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करोड़ों वसूलने के बाद थी प्रयोगशाला बना हायर एजुकेशन विभाग, स्‍टूडेंट्स बोले-सब्‍जी बना रहे हो क्‍या

तीन साल से ऑनलाइन पोर्टल में भारी खामियां। कालेजों में दाखिले को लेकर भारी गड़बडी 90 फीसद वालों के दाखिले नहीं उनसे कम का हुआ। जिनके दाखिले हुए उन्हें पसंद के विषय नहीं दिए।

By manoj kumarEdited By: Published: Thu, 11 Jul 2019 11:39 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jul 2019 11:39 AM (IST)
करोड़ों वसूलने के बाद थी प्रयोगशाला बना हायर एजुकेशन विभाग, स्‍टूडेंट्स बोले-सब्‍जी बना रहे हो क्‍या
करोड़ों वसूलने के बाद थी प्रयोगशाला बना हायर एजुकेशन विभाग, स्‍टूडेंट्स बोले-सब्‍जी बना रहे हो क्‍या

हिसार, जेएनएन। प्रदेश का उच्चतर शिक्षा विभाग ऑनलाइन एडमिशन की प्रयोगशाला बनकर रह गया है। लगातार तीसरे वर्ष भी विभाग विद्यार्थियों के ऑनलाइन दाखिले करने में नाकाम रहा। इस बार विद्यार्थियों से करोड़ों रुपये ऐंठने के बावजूद विभाग ने उन पर अपनी मर्जी से कॉलेज और विषय थौंप दिए हैं। विद्यार्थियों से पांच कालेजों की आवेदन फीस ली गई और दाखिले के लिए सिर्फ एक ही कालेज में अवसर दिया गया।

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यही नहीं, दूसरी मेरिट लिस्ट जारी होने के बाद भी 90 फीसद से अधिक अंकों वाले विद्यार्थियों का दाखिला नहीं हो सका है, जबकि उससे कम अंक वाले का दाखिला हो गया। विद्यार्थियों के साथ पहुंच रहे अभिभावक मेरिट में नाम नहीं आने को लेकर कालेज प्रशासन और टीचर्स के साथ झगड़ा कर रहे हैं। वहीं विद्यार्थियों का कहना है कि पिछले तीन साल से दाखिला प्रक्रिया में गड़बड़ी हो रही है, एक्‍सपेरिमेंट पर एक्‍सपेरिमेंट हो रहे हैं, दाखिला कर रहे हो या सब्‍जी बना रहे हो।

पैसे लिए पांच कालेजों के, मेरिट में नाम दिया एक कालेज में

उल्लेखनीय है कि प्रदेशभर में कॉलेजों में दाखिले के लिए विद्यार्थियों ने छह लाख से अधिक आवेदन किए हैं। ऑनलाइन आवेदन के दौरान विद्यार्थियों से कालेजों की अधिकतम पांच च्वाइस मांगी गई थी। प्रत्येक कालेज के 150 रुपये लिए गए, यानी पांच कालेज भरने वाले से 750 रुपये वसूले गए। मगर पहली मेरिट लिस्ट में विद्यार्थी का नाम जिस कालेज में आया, उस पर वहीं दाखिला लेने की शर्त थोप दी गई। वहीं दूसरी मेरिट लिस्ट में उन्हें बाहर कर दिया गया, जबकि विद्यार्थियों का अधिकार बनता है कि पांचों कालेजों में उन्हें दाखिला लेने का अवसर मिले। अगर विद्यार्थी पहले की तरह कालेज से प्रोस्पेक्टस लेकर फार्म भरते तो संबंधित कालेज की मेरिट लिस्ट में उसका नाम आता।

विद्यार्थियों ने सुनाई आपबीती

1.  राहुल के 12वीं में वेटेज को मिलाकर 82 फीसद अंक बनते थे और वह गवर्नमेंट कालेज में बीए ऑनर्स में दाखिला लेना चाहता था। पहली मेरिट लिस्ट में उसका नाम डीएन कालेज में आया। (विभाग के अनुसार तो उसे वहीं दाखिला लेना है और दूसरी मेरिट लिस्ट में उसका नाम नहीं आएगा)। दूसरी मेरिट लिस्ट में 68 फीसद वाले विद्यार्थी का गवर्नमेंट कालेज में दाखिला हो गया, जबकि 82 फीसद अंक वाले राहुल को मौका नहीं मिला।

2.  बीए में ही 80 फीसद विद्यार्थियों को उनके सब्जेक्ट कांबिनेशन ठीक नहीं दिए। विद्यार्थी सुमित ने बताया कि वह इकोनॉमिक्स पढऩा चाहता है, लेकिन विभाग ने उसे ज्योग्राफी दे दिया। अब सवाल है कि इस कांबिनेशन को कौन और कैसे ठीक करेगा।

3. एक अन्य विद्यार्थी ने गवर्नमेंट कालेज में बीएससी मेडिकल और नॉन मेडिकल दोनों के लिए अप्लाई किया। उसका नाम पहली मेरिट लिस्ट में नॉन मेडिकल में आ गया। इस कारण वह विभाग के कारण दूसरी मेरिट लिस्ट से बाहर हो गया और उसका बीएससी मेडिकल में दाखिला लेने का अवसर खत्म कर दिया।

यूं समझिए ठगी का खेल

मान लें कि प्रदेशभर से करीब डेढ़ लाख विद्यार्थियों ने लगभग 6 लाख आवेदन किए। किसी ने एक कालेज भरा, किसी ने दो तो किसी ने अधिकतम पांच। एससी श्रेणी के लड़कों से 75 रुपये और लड़कियों से कोई फीस नहीं ली गई। बाकी विद्यार्थियों से प्रत्येक कालेज के हिसाब से 150 रुपये लिए गए। माना कि डेढ़ लाख में से एक लाख विद्यार्थियों ने विभाग को 150 रुपये के हिसाब से पांच कालेजों में आवेदन के 750-750 रुपये दिए, जोकि कुल साढ़े 7 करोड़ रुपये बनते हैं। इन विद्यार्थियों को केवल एक ही कालेज में मेरिट में मौका दिया गया, जिसके 150 रुपये के हिसाब से डेढ़ करोड़ रुपये लगने थे। ऐसे में बाकी 6 करोड़ रुपये कहां गए।

यूं फेल हो रहे विभाग के प्रयोग

2013 - गवर्नमेंट कालेजों में ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया आंशिक रूप से 2013 में ही शुरु कर दी गई थी। तब से लेकर 2016 तक यह जैसे-तैसे आंशिक रूप से चलता रहा।

2017 - प्रदेशभर के सभी कालेजों में ऑनालाइन प्रक्रिया शुरु कर दी गई। बड़ी संख्या में विद्यार्थियों के मेरिट में नाम नहीं आए। एक बच्चे से 10 कालेजों की च्वाइस मांगी गई थी और बड़ी संख्या में अधिक अंकों वाले विद्यार्थियों का नाम सभी कालेजों में आने से दाखिला प्रक्रिया बहुत लंबी हो गई थी।

2018 - इस बार विभाग ने प्रोविजनल मेरिट लिस्ट का निर्णय लिया और सीटों के 3 गुणा बच्चे इसमें डाले गए और डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन करवाने के बाद फाइनल मेरिट लिस्ट जारी की। लेकिन डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के बाद भी बच्चों के नाम मेरिट में नहीं आए। वहीं, फीस भरने के लिए विद्यार्थियों के चालान जनरेट नहीं हुए।

2019 - ऑनलाइन सेंटरलाइज्ड सिस्टम के अब तक के सबसे खराब हालात। विभाग ने अपनी मर्जी थोपकर विद्यार्थियों का स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार भी छीन लिया।

--सभी विश्वविद्यालयों के अलग-अलग रूल हैं। उच्चतर शिक्षा विभाग किसके अनुसार दाखिले करेगा समझ से बाहर है। विभाग किस पावर के तहत प्रदेश के सभी कालेजों में दाखिले कर रहा है, ये भी बड़ा सवाल है। जो काम विश्वविद्यालयों को करना चाहिए, वो काम उच्चतर शिक्षा विभाग क्यों कर रहा है। देश में ऐसा कहीं नहीं है। वो कंट्रोलिंग बॉडी है।

- नवदीप दलाल, उपाध्यक्ष, एनएसयूआइ।

----हमने इस मामले के मद्देनजर वीरवार को स्टेट लेवल की मीङ्क्षटग बुलाई है। विद्यार्थियों को उनकी इच्छा के कालेजों और विषयों को पढऩे का अधिकार छीन लिया गया है। जिस जटिल प्रक्रिया से दाखिले चल रहे हैं, ऐसे में तो 20 फीसद ग्रामीण परिवेश के बच्चे तो दाखिला ही नहीं ले सकेंगे।

- प्रदीप देशवाल, प्रदेशाध्यक्ष इनसो।

---मैं 3-4 ऐसे बच्चों को जानता हूं, जिनके अंक 80 फीसद से ऊपर हैं। मगर उनका नाम मेरिट में नहीं आया। ये कोई ऑनलाइन दाखिलों का तरीका नहीं है। विद्यार्थियों को एक ही कालेज में दाखिले का अवसर देकर उनके बाकी कालेजों के आवेदन के पैसे विभाग ने ठग लिए। वो वापस कौन करेगा। मेरी जिलाध्यक्षों से बातचीत हुई है। सरकार या विभाग पैसे वापस देने के लिए तैयार रहे।

- गोल्डी कालरा, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, एबीवीपी।


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