Pandit Jasraj Death News: हरियाणा के फतेहाबाद में पंडित जसराज का पतृक गांव, 2014 में आए अंतिम बार
Pandit Jasraj Death News उनके पिता के नाम से गांव पीली मंदोरी में लाइब्रेरी बनी है। पंडित जसराल इसकी कमान गांव होनहार युवक रामनिवास के कंधों पर सौंप कर गए थे।
फतेहाबाद [विनोद कुमार] Pandit Jasraj Death News हरियाणा के फतेहाबाद जिले से 25 किलोमीटर दूर गांव पीलीमंदोरी। इस मिट्टी से ऐसे सुपूत का जन्म हुआ जिसको पूरे विश्व ने मान सम्मान दिया। आज वो हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी स्मृतियां आज भी गांव में जीवंत हैं। पंडित जसराज की मौत के बाद पूरे गांव में सन्नाटा छा गया है। ग्रामीण समझ नहीं पा रहे हैं कि करीब छह साल पहले जिस जसराज को उन्होंने अपनी आंखों से देखा था, वे सदा-सर्वदा के लिए ओझल हो गए। करीब 12 महीने पहले पंडित जसराज की पोती की शादी मुंबई में हुई। यहां पर रहने वाले परिवार के सदस्य तब शादी में गए थे। हालांकि उसके बाद भी फोन पर बातें होती रही हैं। परिवार के लोगों को आज भी यकीन नहीं हो रहा है कि पंडित जसराज उनके बीच में नहीं है।
पंडित जसराज के परिवार के लोग आज भी रहते है गांव में
पंडित जसराज के भाई राजा राम के पुत्र दलीप कुमार, सुरेंद्र जगजीत व रामकुमार आज भी गांव पीलीमंदोरी में अपने पुराने घर में रहते हैं। पंडित जसराज का अपने गांव पीली मंदोरी से हमेशा लगाव रहा है जब भी यहां आते थे तो अपने पुराने मित्रों से अवश्य मिलते थे। जिनमें पूर्व सरपंच रामचंद्र बगडिय़ा, प्रमुख समाजसेवी धनीराम डूडी विशेष रूप से शामिल हैं। इन दोस्तों से वे जब भी फोन करते तो गांव के बारे में अवश्य जानकारी लेते। इन दोस्तों ने बताया कि पंडित जसराज ने ग्रामीण अंचल की इस धरती पर जन्म लेकर शास्त्रीय संगीत में जो ख्याति प्राप्त की। उससे उन्होंने गांव व देश का नाम विश्व में रोशन कर दिया।
14 साल की उम्र में छोड़ दिया था गांव
पद्म विभूषण पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गांव पीलीमंदोरी में पंडित मोतीलाल के घर पर हु । उन्होंने अपने पिता पंडित मोतीलाल से अल्प आयु में ही तबला बजाना सीखना शुरू कर दिया था। पंडित जसराज जब 14 साल के थे तो वो बगावती हो गए थे। गांव पीलीमंदोरी में उन्हें केवल तबला बजाने दिया जा रहा था। लेकिन उनका शौक तो शास्त्रीय संगीत और गाने का था। यही कारण था कि वो अपने बड़े भाई मनीराम के साथ हैदराबाद के लिए रवाना हो गए। वही से उनका सफर शुरू हुआ और वो वहां से मुंबई आ गए।
पंडित जसराज के भतीजे दलीप कुमार ने कहा गांव या जिले में बने संगीत का विश्वविद्यालय
पंडित जसराज के भतीजे गांव पीलीमंदोरी निवासी दलीप कुमार बताते है कि 2003 में गांव पीलीमंदोरी में पंडित जसराज के नाम से पार्क बनाया। वही उनके पिता पंडित मोतीलाल के नाम से 2014 में पुस्तकालय बनाया गया। जिसका खुद पंडित जसराज ने शुभारंभ किया था। दलीप कुमार ने बताया कि उनके चाचा जसराज की हमेशा इच्छा रही थी कि गांव पीलीमंदोरी अथवा फतेहाबाद जिले में कहीं भी संगीत का ऐसा विश्वविद्यालय खुले जिसमें इस क्षेत्र के युवा शिक्षा ग्रहण कर सके।
पंडित जसराज की ही यादों को सहज कर रखेंगे
पंडित मोतीलाल लाइब्रेरी के संचालक रामनिवास शर्मा का कहना है कि वो 2006 में उनसे मिला था। वही 2014 में जब वो गांव में आए तो वो खुद मिले। उन्हेांने मुझे इस लाइब्रेरी का संचालन दिया। वहीं ग्रामीणों की सहमति से भी मुझे संचालन दिया गया। आने वाले समय में उनकी यादों को सहज कर रखा जाएगा। वही जिला प्रशासन से अपील की जाएगी कि उनकी स्मृति में कुछ नया बनाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी उन्हें याद रख सके।
2019 में पूरा परिवार गया था मुंबई
पंडित जसराज के भतीजा दलीप कुमार बताते है कि पंडित जसराज की पोती का विवाह 2019 में मुंबई में था। हम परिवार के सभी लोग इस शादी में शामिल हुए थे। अंतिम मुलाकात वही पर हुई थी लेकिन फोन द्वारा उनसे बात होती रही थी। करीब पांच महीने पहले वाट्सअप के माध्यम से बात हुई। हर महीने में वो अपने परिवार व दोस्तों की जानकारी लेते रहते थे।
मेहनत का पाठ पढ़ा गए थे चाचा : पंडित रामकुमार
उन दिनों हम छोटे थे जब चाचा पंडित जसराज मेरे पिता के साथ खेती में हाथ बंटाते थे। पिछली दफा जब वह आये थे तो उन्होंने मेहनत का पाठ पढ़ाया था। बोले थे-मैं आज जहां हूं केवल मेहनत की बदौलत। राजाराम ने भी मेहनत की होती तो वह बात कुछ और होती। मेरे चाचा हमेशा कुछ नया करने की बात भी करते थे। कहते थे कि हर आदमी को प्रयोगधर्मी होना चाहिए। - पंडित रामकुमार, पंडित जसराज के भतीजे।