Pandit Jasraj News: पंडित जसराज ने जब सखा से कहा था, मैं जिसका हाथ पकड़ हूं, फिर छोड़ता नहीं
फतेहाबाद में अपने पैतृक गांव पीलीमंदोरी में पंडित जसराज ने बुजुर्ग साथियों से कहा था मेरे बाद भी मेरे बोल गूंजेंगे। गायन-प्रेमियों के दिलों पर सदा रहेगा पंडित जसराज के जस का राज
फतेहाबाद [मणिकांत मयंक] पंडित जसराज के रूप में शास्त्रीय संगीत के एक प्रयोगवादी सितारे का अचानक परलोक सिधार जाना...अपूर्णीय क्षति। इहलोक में सन्नाटा। पैतृक गांव फतेहाबाद के पीलीमंदोरी से लेकर संपूर्ण संगीत लोक तक। संगीत के इस अद्भुत जस ने हालांकि ने कुछ साल पहले ही राग दरबारी में बंदिश के जरिये आशंकित विछोह का संकेत दे दिया था। तीन ताल में बद्ध् उनकी बंदिश-अजब तेरी दुनिया मालिक, को जाने को ना जाने...ने इस सत्य से आगाह कर दिया था कि मौत कब आ जाए यह कोई नहीं कह सकता...।
करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज कर गए पंडित जसराज के बाल सखा रागडिय़ा, रामचंद्र बगडिय़ा, धनीराम डूडी व इंद्राज डूडी बताते हैं कि सुर के सरताज पंडित जसराज सिद्धांतवादी थे। एक वाकया का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि उस दिन सब साथ थे। तेज बारिश आ रही थी। उनसे कहा कि यहीं सो जाओ। उन्होंने कहा-नहीं हम घर जाएंगे तो हमने कहा-हमारा हाथ पकड़ लो। पंडितजी ने तपाक से कहा, जिसका हाथ एक बार पकड़ता हूं...फिर छोड़ता नहीं। हमारी आंखें नम हो गईं थी उनकी बात सुनकर। जसराज के बाल सखा कहते हैं, म्हारे जस ने दुनिया पै राज किया। नामचीन हस्ती बन जाने के बाद भी हम लोगों को याद करता रहा।
संगीत प्रेमियों के दिल पर था जस का राज
जस ने मेवात घराने को शास्त्रीय गायकी में नया मुकाम दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दोच्चारण, बेहद सुरीले सुर और लयकारी से शास्त्रीय संगीत की ऐसी त्रिवेणी बहाई कि देश-दुनिया के करोड़ों संगीत प्रेमी दिलों पर उनका राज हो गया। और तो और, प्रयोगवादी पंडित जसराज ने जुगलबंदी को नई दिशा देते हुए कई अलग रागों की रचना ही कर दी। संगीत के सुधिजनों ने तो उनके एक राग का नाम भी जसरंगी रख दिया। पद्म विभूषण पंडित जसराज की शास्त्रीय संगीत की कृति हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में बनी रहेगी।
कारी-पीरी घटा चहुंओर छाई
ज्ञानकली, अबीरी तोड़ी, धनश्री, पटदीपकी, पूर्वा भावसाख, देवसाख, गूंजी
कान्हड़ा, चरजू की मल्हार जैसे दुलर्भ रागों की वेरायटी से शास्त्रीय संगीत को पंडित जसराज ने समृद्ध किया। पद्म विभूषण पंडित जसराज की कृति संग्रह में शुमार स्वरचित बंदिशों की बानगी देखिये- बरखा रितु आई, रितु आई सलोनी पिया। ऐसी कारी-पीरी घटा चहुंओर छाई। चमक बिजुरिया हमें ही डराए, नैनन नींद चुराए। राग घुलिया मल्हार की तीन ताल में बंदिश बरबस ही जुबां पर उतर आता है। द्रुत लय और तीन ताल में ही राग दरबारी की यह बंदिश सुनिये-अजब तेरी दुनिया मालिक, को जाने को ना जाने। बा को ना जाने ये दुनिया का रंग न्यारा, को मद में को मद मतवारा ..।
तबलावादक से अद्वितीय वोकलिस्ट बन गए
सिद्धांत के साथ-साथ स्वाभिमान से भी कतई समझौता नहीं। बात उन दिनों की है जब जस महज 14 साल के थे। उन दिनों परिवार की माली हालत सुधारने की जद्दोजहद में उन्होंने पंडित प्रताप नारायण से सीखे तबला वादन को आजीविका का माध्यम चुन लिया। वे गायकों के साथ संगत करने लगे। पर, शीघ्र ही उन्हें महसूस हुआ कि गायकों को तो सम्मान मिल रहा मगर संगत करने वालों के साथ समान व्यवहार नहीं होता। युवा जसराज बगावती हो गए। उन्होंने तबले की संगत से तौबा करते हुए भविष्य में केवल शास्त्रीय संगीत गाने की शपथ ले ली।
-संक्षिप्त परिचय
नाम : पं. जसराज
जन्म : 28 जनवरी, 1930
निधन : 17 अगस्त, 2020
जन्म-स्थान : पीली मंदोरी, जिला फतेहाबाद
शादी : वर्ष 1962 में बॉलीवुड के प्रख्यात फिल्म निर्माता. शांताराम की
बेटी मधुरा शांताराम से।
संतान : पुत्र, शारंग देव। पुत्री-दुर्गा जसराज, प्रख्यात टीवी एंकर।
भतीजे- जतिन-ललित
भतीजी - सुलक्षणा पंडित व विजेता पंडित- 70 व 80 के दशक की मशहूर फिल्म
अदाकारा।
पंडित जसराज के बालसखा की जुबानी, तालाब के पास बैठकर पढ़ते थे दोनों
पंडित जसराज के बाल सखा फतेहाबाद जिले के गांव पीलीमंदोरी के रामचंद्र बगडिय़ा बताते है कि आज भी उन्हेंं याद है कि जब पंडित जसराज छोटे थे तो हम साथ खेलते थे। गांव में प्राइमरी तक की पढ़ाई की। पढ़ाई में हमेशा अच्छे थे। वे देर शाम को तालाब के पास बैठकर मुझे पढ़ाते थे। उस समय गांव में केवल तालाब ही होते थे। आज भी मुझे याद है कि एक बार दौड़ लगाते हुए हम गिर गए थे। पांव में चोट भी लगी थी। लेकिन घर पर किसी को जानकारी तक नहीं दी। करीब छह महीने पहले उनका फोन भी आया था। मेरा व पूरे गांव का हाल चाल पूछा था। वो परिवार के बारे में पूछने से पहले पूरे गांव के लोगों का हालचाल जानते थे। मेरे अलावा कुछ और उनके सखा थे जिन्हेंं वो याद करते थे। आज वो हमारे बीच नहीं है मुझे यकीन ही नहीं हो रहा है कि ऐसी महान व्यक्ति का में सखा हूं। ऐसा कहकर रामचंद्र बागडिय़ा का गला भर आया।