कपास की फसल पर लगातार तीसरे साल उखेड़ा रोग का हमला, किसान ऐसे करें बचाव
कपास में उखेड़ा रोग का फिर हमला हुआ है। इससे फसल अचानक नष्ट हो जाती है। उखेड़ा रोग बार-बार एक ही फसल की बिजाई करने से आता है। इससे भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
मदन श्योराण, ढिगावा मंडी (भिवानी)। कपास की फसल में उखेड़ा रोग से फसल नष्ट हो रही है। ढिगावा मंडी, लोहारू और बहल क्षेत्र में उखेड़ा रोग तेजी से फैल रहा है, जिसे देखकर किसान चिंतित नजर आ रहे हैं। किसान सुखबीर, राजकुमार, चंद्रपाल अमीरवास, अशोक, संदीप, रघुवीर, महिपाल श्योराण आदि ने बताया कि लगातार तीन साल से इसी प्रकार कपास की फसल खराब हो रही है। बड़ी आस और कड़ी मेहनत से कपास की फसल तैयार की थी लेकिन अब या धीरे-धीरे मुरझाने लगी है।
अचानक होती फसल नष्ट
उखेड़ा रोग से फसल अचानक नष्ट हो जाती है। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार उखेड़ा रोग बार-बार एक ही फसल की बिजाई करने से आता है। इससे भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इस समय फसलों में अधिक टिंडे लगे हुए होते हैं। जिसके कारण पौधों को अधिक खुराक की आवश्यकता होती है। फसल को अधिक खुराक न मिलने और बरसाती मौसम में मच्छर ज्यादा पैदा होने के कारण फसल अचानक नष्ट हो जाती है।
किसान ऐसे कर सकते फसल का बचाव
वरिष्ठ कृषि अधिकारी चंद्रभान श्योराण ने बताया कि उखेड़ा रोग आने पर किसान कोबाल्ट क्लोराइड नामक दवाई एक ग्राम 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। यह स्प्रे करने के दौरान पौधे पुन: स्वस्थ हो जाते हैं। 48 घंटे के दौरान स्प्रे करने से परिणाम 75 से 80 फीसद हो जाती है। लेकिन जैसे-जैसे देरी हुई वैसे-वैसे रिकवरी पौधों की की मुश्किल होती है। भूमि के अंदर पोषक तत्वों की कमी के कारण यह रोग आता है। क्योंकि किसान जैविक खादों का प्रयोग नहीं करते हैं। वहीं किसान बार बार एक तरह की फसल लेते हैं। किसानों को फसल चक्र अपनाना चाहिए।
उखेड़ा रोग दो प्रकार का होता है
1. जड़ गलन रोग के कारण
2. खुराक की कमी के कारण
खुराक की कमी के कारण खेड़ा
किसान भाई उखेड़ा की समस्या को चुराडिया/ शॉर्ट मारना /सूखना रोग भी कहते हैं। फसल सूखने से फूल, बौकी और छोटे टिंडे सूख कर गिर जाते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे पैरा विल्ट/ विल्ट/ न्यू विल्ट/ फिजियोलॉजिकल डिसऑर्डर कहते हैं। ध्यान रहे पैराबिल्ट किसी फंगस ,बैक्टीरिया ,वायरस, सूत्रकर्मी अथवा किसी कीट के कारण नहीं आती है। पैराविल्ट जिसमें पौधों से तेजी से पानी उड़ता है और वह सूखने लगते हैं। अधपके टिंडे समय से पहले खिल जाते हैं जिनमें रुई वह बिनोले की गुणवत्ता बहुत खराब हो जाती है।
पैराविल्ट की समस्या क्यों और कब आती है
अगस्त से सितंबर के महीने में फसल पर अधिक फल के कारण खुराक की जरूरत अधिक होती है। ऐसे समय में पूरी खुराक न मिलने पर फसल को झटका लगता है। लंबे सूखे के बाद जब अगस्त महीने में फसल में पानी लगाते हैं या अच्छी बारिश हो जाती है तो खेड़ा के हालात बनते हैं। सूक्ष्म तत्वों की कमी से भी उखेड़ा हो सकता है।
किन-किन खेतों में खतरा ज्यादा है
1. जिन खेतों में जैविक खादों (विशेषकर कुर्डी की खाद) का प्रयोग न होता हो।
2. जहां बीटी नरमा की बिजाई गेहूं के बाद की गई हो।
3. जिन हाइब्रिड किस्म की जड़ें गहरी न जाती हों।
4. जो हाइब्रिड किस्में एकदम तेजी से फल उठाती हों।
5. जो खेत रेतीले हों अथवा उनकी उपजाऊ शक्ति भी कमजोर हो।
6. जिन जमीनों पर खेती पट्टे अथवा बटाई पर होती हो।
दवा स्प्रे से नहीं होगा लाभ, ये उपाय करें
यह रोग किसी बीमारी के जीवाणु अथवा कीट के कारण नहीं होता है। इसलिए किसी भी तरह की दवाई के स्प्रे से कोई लाभ नहीं होगा। किसान भाई जमीन की सेहत का पूरा ध्यान रखें। बिजाई से पहले खेत में कम से कम 6 से 7 ट्राली गोबर की खाद जो अच्छी गली सड़ी हो डालें। अन्य जैविक खादे जैसे गोबर गैस प्लांट की खाद, केंचुआ खाद, कंपोस्ट खाद आदि का प्रयोग कर सकते हैं। गेहूं-कपास के फसल चक्र को तोड़ें। बीच-बीच में दाल वाली व अन्य फसलें भी उगाएं। मिट्टी परीक्षण के आधार पर रासायनिक खादों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। नाइट्रोजन फास्फोरस वाली खादों के साथ-साथ फोटोस तथा जिंक का भी प्रयोग करें। यूरिया को कम से कम तीन हिस्सों में बांट कर छींटा दें ।
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