अब नहीं पहले जैसी रौनक, झज्जर के ढांसा बार्डर पर कम हो रही आंदोलनकारियों भीड़, बड़े नेता भी नदारद
ढांसा बार्डर का धरना अभी भी जारी हैं। लेकिन अब बार्डर पर ना तो पहले जैसी रौनक दिखाई देती है और ना ही सेवा के लिए पहुंचने वाले लोगों की भीड़। सीमित लोगों की मौजूदगी में यह धरना चल रहा हैं।
संवाद सूत्र, बादली : कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा ढांसा बार्डर का धरना अभी भी जारी हैं। लेकिन, अब बार्डर पर ना तो पहले जैसी रौनक दिखाई देती है और ना ही सेवा के लिए पहुंचने वाले लोगों की भीड़। सीमित लोगों की मौजूदगी में यह धरना चल रहा हैं। एक ओर जहां पहले धरना देने वाले लोगों की आवभगत के लिए तमाम तरह की व्यवस्था होती थी, उस दृष्टिकोण से भी अब वैसा माहौल नहीं दिखता। फिलहाल, धरने पर सब्जी, पूरी और चाय की सुविधा दी जा रही हैं। शेष अन्य कोई सामग्री की व्यवस्था नहीं हैं।
जबकि, पहले के दौर की बात करें तो जलेबी, हलवा, लड्डू आदि के लिए हलवाईयों का काम चलता ही रहता था। पिछले करीब दो माह से अब खर्चें पर कंट्रोल करते हुए सीमित सामग्री की व्यवस्था ही हो रही हैं। ऐसा ही अब हौंसला बढ़ाने के लिए पहुंचने वाले नेताओं से जुड़ा विषय है। हालांकि, कम हो रही हाजिरी का असर मौजूद रहने वाले लोगों के मनोबल पर कतई नहीं पड़ रहा। सीमित संख्या में लोग अभी भी दिन हो या रात, मौजूद रहते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
ढांसा बार्डर पर चल रहा धरना गुलिया खाप तीसा के प्रधान विनोद गुलिया की अगुवाई में चल रहा हैं। बादली से होकर गुजर रहे केएमपी के नजदीक के क्षेत्र में चल रहे इस धरने से जुड़े लोगों की हर उस विरोध के दौरान मौजूदगी का असर दिखा जब भी टोल पर विरोध के लिए कदम बढ़ाए गए। यहां पर मौजूद रहने वाली टीम ने भी हर दफा शानदार ढंग से विरोध जताया। इधर, किसान नेता राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढ़ूनी सहित अन्य ने भी यहां पहुंचते हुए किसानों का हौंसला बढ़ाया हैं। पहले के समय की बात हो तो राजनैतिक पार्टियों से जुड़े प्रतिनिधियों के अलावा सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों की अच्छी-खासी रोजाना यहां देखने को मिलती थी।
लेकिन, अब हालात पहले से जुदा हैं। मौजूदा समय में ना तो बार्डर पर पहले जैसी रौनक देखने को मिल रही है और ना ही वैसा समर्थन। जिस स्तर पर माहौल की शुरुआत हुई थी। बहरहाल, कृषि कानूनों के विरोध के साथ शुरु हुए धरने का भविष्य में क्या होना है, यह कहना तो स्पष्ट नहीं। लेकिन, इतना अवश्य है कि धरने पर कम हो रही हाजिरी लोगों के बीच चर्चा का विषय जरूर बनी हुई हैं।