Move to Jagran APP

एक एेसा अभिनंदन:1971 में तोपों से लैस पाक सेना के आगे बने थे दीवार, लिखी अमिट शौर्य गाथा

23 साल की उम्र में ही शहीद हुए थे कुलदीप राठी मरणोपरांत 1972 में उनके पिता ऑनरेरी कैप्टन तारीफ सिंह राठी ने लिया था वीर चक्र। सेवियर ऑफ पुंछ का खिताब भी मिला

By manoj kumarEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 03:06 PM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 03:06 PM (IST)
एक एेसा अभिनंदन:1971 में तोपों से लैस पाक सेना के आगे बने थे दीवार, लिखी अमिट शौर्य गाथा
एक एेसा अभिनंदन:1971 में तोपों से लैस पाक सेना के आगे बने थे दीवार, लिखी अमिट शौर्य गाथा

बहादुरगढ़ [प्रदीप भारद्वाज] युद्ध में जितनी जरूरत हथियारों और संसाधनों की होती है। उतनी ही जरूरत हौसले और बहादुरी की भी होती है। पाकिस्‍तान के f-16 विमान को मिग-21 से गिराकर विंग कमांडर अभिनंदन ने भी यह साबित कर दिखाया। इतिहास के पन्‍नों में और भी ऐसे जाबांज रहे हैं जिन्‍होंने इस कथन को सच कर दिखाया। पाक के साथ 1971 की लड़ाई में मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने पाकिस्‍तानियों को धुल चटाई थी। इस युद्ध में शामिल रहे बहादुरगढ़ के सांखौल गांव के कैप्टन कुलदीप राठी ने ऐसी दिलेरी दिखाई कि दुश्‍मनों को आगे ही बढ़ने से रोके रखा। वो कुछ सैनिकों के साथ पुंछ सेक्टर में तैनात थे। आइए जानें जज्‍बे से भरी उनकी शहादत और शौर्य की कहानी...

loksabha election banner

बताते हैं कि अचानक रात को पाकिस्तानी सेना ने हमला किया। उधर से तोप के गोले बरस रहे थे और इधर भारतीय सैनिक अपने सीनों को मातृभूमि की ढाल बनाए हुए थे। पाकिस्तान का मिशन सुबह होने तक जम्मू पहुंचना था लेकिन कैप्टन कुलदीप अपने साथियों के साथ ऐसे अड़े कि पूरी पाकिस्तानी सेना पुंछ से आगे नहीं बढ़ पाई। मुट्ठी भर टुकड़ी होने के बावजूद उन्होंने तय कर लिया कि दुश्मनों को आगे नहीं बढऩे देना है। अपने मुट्ठी भर साथियों के साथ वे मोर्चें पर अड़ गए और पाकिस्तान के तोपों को तबाह करने लगे लेकिन किस्मत ने धोखा दिया और तोप का एक गोला फटने के कारण वे और उनके पांच साथी सैन्य ऑफिसर शहीद हो गए। 

कैप्टन कुलदीप और अन्य सैनिक जिस बहादुरी से लड़े, वह भारत ही नहीं, दुश्मन देश पाकिस्तान भी कभी न भूल पाएगा। ये सैनिक शहीद हुए मगर सदा के लिए गौरव गाथा लिख गए। इस बहादुरी की बदौलत कैप्टन कुलदीप राठी को 1972 में वीर चक्र(मरणोपरांत) प्रदान किया गया था। उन्हें सरकार की ओर से सेवियर ऑफ पुंछ का टाइटल भी दिया गया, क्योंकि उनकी बदौलत ही पाकिस्तानी सेना पुंछ सेक्टर में आगे नहीं बढ़ पाई थी।

विरासत में मिला था देश सेवा का जज्बा
कैप्टन कुलदीप राठी जब देश के लिए शहीद हुए तब उनकी उम्र मात्र 23 साल थी। देश सेवा का जज्बा उन्हें एक तरह से विरासत में मिला था। उनके पिता तारीफ सिंह राज राइफल में आनरेरी कैप्टन थे। 1 अगस्त 1947 को बहादुरगढ़ से सटे सांखौल गांव में जन्मे कुलदीप राठी चार भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। 21 दिसंबर 1968 को उन्होंने कमीशन प्राप्त किया और कैप्टन बने। उनकी तैनाती 8 जाट बटालियन में थी। वे एक बेहतरीन खिलाड़ी भी थे। सेना में जाने के बाद भी उन्होंने खेलों के प्रति रुचि बरकरार रखी।


तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी से वीर चक्र प्राप्त करते शहीद कुलदीप राठी के पिता तारीफ सिंह राठी।

1972 में मिला वीर चक्र
कैप्टन कुलदीप अविवाहित थे। उनके शहीद होने की खबर अगले दिन घर पहुंच गई थी। दो सप्ताह बाद मेजर पृथ्वी सिंह उनकी अस्थियां लेकर पहुंचे थे। बाद में सरकार की ओर से उन्हें वीर चक्र प्रदान किया गया। यह सम्मान 1972 में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी से कैप्टन कुलदीप के पिता आनरेरी कैप्टन तारीफ सिंह ने ग्रहण किया था। बहादुरगढ़ का रेलवे रोड शहीद कुलदीप राठी के नाम पर है। यहां उनके उनके नाम से प्रवेश द्वार बनवाने की मांग की जा रही है।

भाई की शहादत पर हमें गर्व
शहीद कैप्टन कुलदीप राठी के छोटे भाई कुलवंत राठी कहते हैं कुलदीप की शहादत पर आज पूरे देश को गर्व है। 1971 में भारतीय सैनिकों ने जिस तरह से पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया था, उसकी बदौलत ही वह लंबे समय तक भारत की तरफ आंख नहीं उठा पाया।
 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.