बेटियों को सुरक्षा, ट्रांसपोर्ट की सुविधा मिले और समाज व परिवार अपनी सोच बदले तो रूक सकता है ड्रॉपआउट
जागरण संवाददाता हिसार ड्रॉप आउट समाज के विकास में बड़ी बाधा है। प्रदेश में बच्चे खासकर
जागरण संवाददाता, हिसार : ड्रॉप आउट समाज के विकास में बड़ी बाधा है। प्रदेश में बच्चे खासकर बेटियों की एक बड़ी संख्या ऐसी है जो या तो स्कूल नहीं जाती और जाती है उनमें से कोई दसवीं, कोई बारहवीं तो कोई कालेज तक पहुंचने से पहले अपनी पढ़ाई छोड़ देती है। इसी ड्राप आउट की समस्या के समाधान के लिए दैनिक जागरण ने शहर के बुद्धिजीवियों को एक मंच पर आमंत्रित किया। दैनिक जागरण के इस प्रयास की सराहना करते हुए उन्होंने आपसी परिचर्चा में ड्राप आउट का कारण बताया और उसके समाधान के लिए अपने स्तर पर राय प्रस्तुत की।
दैनिक जागरण कार्यालय में हुई पैनल डिस्कशन में उन्होंने कहा कि स्कूलों का निजीकरण होने की बजाए सरकार उन्हें पूरी तरह से अपने अधीन करे। ताकि शिक्षा के स्तर में अंतर आने की बजाए समानता आए। जिससे हर बच्चे को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो। साथ ही बेटियों का ड्रॉप आउट रोकने के लिए उन्हें बेहतर ट्रांसपोर्ट और सुरक्षा की गारंटी दे तो परिवार भी खुश होकर अपनी बेटियों को स्कूलों में भेजेंगे। पैनल डिस्कशन में स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी से टीचर्स के साथ बच्चों वे पेरेंट्स को प्रेरित करने वाले मोटीवेटर और साथ ही गरीब बच्चों के लिए काम करने वाले सदस्य भी शामिल रहे।
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ड्रॉप आउट रोकथाम के ये हैं तीन मुख्य उपाय
पैनल डिस्कशन में विभिन्न बुद्धिजीवियों के विचारों से सामने आया कि आज के समय में बेटियों के स्कूलों से ड्रॉप आउट को रोकने के लिए तीन मुद्दों पर काम करने की जरूरत है। जिनमें बेटियों की सुरक्षा, उन्हें शिक्षण संस्थान भेजने के लिए उचित ट्रांसपोर्ट सुविधा तथा पेरेंट्स और समाज की सोच में बदलाव के लिए उनकी काउंसिलिग की जरूरत है। ड्रॉप आउट के ये कारण आए सामने
- आर्थिक कमजोरी (गरीबी)
- घरेलू कार्यो में लड़कियों की भागीदारी
- लड़कियों की जल्द शादी करने की सोच
- बेटियों के साथ हुए अपराध
- पर्याप्त ट्रांसपोर्ट की सुविधा न मिलना
- स्कूलों में टीचर की कमी।
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बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच जरूरी
बेटियों में पढ़ाई का क्रेज अधिक है। वे मैरिट में आगे रहती है। जबकि ड्राप आउड में भी उनकी संख्या अधिक है। कारण है कि समाज की सोच जैसे लुगाई की कमाई नहीं खानी, लेकिन पकाया खानी चाहिए। इस सोच में बदलाव की जरुरत है। बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच से ही ड्रापआउट की रोकथाम हो सकती है।
- अर्चना सुहासिनी, मोटीवेटर एंड टीचर। बच्चों को नहीं पता वो किस फील्ड में जाएं
चाहे किसी भी वर्ग के विद्यार्थी हो, लेकिन 10वीं के बाद उनको नहीं पता होता वो किस फील्ड में जाए। यह भी ड्रॉपआउट का एक कारण बनता है। माताओं को इस पर अधिक सोचने की जरूरत है, क्योंकि पिता हर समय बच्चों को नहीं समझा सकता।
निधि चौधरी, गृहिणी। समाज को सही दिशा देने के लिए दैनिक जागरण के प्रयास सराहनीय
दैनिक जागरण ने बेटियों के लिए ड्राप आउट की समस्या के समाधान के लिए सोचा और प्रयास किए यह सराहनीय कदम है। इससे पहले भी जागरण की ओ से बेहतर कदम उठा गए है। दैनिक जागरण की तरह ही सभी को सकारात्मक मानसिकता होनी चाहिए। बेटियों के अभिभावकों की मानसिकता में परिवर्तन से ही बेटियों को और अधिक पढ़ाने की दिशा में सकारात्मक परिणाम आ सकते है।
डा. सुमन यादव, प्रिसिपल, कैंट पब्लिक स्कूल। बच्चों के साथ पेरेंट्स की काउंसलिग भी जरूरी
गरीब बच्चों को स्कूल में पढ़ाने के लिए अभिभावक भेजे उसके लिए बच्चों के साथ-साथ पेरेंटस की काउंसलिग भी जरूरी है। तभी पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने के लिए प्रेरित होंगे। वहीं गरीबी भी बेटियों के ड्राप आउट में एक बड़ी समस्या है।
सुरेश पूनिया, भीख नहीं किताब दो, एनजीओ।
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पैसे वाले भी लड़कों की पढ़ाई को देते है तवज्जो
गरीबी रेखा में आने वाले ऐसे बहुत से बच्चे है जो स्कूलों में नहीं जा पाते, क्योंकि उनके मां-बाप के पास पैसा नहीं है, वहीं कुछ लोग पैसा होने के बावजूद लड़कियों की बजाय लड़कों की पढ़ाई को अधिक तवज्जो देते है। यह भी लड़कियों के ड्राप-आउट का बड़ा कारण है।
अनु चिनिया, भीख नहीं किताब दो, एनजीओ।
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हायर एजुकेशन पर भी पड़ रहा प्रभाव
इंजीनियरिग कोर्सज में भी लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है। हालांकि मैकेनिकल इंजीनियरिग जैसे कोर्स में जहां पहले केवल लड़के ही अधिकांश हेाते थे अब लड़किया भी दाखिला ले रही है। लेकिन बेटियों के ड्राप आउट को समाप्त करने के लिए बड़े स्तर पर अभी भी जागरूकता की आवश्यकता है।
प्रो. अंजू गुप्ता, बायोमेडिकल इंजीनियरिग, जीजेयू।
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प्राइमरी एजुकेशन के बाद अधिक ड्रॉपआउट -
प्राइमरी एजुकेशन के बाद स्कूलों से लड़कियों का अधिक ड्रॉपआउट देखने को मिल रहा है। यदि ट्रांसपोर्ट व सुरक्षा की सुविधा लड़कियों को मिले तो यह समस्या दूर हो सकती है। देश में कई जगह लड़कियों को ऐसी सुविधा मुहैया करवाई गई है।
डा. इंदू शर्मा, प्रिसिपल, डीएवी पुलिस पब्लिक स्कूल।
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बेटियों को चाहिए सुरक्षा का माहौल
मैं जमींदार परिवार की बेटी हूं, लेकिन मुझे लेकर भी मेरे परिवार में असुरक्षा की भावना थी, जब तक बेटियों को सुरक्षा का माहौल नहीं मिल पाएगा, तब तक स्कूलों से ड्रॉपआउट की समस्या को नहीं रोका जा सकता।
डा. मीरा सिवाच, एचओडी, फाइनांस अकाउंट, गवर्नमेंट पॉलिटेक्नीक कॉलेज।
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शिक्षक निभा सकते हैं अहम भूमिका
बेटियों के प्रति पेरेंट्स का जागरूक होना सबसे जरूरी है। बिना जागरूकता के ही पेरेंट्स बेटियों की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं हो पाते। शिक्षकों को बेटियों के पेरेंट्स को बेटियों की उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करना चाहिए।
प्रमोद पचार, पीआरटी, जीपीएस, संजय नगर, हिसार।
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जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए
माता-पिता के अंदर बेटी की सुरक्षा को लेकर जो असुरक्षा की भावना पनप रही है, उसे दूर करने के लिए । जोकि समाज के उस वर्ग तक पहुंचे, जो बेटियों को असुरक्षा की भावना से उन्हें स्कूल नहीं भेजते।
प्रो. विनोद प्रकाश, एफजीएम गवर्नमेंट कॉलेज, आदमपुर।
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आर्थिक स्थिति कमजोर होना भी एक कारण -
स्कूलों में बेटियों का ड्रॉप आउट लगातार हो रहा है। इसका एक कारण गरीबी भी है, अधिकतर मां-बाप अपनी बेटियों को इसलिए नहीं पढ़ा पाते, क्योंकि उनकी शिक्षा जारी रखने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते।
नीरू हसीजा, मोटीवेटर एंड यूटयूबर।
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टीचर्स काउंसिलिग करके पेरेंट्स को कर रहे है प्रेरित -
ग्रामीण क्षेत्रों में हर जगह प्राइमरी, मिडल व सीनियर सेकेंडरी स्कूल बनाए गए है। लेकिन इसके बावजूद छात्राओं की संख्या घट रही है तो कहीं ना कहीं यह परिवार की सोच का ही नतीजा है, टीचर्स काउंसलिग करके पेरेंट्स को प्रेरित कर रहे है। आगे बदलाव देखने को मिल सकता है।
मंजीत सिंह पंवार, टीजीटी साइंस टीचर।
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पेरेंट्स के पास नहीं है बच्चों के लिए टाइम -
आज के समय में परिजनों के पास बच्चों के लिए टाइम नहीं है, जिसके कारण विद्यार्थी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते। विद्यार्थियों का पढ़ाई के प्रति गंभीर ना होना भी ड्रॉपआउट का एक बड़ा कारण है।
जितेंद्र सिंह पानू, टीजीटी, अंग्रेजी।
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दैनिक जागरण की पहल सराहनीय है
सीनियर सेकेंडरी स्कूल में सभी सुविधाएं देने के बाद भी फेकल्टी पूरी नहीं हो पाती, बच्चे कम होने के कारण सभी स्कूलों में टीचर नहीं दे पाते, इससे बच्चों की लय टूट जाती है। गरीबी भी एक कारण है। दैनिक जागरण की बेटियों की प्रति यह पहल सराहनीय है।
जोगिद्र मलिक, गवर्मेंट गर्ल्स स्कूल, बीघड़, फतेहाबाद।
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घरेलू कार्यों के लिए लड़कियों को स्कूल से दूर रखा जाता है -
प्राइमरी तक हर गांव व ढाणी में स्कूल खोले हुए है। लेकिन इससे उपर की कक्षाओं में बेटों को भेजते है लेकिन बेटियों को नहीं, घरेलू कार्यों के लिए भी लड़कियों को स्कूल से दूर रखना ड्रॉपआउट का एक बड़ा कारण है।
राज सिंह मलिक, एसएसएम, गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल, सुंडावास, हिसार।
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अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए
किसी एक लड़की के साथ कुछ गलत होता है तो पूरे गांव या कालोनी के लोग लड़कियों को बाहर भेजने से कतराते है, जो ड्रॉपआउट का सबसे बड़ा कारण है। लोगों को आगे बढ़कर अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
अंशुला गर्ग, पीएचडी स्कॉलर, जीजेयू।