Move to Jagran APP

मुल्कों के बीच बेजान लकीरें क्यूं हैं, पड़ोसी तो दोस्त होते हैं..

दैनिक जागरण के बैनर तले आयोजित जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन करीम मोहम्मद फिल्म दिखाई गई।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 01:03 PM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 01:03 PM (IST)
मुल्कों के बीच बेजान लकीरें क्यूं हैं, पड़ोसी तो दोस्त होते हैं..
मुल्कों के बीच बेजान लकीरें क्यूं हैं, पड़ोसी तो दोस्त होते हैं..

जेएनएन, हिसार : कश्मीर में बदलते मौसम के साथ कभी पहाड़ों के ऊपर तो कभी पहाड़ों से नीचे की ओर पलायन करते रहते हैं बकरवाल समुदाय के लोग। ईमानदारी भरे नए सफर के साथ नया तजुर्बा होता है। एक मासूम लड़का मोहम्मद अपने सवालों के जरिये आतंकवाद जैसे एक के बाद एक गंभीर मुद्दों को उठाता है। यह कहानी है फिल्म 'करीम मोहम्मद' की। दैनिक जागरण के बैनर तले आयोजित जागरण फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन यह फिल्म दिखाई गई। फिल्म खत्म होने के साथ ही दर्शकों ने तालियों के साथ इस फिल्म और उसके किरदारों का अभिनंदन किया। इस दौरान फिल्म में मुख्य कलाकार की भूमिका निभा रहे यशपाल शर्मा और कई अन्य बड़े कलाकार भी मौजूद रहे। दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने यशपाल शर्मा को दर्शकों से रूबरू करवाया। 'करीम मोहम्मद' फिल्म ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि किस तरह से आतंकवाद, जात-पात और भेदभाव हमारी इंसानियत को खत्म कर रहे हैं। सनसिटी में आयोजित इस जागरण फिल्म फेस्टिवल में इससे पहले 'माचिस', 'तू है मेरा संडे', 'बुद्ध' के अलावा इंटरनेशनल शॉर्ट मूवी भी दिखाई गई। जिन्हें दर्शकों ने खूब सराहा। इस दौरान दैनिक जागरण हिसार यूनिट के महाप्रबंधक राहुल मित्तल भी मौजूद रहे।

loksabha election banner

बेहद शानदार मूवी थी। फिल्म के माध्यम से कश्मीर के लोगों की जीवटता दिखाने के साथ ही आतंकवाद को करारा जवाब दिया गया है।

- संतोष कोकिला। यशपाल शर्मा अपने दम पर पूरी फिल्म लेकर चलते हैं। मोहम्मद का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार हर्षित के सवाल बहुत गंभीर मुद्दों की बात करते हैं। कंटेट के कारण फिल्म दमदार दिखती है। आज इसी तरह की बेसिक मुद्दों वाले सिनेमा की जरूरत है।

- अल्पना सुहासिनी।

लोकेशन बेहद कमाल की है। ऐसा लगता है जैसे प्रकृति पूरी फिल्म के साथ चल रही है। मासूम बच्चे के कई गुदगुदाने वाले सवाल और लोकेशन सुकून देती है। अच्छी बात है कि दैनिक जागरण इस तरह के सिनेमा को प्रमोट कर रहा है।

- मनोज छाबड़ा

यशपाल शर्मा की ए¨क्टग कमाल है। कैसे उन्होंने अपने आप को कश्मीरी बोलचाल और व्यवहार में ढाला होगा। फिल्म किसी चीज को जानने के लिए उत्सुकता पैदा करती है, नॉलेज को बढ़ाती है।

- ¨डपल।

हम कश्मीर के बारे में बाते करते हैं। वहां छुट्टियां मनाने जाते हैं। लेकिन कश्मीरी या बकरवाल समुदाय के लोग वहां किस तरह से रहते हैं, उनका लाइफ स्टाइल कैसा है। यह सब इस शानदार फिल्म में बारिकी से देखने को मिला।

- निधि मेहला, पगड़ी फिल्म की कलाकार।

अच्छी फिल्म थी। थिएटर में ऐसी फिल्में बहुत कम देखने को मिलती हैं। दैनिक जागरण फिल्म फेस्टिवल इस तरह की फिल्में दिखा रहा है, यह बहुत अच्छभ् बात है।

- जोगेंद्र कुंडू। बुद्ध फिल्म में कम समय में बहुत कुछ देखने को मिला। आमतौर पर इस तरह की फिल्में हम सिनेमाघरों में नहीं देख पाते हैं। जागरण फिल्म फेस्टिवल में इस तरह की फिल्में हैं, जो वास्तव में कमाल की हैं।

- निवेश नागपाल। समस्याएं और मुद्दे बहुत हैं। लेकिन जरूरी है कि उन्हें सही तरीके से सही माध्यम द्वारा उठाया जाए। बुद्ध फिल्म में महिलाओं की जो कहानी दिखाई गई है, वो आम है, लेकिन इसे जिस बारिकी से और थोड़े समय में परोसा गया है, वह काबिल ए तारीफ है।

- गीता।

बुद्ध अच्छी फिल्म है। ऐसी ही शॉर्ट फिल्में बननी चाहिए, जो कम समय में बहुत कुछ दिखा और सिखा सके। ऐसी फिल्में बनाने के डायरेक्टर प्रशांत इंगोले का शुक्रिया और दैनिक जागरण का भी धन्यवाद।

- सुप्रिया।

लोगों को रियल सिनेमा के बारे में बताने का जागरण फिल्म फेस्टिवल अच्छा प्रयास है। इसमें कई फिल्में इस तरह की दिखाई जाती हैं जो लोगों को पता नहीं लग पाती कि बनी भी है की नहीं।

- राकेश कुमार शर्मा, सीनियर आरएसएम, रजनीगंधा। माचिस फिल्म अच्छी लगी। फिल्म का समय काफी लंबा था। पौने तीन घंटे चली लेकिन फिल्म का पूरा आनंद उठाया। यह दैनिक जागरण का सराहनीय प्रयास है कि हर साल शहरवासियों को इस तरह की फिल्म दिखाता है।

- मन¨वद्र सेठी दैनिक जागरण ने फिल्म दिखाकर पुरानी यादों को ताजा कर दिया। फिल्म का शीर्षक माचिस एक अलंकार की तरह है जो दर्शाता है कोई भी युवा

माचिस की तरह होता है।

- बलवीर ¨सह। माचिस कमाल की फिल्म है। यह फिल्म काफी बेहद पसंद है। राजनीति और सिस्टम के फैलियर को इस फिल्म में बखुबी दिखाया गया है। फिल्म देखकर मजा आ गया।

- कृष्णा। हर साल दैनिक जागरण शहरवासियों को फिल्मों से जोड़ता है। काफी अच्छा लगता है। हम दैनिक जागरण का धन्यवाद करते है। फिल्म बहुत पसंद आई।

- कमलेश। शुरू से लेकर अंत तक पूरी फिल्म देखी। यह फिल्म 1980 के दशक की है। यह फिल्म काफी समय पहले एक बार देखी थी। लेकिन अब सिल्वर स्क्रीन पर देखना अपने आप में अलग अनुभव था।

- जितेंद्र श्योराण। बुद्ध फिल्म देखने के बाद फिल्म के निदेशक प्रशांत इंगोले से भी रूबरू होने का मौका मिला। काफी अच्छा लगा। फिल्म देखकर भी मजा आ गया।

- चंचल। यह फिल्म दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों और अलग-अलग पृष्ठ भूमि से आने वाली महिलाओं की कहानी है। फिल्म काफी अच्छी थी।

- सुमन। पूरे परिवार के साथ फिल्म देखकर काफी अच्छा लगा। बुद्ध फिल्म काफी पसंद है। इस फिल्म को काफी समय बाद देखा है। साथ ही फिल्म के निर्देशक से भी मिले।

- संतोष।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.