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पशुओं में खतरनाक रोटा वायरस को डाइग्नोस करने की तकनीक सिर्फ भारत के पास, लगे पांच साल

रोटा वायरस को को खोजेगी रिकंबिनेंट प्रोटीन टेस्ट किट। भारतीय कृषि अनुसंधान में नेशनल रिसर्च फैलो डा. यशपाल मलिक व उनकी टीम ने पांच सालों की रिसर्च में तैयार की तकनीक।

By Manoj KumarEdited By: Published: Thu, 30 Jan 2020 11:56 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jan 2020 11:56 AM (IST)
पशुओं में खतरनाक रोटा वायरस को डाइग्नोस करने की तकनीक सिर्फ भारत के पास, लगे पांच साल
पशुओं में खतरनाक रोटा वायरस को डाइग्नोस करने की तकनीक सिर्फ भारत के पास, लगे पांच साल

हिसार [वैभव शर्मा] पशुओं और इंसानों में विभिन्न प्रकार के वायरस गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। जिसमें रोटा वायरस (डायरिया) वह बीमारी है जिसके कारण दुनिया में सबसे अधिक कम उम्र के पशुओं की मृत्यु होती है। इस वायरस को डाइग्नोज करने के लिए उत्तर प्रदेश के बरेली में इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट में नेशनल फैलो डा. यशपाल मलिक व उनकी टीम ने एलाइजा आधारित रिकंबिनेंट प्रोटीन टेस्ट किट तकनीक विकसित की है। इस किट की मदद से प्रारंभिक स्टेज में ही हर प्रकार के रोटा वायरस को चिन्हित कर लिया जाएगा।

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खास बात है कि इस प्रकार की तकनीक किसी दूसरे देश के पास नहीं है। अभी तक भारत में रोटा वायरस को चिन्हित करने के बाद पशुओं में कोई उपचार नहीं है। उन्होंने बताया कि भारत में रोटा वायरस कई तरह के हैं, सबसे अधिक खतरनाक वायरस को डाइग्नोस्टिक टेस्ट से चिन्हित कर दूसरे फेज में वैक्सीन बनाने का काम किया जाएगा। 

बुधवार को राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में पशुओं की विभिन्न बीमारियों पर 10 दिवसीय ट्रेनिंग कोर्स आयोजित किया गया। जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से पशु विज्ञानी ट्रेनिंग लेने आए हैं। ताकि वह पशुओं में होने वाली बीमारियों पर काम कर उपचार के नए रास्ते तलाश सकें। ट्रेनिंग कोर्स के निदेशक डा. बीएन त्रिपाठी व सह समन्वयक डा. राजेंद्र कुमार, डा. नितिन बिरमानी, डा. संजय बरुआ हैं।

पांच वर्षों से तकनीक पर हो रहा था शोध

डा. यशपाल मलिक ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की नेशनल फैलो स्कीम के तहत पिछले पांच वर्षों से इस बीमारी को खोजने की तकनीक के प्रोजेक्ट पर रिसर्च चल रही थी। हाल ही में उन्हें व उनकी टीम को इसमें सफलता मिली है। अब रिकंबिनेंट प्रोटीन टेस्ट तकनीक का पेटेंट भी उन्हें मिल गया है, जल्द ही अधिक से अधिक शहरों में पहुंचाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मदद से इस तकनीक का कामर्शिलाइजेशन भी किया जाएगा। इस तकनीक में रिकोंबिनेंट प्रोटीन का एक हिस्सा लेकर टेस्ट किया जाता है, यह रोटा वायरस को अपने आप चिन्हित कर लेता है।

तकनीक से यह होंगे लाभ

-डाइग्नोज करने के बाद टेस्ट के परिणाम एकदम सत्य होंगे। यह विशेष तौर पर रोटा वायरस को ही पकड़ेगा।

- इस तकनीक की मदद से माइनर स्टेज पर मौजूद रोटा वायरस से हुई बीमारी को हम बता सकते हैं।

- यह तकनीक दूसरे प्रकार के वायरसों (जापानी बुखार, बुवाइन हरपीस वायरस) को खोजने में भी काम आ सकती है।

- यह एक इम्युनोलॉजिकल टेस्ट होता है, जिसमें वायरस दो एंटीबॉडी के बीच में पकड़ा जाता है।

क्या होता है रोटा वायरस 

दुनियाभर में बच्चों व नवजात पशुओं की डायरिया के कारण मृत्यु हो जाती है। रोटा वायरस के कारण ही डायरिया होता है। 2014 में इंसानों के लिये तो वैक्सीन देश में तैयार की ली गई मगर पशुओं में आज तक इसका उपचार देश के पास नहीं है। इस बीमारी में शरीर में पानी की कमी हो जाती है, यह दूसरों में भी फैल सकता है।


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