का, बलबीर सिंह राजेवाल, डा दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, जगजीत सिंह दल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उग्राहां जैसे बहुत सीमित प्रभाव वाले नेताओं को शामिल कर लिया गया। उस समय सिंघु बार्डर सर्वाधिक चर्चा में थे।

पंजाब के कथित किसान वहां विलासिता का प्रदर्शन कर रहे थे। बड़ी संख्या में सिख जत्थेबंदियां भीड़ जुटाकर ला रही थीं। कई बार देश विरोधी नारे में भी लगाए जाते थे। उस समय राकेश टिकैत वहां कभी-कभी ही जाते थे। लेकिन छब्बीस जनवरी के बाद टिकैत आंदोलन के टिकैत हो गए। हरियाणा के एक बड़े जनसमुदाय को जो अपने जातीय गौरव बोध से समझौता नहीं कर सकता, वह अपने स्वजातीय राकेश टिकैत के आंसू देख क्षुब्ध हो गया। आक्रोश से भर गया और आंदोलन पुनर्जीवित हो गया। बाकी नेताओं को यह बहुत अच्छा लगा। सबने टिकैत को हाथो-हाथ लिया। इसके बाद टिकैत एक तरह से आंदोलन के नायक हो गए।

राष्ट्रीय मीडिया ने उनको भरपूर स्पेस देना शुरू कर दिया। वह देश भर में किसान नेता के रूप में चर्चित हो गए। वैसे ही जैसे एक समय में उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत चर्चित थे। इससे अन्य नेताओं को ईर्ष्या होना स्वाभाविक था। बंगाल के चुनावों में प्रचार करने वह बंगाल चल गए। अब वह ममता बनर्जी से मिल कर लौटे हैं। यह आंदोलन से जुड़े अन्य नेताओं खास कर वाम विचारधारा वालों, हन्नान मौला, डाक्टर दर्शन पाल को रास नहीं आ रहा है। उग्राहां भी कुछ इन्हीं की तरह सोचते हैं, लेकिन उनके संगठन को विदेश से फंड मिलता है और वह तभी मिलेगा, जब धरनास्थलों पर भीड़ रहेगी। हरियाणा में भीड़ तभी रहेगी जब तक राकेश टिकैत को तवज्जो मिलेगी।

यहां एक बात विचारणीय है कि राकेश टिकैत हरियाणा की अपनी फैन फालोइंग के बल पर देश में किसान नेता के रूप में शुमार होना चाहते हैं। हरियाणा में टिकैत बनने का उनका कोई इरादा नहीं। बन भी नहीं सकते, क्योंकि जो यहां टिकैत बनने की चाहते पाले हुए हैं, वे फिर उनका विरोध कर देंगे और फिर राकेश आंदोलन के भी टिकैत नहीं रह जाएंगे। हालांकि ये बात और है कि अनिश्चित काल के लिए ही सही मगर टिकैत यूपी में वर्चस्‍व कामय नहीं कर सके। यही वजह है कि उनके आह्वन पर यूपी में बीजेपी के नेताओं को विरोध न हो सका। जबकि हरियाणा को उन्‍होंने आंदोलन को केंद्र बना लिया।

और अंत में टिकैत की परिभाषा। राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के जाटों के बालियान खाप से आते हैं। बालियान खाप में जिस पर समाज के नेतृत्व की जिम्मेदारी दी जाती है, उसका टीका किया जाता है। उसे टिकैत कहा जाता है। टिकैत के पितामह का टीका हुआ। उसके बाद राकेश के पिता चौधरी महेंद्र सिंह का टीका हुआ। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र नरेश टिकैत का टीका हुआ। लेकिन राकेश टिकैत ने अपने नाम के आगे टिकैत लिखने को प्राथमिकता दी। लेकन जब उन्होंने बालियान के बजाय टिकैत को प्राथमिकता दी तो उन्हें भी यह नहीं पता रहा होगा कि भविष्य उनके टिकैत बनने की प्रतीक्षा कर रहा है।


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