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हिसार सिविल अस्‍पताल के ओएसटी सेंटर में नशामुक्ति दवा नहीं आने से आधे मरीजों ने बीच में ही छोड़ा इलाज

ओएसटी सेंटर से 164 मरीजों का नशा से छुटकारा पाने के लिए इलाज चल रहा था। इस बीच मरीजों की काउंसलिंग भी की जाती थी और नशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता था। इससे काफी मरीजों ने नशा छोड़ दिया था। मगर दवा नहीं आने से व्‍यवस्‍था बिगड़ गई

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 29 Dec 2021 08:24 AM (IST)Updated: Wed, 29 Dec 2021 08:24 AM (IST)
हिसार सिविल अस्‍पताल के ओएसटी सेंटर में नशामुक्ति दवा नहीं आने से आधे मरीजों ने बीच में ही छोड़ा इलाज
हिसार सिविल अस्पताल में ओएसटी सेंटर से पहले 164 मरीज दवा ले रहे थे, पर अब मात्र 70 से 80

जागरण संवाददाता, हिसार। जिला अस्पताल में बने ओएसटी (ओपाएड सब्सटीट्यूशन थेरेपी सेंटर) से आधे से ज्यादा मरीजों ने बीच में ही इलाज छोड़ दिया। यह मरीज नशा की लत से छुटकारा पाने से एक साल से इलाज ले रहे थे। इसका कारण है कि करीब ढ़ाई महीने तक ओएसटी सेंटर में दवा तक नहीं आई थी। ऐसे में मरीजों को काफी परेशानी उठानी पड़ी थी। कई दिनों तक इंतजार के बाद इलाज बीच में ही छोड़ दिया। सेंटर में तैनात स्टाफ के अनुसार कुछ मरीज निजी अस्पताल या दवा स्टोर से दवा ले रहे है। राहत की बात यह है कि कुछ मरीजों ने दवा न मिलने से नशे की लत को ही छोड़ दिया।

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शुरू में ओएसटी सेंटर से 164 मरीजों का नशा से छुटकारा पाने के लिए इलाज चल रहा था। इस बीच मरीजों की काउंसलिंग भी की जाती थी और नशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता था। इससे काफी मरीजों ने नशा छोड़ दिया था। पिछले साल 500 के करीब मरीजों ने इलाज लिया था। इनमें से अधिकतर मरीज नशे की लत को छोड़कर अपनी नई जिदंगी शुरू कर चुके है। किसी भी नए मरीज का इलाज शुरू करने से पहले मनोचिकित्सक को दिखाना जरूरी है। तभी इलाज शुरू होता है। मरीज कब से नशा करता है और उसकी क्षमता कितनी है। यह देखकर ही डोज निर्धारित होती है।

बचपन में गलत संगत के कारण लगी नशे की लत

काउंसलिंग में 70 से 75 फीसदी मरीजों का कहना है कि उनको बचपन में गलत संगत के कारण नशे की लत लग गई और न ही अभिभावकों ने ध्यान दिया। बिना रोकटोक के लगातार नशे की चुंगल में फंसते गए। कुछ ने मानसिक परेशानी के चलते नशा करना शुरू किया। उन्होंने छोड़ने की कोशिश की, लेकिन नशे की लत छुट नहीं पाई।

क्षमता बढ़ी तो अधिक डोज की लगे करने मांग

कई दिनों तक दवा न मिलने से मरीजों का इलाज छूट गया और बाद में उनकी डोज की क्षमता भी बढ़ गई। मरीज भी दवा की अधिक डोज की मांग करने लगे। ऐसा 50 फीसदी मरीजों में पाया गया। इन मरीजों का शुरू से इलाज करना पड़ा और चिकित्सक की सलाह से क्षमता देखकर डोज की मात्रा भी बढ़ाई गई।


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